दैनिक अवंतिका उज्जैन।
हमें संविधान के नैतिक मूल्यों और अधिकारों के साथ बनाये गये कानूनों को ध्यान में रखकर कार्य व व्यवहार करना चाहिए। हमारी स्कूली शिक्षा में कानून को जोड़ा जाना आवश्यक है ताकि स्कूली समय से ही उन्हें कानून के विषय में जानकारी रहे। यह बात मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के ग्वालियर खंडपीठ के न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने विक्रमादित्य का न्याय विषय पर आयोजित वैचारिक समागम में कही।
उन्होंने बताया कि विक्रमादित्य के समय भी न्याय व्यवस्था महत्वपूर्ण थी। उनका नाम विश्व इतिहास में महान न्याय सम्राट, चक्रवर्ती शासक और विद्वानों के संरक्षक के रूप में अंकित है। विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने यदि कोई अच्छा न्याय किया तो उन्हें विक्रमादित्य की उपाधि मिली थी। विक्रमादित्य ने अपने शासनकाल में अमानवीयता का खत्म कर न्याय व्यवस्था को दंड देने के बजाय सुधार व्यवस्था बनाया था। न्याय की अवधारणा के प्रति उनकी प्रणाली आज भी प्रासंगिक है। उनकी न्याय की गाथाएँ आज भी किंवदंतियों ने के रूप में प्रचलित हैं।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आई.एस. श्रीवास्तव ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए। प्राचीन काल से हमारे देश में हर क्षेत्र में समृद्धि का वातावरण रहा है। घर से ही बच्चा सीखता है। बच्चों को घर में ही शिक्षित दीक्षित करें। हमें पुनः अपनी संस्कृति को संरक्षित एवं संवर्धित करना होगा। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश पी.के. व्यास ने कहा की विक्रमादित्य की न्याय पर राजा की छवि आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। भारतीय न्याय संहिता में सामुदायिक सेवा के दंड को जोड़ा गया है। मैं यहा उपस्थित न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं से अनुरोध करता हूँ कि वह सामुदायिक सेवा दंड का आग्रह किया करें।
वैचारिक समागम दूसरे सत्र की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अर्पण भारद्वाज ने की। कार्यक्रम में मुख्य वक्तव्य अपर जिला न्यायाधीश कपिल नारायण भारद्वाज ने दिया। मुख्य अतिथि विशेष न्यायाधीश जिला न्यायालय, उज्जैन सुनील कुमार सिंह थे।
कार्यक्रम का संचालन विधिक सेवा प्राधिकरण के विधिक सलाहकार चंद्रेश मंडलोई ने किया। आभार उज्जैन बार काउंसिल के अध्यक्ष अशोक यादव ने व्यक्त किया। कार्यक्रम के आरंभ में कवि दिनेश दिग्गज ने सम्राट विक्रमादित्य पर केंद्रित ओजस्वी कविता का पाठ किया।