महू की गुटीय राजनीति ने उलझाया धोका पड़वा का पर्व, राजनीतिक विवादों के कारण भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष
इंदौर। इस बार का लक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर को किया जाए या 1 नवंबर को ! तिथियों का यह विवाद पूरी दुनिया के हिंदुओं के बीच छाया रहा। महू में इस विवाद में राजनीतिक तड़का भी लगता देखा गया।
महू में दिवाली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर अलग ही माहौल देखने को मिलता है। इस दिन पूरा शहर सड़कों पर रहता है। महू का धोक पड़वा पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है, लेकिन दो तिथियों के कारण इसमें ज्योतिषी तो आपस में उलझ ही गए, राजनीति भी घुस गई।
खासतौर पर भाजपा के दो गुट आपस टकरा गए। इस विवाद को सुलझाने के लिए दिवाली के करीब 10 दिन पूर्व चोपड़ा वाटिका में महू के जाने-माने ज्योतिष विद्वानों ने बैठक आयोजित की और कहा कि पुराणों और धार्मिक ग्रंथो के हिसाब से 1 नवंबर को लक्ष्मी पूजन करना उचित है। जैसे ही चोपड़ा वाटिका की बैठक की खबर वायरल हुई।
अन्य विद्वानों ने इसका विरोध किया और उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, अयोध्या, काशी, बद्री, केदार जैसे मंदिरों का उदाहरण देते हुए कहा कि देश के अधिकांश हिस्से में 31 अक्टूबर को दिवाली मनाई जा रही है।
महू का गोपाल मंदिर जन आस्था का बड़ा केंद्र है। बाजार के अधिकांश परिवार वर्ष भर गोपाल मंदिर जाकर त्योहारों का मुहूर्त इत्यादि पूछते हैं। गोपाल मंदिर में बाकायदा इसका बोर्ड भी लगा रहता है।
जब शहर के गोपाल मंदिर ने घोषणा की की दिवाली 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी तो फिर चोपड़ा वाटिका का ऐलान बेअसर हो गया। दिलचस्प यह है कि चोपड़ा वाटिका की बैठक का नेतृत्व अधिकांश वो पंडित कर रहे थे जो विधायक उषा ठाकुर के नजदीक हैं।
जहिर है गोपाल मंदिर के ऐलान के कारण पूरे अंचल ने 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाई। दिवाली तो धूमधाम से मन गई, लेकिन अब महू के सबसे बड़े लोक पर्व धोक पड़वा को लेकर विवाद हो गया। दरअसल, महू का लोक पर्व धोक पड़वा दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है, लेकिन इस बार पड़वा और गोवर्धन पूजा की तिथि 2 नवंबर निकाली गई।
यह तिथि सर्वसम्मत थी। इस पर कोई विवाद नहीं था, विवाद इस बात पर था कि क्या गोवर्धन पूजा के दिन महू में धोक पड़वा मनाना चाहिए या फिर दिवाली के दूसरे दिन यानी 1 नवंबर को ! जाहिर है पूरे शहर ने 2 नवंबर को अपना लोक पर्व धोक पड़वा मनाया।
हालांकि एक वर्ग ने सोशल मीडिया पर पूरी कोशिश की की लोक पर्व धोक पड़वा 1 नवंबर को मनाया जाए। इस विवाद में इस बार महू का लोक पर्व धोक पड़वा फीका हो गया।
इसका कारण यह है कि बाहर से आने वाले नौकरीपेशा युवक और परिवार की बेटियां छुट्टी की दिक्कत के कारण दूसरे दिन ही अपने-अपने गंतव्य स्थलों के लिए रवाना हो गई। महू के सैकड़ो परिवारों के बेटा बेटी बाहर के शहरों में नौकरियां कर रहे हैं।
ये सभी विशेष कर लोक पर्व धोक पड़वा मनाने के लिए महू आते हैं। इन सभी लोगों को छुट्टियों की दिक्कत रहती है। इसलिए दूसरे दिन धोक पड़वा होते ही शाम को ये लोग रवाना हो जाते हैं।
जाहिर है 2 दिन बाद धोक पड़वा मनने की वजह से त्यौहार की रौनक फीकी हो गई। इसके अलावा चुनाव नहीं होने की वजह से राजनीतिक अखाड़े बाजी भी कम हुई। कुल मिलाकर तिथियों की गड़बड़ की वजह से महू का सबसे बड़ा सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक लोक पर्व धोक पड़वा फीका पड़ गया। राजनीतिक विवाद में जन्म लिया सो अलग।