पानी फेरने पर तुले हुए है जिम्मेदार अफसर, मध्यान्ह भोजन तो होता है लेकिन अब नहीं सुनाई देती मंत्र की गूंज

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निरीक्षण का दावा तो किया जाता है…..अफसरों का नहीं जाता ध्यान

उज्जैन। उज्जैन जिले के सरकारी स्कूलों में भले ही विद्यार्थियों को मध्यान्ह भोजन परोसा जाता है लेकिन भोजन के पहले जो भोजन मंत्र का उच्चारण किया जाता था वह लंबे समय से बंद हो गया है। दरअसल यह स्थिति पूरे प्रदेश के साथ ही जिले की  भी है, जहां सरकारी स्कूलों में बीते दस वर्ष से अधिक समय से ही भोजन मंत्र की गूंज नहीं सुनाई दे रही है। हालांकि शिक्षा विभागीय अधिकारी स्कूलों का निरीक्षण करने का दावा तो करते है परंतु इनका भी ध्यान भोजन मंत्र बंद होने की तरफ नहीं जाता। कुल मिलाकर जिम्मेदार अफसर ही सरकार की मंशा पर पानी फेरने पर तुले हुए है।

गौरतलब है कि पूर्व शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस की पहल पर उच्च शिक्षा विभाग प्रदेश के सभी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन से पहले भोजन मंत्र की शुरुआत की थी। लेकिन तकरीबन पंद्रह साल से स्कूलों में मध्यान्ह भोजन से पहले भोजन मंत्र करना बंद हो गया है। वर्ष 2009 के दौरान स्कूल शिक्षा विभाग ने यह आदेश जारी किया था। वेदों का उदाहरण देते हुए इस पत्र में तर्क दिया गया था कि भोजन में ब्रह्म यानि ईश्वर का अंश होता है।  शासकीय शालाओं में जिन बच्चों को संस्कारों से जोडऩे कि जो सरकारी मंशाएं थीं। विभाग के अधिकारी उन पर पानी फेरने पर तुले हुए हैं। अनदेखी का अंदाजा इसी बात से लगाएं कि शालाओं में मध्यान्ह भोजन से पूर्व बच्चों को जो मंत्र कराया जाता था। वह पिछले पंद्रह सालों से नहीं हुआ है। अधिकारी स्कूलों में निरीक्षण का दावा करते हैं, लेकिन उनका भी इस दिशा में ध्यान नहीं पहुंच रहा है।  मध्यान्ह भोजन का यह मंत्र कराने की जवाबदारी भी उस शिक्षक की थी जो शाला का प्रभारी है। इसके लिए बाकायदा जन शिक्षक और प्राचार्य को प्रतिदिन हर शाला की निगरानी करना थी। लेकिन एक भी स्कूल में भोजन मंत्र नहीं कराया जा रहा है।
प्रदेश के सवा लाख स्कूलों में प्रतिदिन भोजन परोसा जाता है। इनमें 90 हजार तो मिडिल और प्राथमिक शालाएं हैं। जिनमें प्रतिदिन इंटरवल के समय मध्यान भोजन बच्चों को दिया जाता है। जबकि 35 हजार हायर सेकेंडरी और हाई स्कूल है, जहां बच्चों को विभाग भोजन कराता है। शहरों में नगर निगम तो ग्रामीण इलाकों में जिला पंचायत के माध्यम से यह भोजन दिया जाता है। लेकिन कहीं भी थाली में इसे परोसने के बाद मंत्र नहीं कराया जा रहा है।  मैदानी स्तर पर जिला शिक्षा अधिकारियों और डीपीसी को यह व्यवस्था बनाने की जवाबदारी थी। विद्यालयों में शिक्षक ही बताते हैं कि शालाओं में अधिकारी निरीक्षण करने आते हैं। वह दस्तावेजों का संधारण अवलोकन है। शौचालय व्यवस्था देखते हैं कक्षाओं में पहुंचकर दिशा निर्देश देते हैं। लेकिन भोजन मंत्र की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया है। जबकि बच्चों को संस्कारों से जोड़ने के लिए यह काम होना अति आवश्यक था।

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