खुसूर-फुसूर
नए काम आते जा रहे… समय कम होता जा रहा
2028 के अप्रेल-मई माह में हुबहु प्रयागराज की तरह हमारे यहां भी सनातन संस्कृति और आध्यात्म का समागम होगा। उज्जैन वासी आतुर हैं अपनी 12 वर्षों में एक बार की जाने वाली जाने अंजाने,पास और दूर के रिश्तेदारों की सेवा को। करीब तीन वर्ष का समय हमारे पास इसके लिए अब सामने है। अगर इसे सिरे से देखा जाए और उस पर गंभीरता पूर्वक कार्यों की प्रकृति और पद्धति को लेकर विचार किया जाए तो इन तीन सालों में हमारे पास वर्षा काल का 12 महीना नहीं है। इसके अतिरिक्त निर्माण के कामों में पिछली बार की तरह आई न्यायालयीन उलझनों की तरह के मामले अभी सामने आने शेष हैं। ऐसे मामलों के आने से कामों के अटकने का सिलसिला भी चलेगा। इसके अतिरिक्त योजना बनने और उसे धरातल पर लाने के बीच का सफर भी हर काम में निति और नियम के मुताबिक करना ही होगा। ऐसे में अब बहुत जरूरी योजनाओं को ही हाथ में लिया जाना चाहिए और धरातल पर योजनाओं के अमल और कार्य की गतियों को लेकर पूरा ध्यान केंद्रीत किया जाना आवश्यक बन पडा है। बडनगर रोड का ब्रिज जिस गति से बनाया है पिछले सालों में उसे देखकर अब भय के हाल पैदा होने लगे हैं।खुसूर-फुसूर है कि 12 ब्रिज को लेकर कवायद तेज है ऐसे में पिछले बार के ब्रिज के समानांतर एकांगी मार्ग के लिए भी इन ब्रिज की अपेक्षा पीपा ब्रिज का बेहतर उपयोग करते हुए राज्य शासन की राशि का दुसरे कामों में सदुपयोग किया जा सकता है। प्रयागराज में महाकुंभ में एक से एक पीपा ब्रिज बनाए गए हैं और हाथी उन पर विचरण करते देखे जा रहे हैं। पीपा ब्रिज के लिए पीपा यूपी सरकार से मिलने में भी कोई कठिनाई नहीं होगी और रेलवे के ट्रांसपोटेशन से घर का खर्च घर में ही रहेगा।