विधायक और मंत्री के परफॉर्मेंस RSS जांचेगा, मुख्यमंत्री को दिल्ली दरबार से मिल रहा भरपूर सपोर्ट

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इंदौर। डॉ मोहन यादव की भाजपा सरकार को प्रदेश में 1 साल पूरा होने जा रहा है। 16 दिसंबर 2023 को डॉ मोहन यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। जाहिर विधायकों के कार्यकाल को भी एक वर्ष पूरा होगा। सूत्रों का कहना है की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मध्य क्षेत्र इकाई भाजपा नेताओं और विधायकों की गोपनीय चरित्रावली यानी सीआर बना रही है।

इससे भाजपा में हड़कंप मच गया है। यह जिम्मेदारी क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जमवाल को दी गई है। अजय जमवाल संघ के प्रचारक रहे हैं। दरअसल, विधानसभा चुनाव के पहले क्षेत्रीय संगठन महामंत्री की हैसियत से अजय जामवाल ने मंडल स्तर तक पहुंचकर विधायकों के कामकाज का लेखा जोखा तैयार किया था। इसी लेखा जोखा ने भाजपा के टिकट तय करवाने में अहम भूमिका निभाई थी।
मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के सालभर बाद जामवाल फिर मैदान में आ गए हैं। इस बार वे संभाग स्तर पर पहुंचकर एक साल में उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए क्या-क्या किया है।

जो विधायक बता रहे हैं, उसको वे अपने बही खाते में दर्ज भी करते जा रहे हैं। देखना यह है कि यह प्रक्रिया विधायकों के काम करने के तरीके में कितना बदलाव ला पाती है। वैसे इस संवाद में कई विधायक जामवाल के निशाने पर आने से नहीं बच सके।

सिंधिया की बेरुखी विजयपुर में हार का कारण —

भाजपा में खासतौर पर नरेंद्र सिंह तोमर का खेमा यह कह रहा है कि विजयपुर में भाजपा की हार का बड़ा कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों की बेरुखी और सेबोटेज है।
जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे तो रामनिवास रावत उनके कट्टर समर्थक थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र सिंह तोमर ने रामनिवास रावत का दल बदल बिना ज्योतिरादित्य सिंधिया से परामर्श किए करवा दिया।
इससे महाराज नाराज हो गए। उन्होंने विजयपुर विधानसभा उपचुनाव से दूरी बना ली। सिंधिया की बेरुखी से उनके समर्थकों को स्पष्ट संकेत मिल गया। विजयपुर में सिंधिया समर्थन या तो घर में बैठे रहे या उन्होंने रामनिवास रावत के खिलाफ काम किया। विजयपुर में काम से कम 10000 ऐसे मतदाता है जो ग्वालियर राजघराने के इशारे पर मतदान करते हैं।

जाहिर है ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच की राजनीतिक अदावत रामनिवास रावत को भारी पड़ी। इससे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का रिकॉर्ड भी खराब हो गया। जाहिर है वह भी नाराज हैं।
दरअसल, विधानसभा उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया विजयपुर में कहीं नजर नहीं आए। उनकी गैर मौजूदगी चुनाव के दौर में भी चर्चा का विषय रही और नतीजों के बाद भी। भाजपा उम्मीदवार की हार के बाद जब मीडिया ने उनसे गैर मौजूदगी को लेकर सवाल किया तो बोले, मुझे तो बुलाया ही नहीं गया।

उनके इस जवाब पर बरास्ता भगवान दास सबनानी, संगठन की ओर से तगड़ा पलटवार हुआ। कहा गया कि खुद मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष ने उन्हें बुलाया था, स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम था, पर दूसरी जगह व्यस्तता के कारण वे यहां नहीं आ पाए। प्रदेश भाजपा में सभी जानते हैं कि भगवान दास सबनानी वही कहते हैं जो उन्हें विष्णु दत्त शर्मा चाहते हैं।

इधर विजयपुर चुनाव में पूरी ताकत लगाने के बाद भी नरेंद्र सिंह तोमर रामनिवास रावत को जितवा नहीं पाए। यहां तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। इस हार का उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। अब देखना यह है कि नरेंद्र सिंह तोमर की प्रतिक्रिया किस अंदाज में सामने आती है।
वैसे यह कोशिश तो शुरू हो गई है कि हार के बाद भी रावत के राजनीतिक वजन को किसी भी तरह बरकरार रखा जाए।

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