महाकाल की दान की जमीन यूडीए ने हजम की, प्रशासन ने एक साल पहले मंदिर समिति के निवेदन पर कब्जा मुक्त करवाई थी 45 बीघा जमीन

बाले-बाले ही बता दिया खेल, समिति के अशासकीय सदस्य भी नहीं बोले, आपत्ति भी नहीं की

ब्रह्मास्त्र उज्जैन

श्री महाकाल भगवान के लिए सालों पहले दान में मिली 45 बीद्या जमीन विकास प्राधिकरण ने बाले-बाले ही हजम कर ली। यह जमीन करीब एक साल पहले ही मंदिर समिति ने जिला प्रशासन के सहयोग से कब्जा मुक्त करवाई थी। तभी से इस जमीन पर यूडीए की तिरछी नजर हो गई थी। खास तो यह रहा है कि बाले-बाले हुए इस खेल को लेकर मंदिर समिति के अशासकीय सदस्यों की अब तक चुप्पी बनी हुई है। यहां तक की इस मसले पर आपत्ति भी नहीं की गई और न ही मंदिर समिति की और से न्यायालय का सहारा भी नहीं लिया गया है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की 45 बीघा विक्रमनगर की कृषि भूमि का यह मामला है। अबआगामी समय में मंदिर समिति को योजनानुसार भूखंडों के रूप में विकास प्राधिकरण करीब 23 बीघा के आकारित भूखंड सौंप देगा।उज्जैन विकास प्राधिकरण के अधिकृत सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि श्री महाकालेश्वर मंदिर की करीब 45 बीघा जमीन योजना में शामिल करते हुए विकास कार्य शुरू किए गए हैं। विक्रमनगर में असल में करीब 2 हजार बीघा से अधिक की जमीन को विकसित किया जा रहा है। इस पर 4 योजनाएं बनाई गई हैं। इनमें से 2 योजनाओं पर काम जारी है और 2 योजनाएं अभी पाईप लाईन में हैं।

 

मंदिर समिति का पत्र चर्चाओं में
इधर मंदिर समिति के सूत्रों के अनुसार यह मामला हाल ही में मंदिर में भी चर्चाओं में आया है। इसमें मंदिर के प्रशासक ने अध्यक्ष को पूरे मामले से अवगत करवाते हुए पत्र लिखकर जमीन को खुर्द बुर्द किए जाने की स्थिति से अवगत करवाया था लेकिन इसके बाद से ही पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। न तो जमीन को लेकर समिति की और से और न ही समिति के अशासकीय सदस्यों की और से ही इस मामले में आपत्ति ही दर्ज करवाई गई। यहां तक की मंदिर समिति की और से मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा नियमों के तहत विधि अधिकारी खटखटा सकते थे लेकिन उन्होंने भी पूरे मामले को लेकर तत्कालीन प्रशासक के साथ कुल्हड़ में गुड फोड़ने की कहावत को चरितार्थ कर दिया।

 

कुल भूमि के 50 फीसदी वापसी
इसके लिए जारी योजना की विज्ञप्ति में सर्वे एवं रकबा की स्थिति स्पष्ट कर दी गई थी। यूडीए के अधिकृत सूत्रों के अनुसार करीब एक वर्ष पूर्व ही इसका प्रकाशन करते हुए आपत्ति आमंत्रित की गई थी जिसमें श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की और से कोई आपत्ति नहीं आई थी। इसके बाद विकास प्राधिकरण की और से मुआवजे के अनुमोदन को लेकर पत्र जारी किए गए। इस योजना में कुल भूमि पर विकास कार्य करने के बाद करीब 50 फीसदी भूमि भूखंडों के रूप में वापस की जाएगी। विकास कार्य में भूमि पर सड़क, नाली, बिजली पोल आदि कार्य किए जाएंगे।

 

सीईओ प्रशासक एक थे तब गई जमीन
इधर सूत्र जानकारी दे रहे हैं कि श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की 45 बीघा जमीन उस दौरान विकास प्राधिकरण ने अधिग्रहण की जब प्राधिकरण के सीईओं एवं मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक एक ही थे। उस दौरान ही जमीन अधिग्रहण की विज्ञप्ति का भी प्रकाशन किया गया और उसी दौरान ही मुआवजे के अनुमोदन के पत्र भी जारी हुए जो मंदिर समिति में आवक जावक भी नहीं हुए और बाद में उन्हें बाले-बाले ही रखवा दिया गया।

 

धर्मस्व विभाग भी चूप
सामने आ रहा है कि श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति राज्य शासन के धर्मस्व विभाग के अंतर्गत आता है। राजस्व के जानकारों का कहना है कि मदिरों के नाम की जमीनों को किसी भी स्थिति में इस तरह से विकास के लिए नहीं लिया जा सकता है और अगर लिया गया है तो उतनी ही जमीन देना होती है। धर्मस्व में इंद्राज मंदिरों के मामलों में धर्मस्व से अनुमति लेना अनिवार्य होता है और वहां से मंदिरों के नाम की जमीनों पर इस तरह के मामलों में स्वीकृति नहीं दी जाती है।

 

मंदिर समिति को मात्र 50 फीसदी जमीन ही मिलेगी
विक्रमनगर स्टेशन के पीछे की महाकाल की जमीन अब उज्जैन विकास प्राधिकरण के दाव में फसी हुई है। इस जमीन को विकास प्राधिकरण ने अपनी योजना में लेकर उस पर विकास कार्य को अंजाम देना शुरू कर दिया है। योजना के नियमानुसार मंदिर समिति को बाद में मात्र 50 फीसदी विकसित भूखंड ही मिल सकेंगे। विक्रम नगर रेलवे स्टेशन के पिछले क्षेत्र से लगी यह जमीन विकास प्राधिकरण की विक्रमनगर क्षेत्र योजना से लगी हुई है।

 

समिति के सामने ही
नहीं आया मामला
सूत्र जानकारी दे रहे हैं कि जमीन का यह मामला मंदिर प्रबंध समिति में अब तक सामने नहीं आया है। न ही इसे लेकर अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की कोई सहमति ही हुई है और न ही मंदिर समिति की बैठक की प्रोसिडिंग में ही ठहराव प्रस्ताव के तहत इसका अंकन ही हुआ है। यह भी बताया जा रहा है कि श्री महाकालेश्वर मंदिर शासन के धर्मस्व विभाग के अंतर्गत आता है ऐसे में इसकी किसी भी संपत्ति को लेकर अनुमति आवश्यक है जो कि न तो मंदिर समिति ने ली हे और न ही विकास प्राधिकरण ने ही अधिग्रहण को लेकर आवश्यक प्रक्रिया इसके तहत की है।

 

खूर्द-बुर्द की जमीन
उज्जैन विकास प्राधिकरण इसी क्षेत्र में करीब ढाई हजार बीघा से अधिक जमीन पर विकास कार्य करते हुए योजनाओं को अंजाम दे रहा है। यूडीए सूत्रों के अनुसार इसमें से दो योजनाओं पर अमल शुरू हो चुका है और दो योजनाएं पाईप लाईन में है।अमल की जा रही योजना में ही श्री महाकालेश्वर मंदिर की जमीन का बड़ा हिस्सा शामिल है जिस पर विकास कार्य को अंजाम देते हुए जमीन को खुर्द बुर्द कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि विकास प्राधिकरण ने जमीन को लेकर मुआवजे के अनुमोदन का पत्र मंदिर समिति को जारी किया था लेकिन यह पत्र मंदिर समिति तक पहुंचा ही नहीं और बीच में ही पत्र के आधार पर खेल कर दिया गया।योजना को लेकर विकास प्राधिकरण ने अधिग्रहण को लेकर सार्वजनिक प्रकाशन किए थे। मंदिर समिति को जानकारी के अभाव में इस पर आपत्ति समय पर नहीं की गई।

Author: Dainik Awantika