सबसे पुरानी छतरियां राव राजा नंदलाल मंडलोई की
ब्रह्मास्त्र इंदौर। मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर का पहला नाम इंद्रपुरी था। होलकर रिकॉर्ड्स के मुताबिक शहर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक इंद्रेश्वर महादेव मंदिर के नाम से इस शहर को नाम मिला है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर पर संत इंद्रगीर बाबा सेवा में थे। तब इस बस्ती को इंद्रपुरी कहा जाता था। फिर यह इंदूर हुआ और 1818 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी यहां आई तो इसे इंदौर कहा जाने लगा। इंदौर के राजबाड़ा के अलावा देश के किसी भी किले का द्वार सात मंजिला नहीं है।
होलकर रियासत के संस्थापक मल्हार राव होलकर ने अपने अंतिम दिनों में राजबाड़ा बनवाने की शुरुआत की। हालांकि, इसे बनवाने का श्रेय मल्हार राव होलकर द्वितीय को जाता है। इस इमारत में तीन बार 1801, 1908 और 1984 में आग लगी। महाराजा यशवंत राव होलकर ने उज्जैन पर आक्रमण किया था। जवाबी हमले में सरजे राव घाटगे ने इंदौर पर आक्रमण किया और इंदौर को लूटा। राजबाड़ा की ऊपरी दो-तीन मंजिलों में आग लगाई। होलकर रियासत के दीवान तात्या जोग ने 1811 में एकबार फिर इसका निर्माण कराया। इसके बाद 1908 में राजबाड़ा की लेफ्ट विंग में आग लगी और फिर 1984 के दंगों में राजबाड़ा को सर्वाधिक क्षति पहुंची। दो शीश महल जलकर खाक हो गए।सबसे पुरानी छत्रियां रानीपुरा के दौलतगंज के समीप राजा राव नंदलाल मंडलोई की है।