उज्जैन संभाग अब बाद्यों से भी भरपूर हुआ,चीता के आने का इंतजार खिवनी में 5 मादा , 3 नर , 2 शावक मिले देवास जिले का खिवनी अभ्यारण ब्रिडिंग पाइंट बना, 134 वर्ग किमी में फैला है अभ्यारण्य

उज्जैन संभाग अब बाद्यों से भी भरपूर हुआ,चीता के आने का इंतजार

खिवनी में 5 मादा , 3 नर , 2 शावक मिले देवास जिले का खिवनी अभ्यारण ब्रिडिंग पाइंट बना, 134 वर्ग किमी में फैला है अभ्यारण्य

उज्जैन। उज्जैन संभाग अब वन्य जीवों की उपस्थि‍ति से भी समृद्ध हो रहा है। गांधी सागर अभ्यारण्य में चीता लाने की तैयारी अंतिम दौर में है। देवास के खिवनी अभ्यारण्य बाद्य नेचुरल ब्रिडिंग पाइंट के रूप में सामने आ रहा है। हाल ही में 10 बाद्यों की उपस्थिति वन विभाग के सर्वे में ही सामने आई है। इनमें 5 व्यस्क मादा एवं 3 व्यस्क बाघ नर के साथ 2 अवयस्क शावक भी शामिल है । अभ्यारण्य अधीक्षक विकास माहौर बताते हैं कि इन्हें लीड कर बाद्य को युवराज कहा जा रहा है। उसी ने यह वंश वट बढाया है । उसके पहले उसका पिता कृष्णा यहां राज कर रहा था। श्री माहोर बताते हैं 134 वर्ग किलोमीटर में फैले देवास के खिवनी अभ्यारण्य में 01 फरवरी से 25 फरवरी के मध्य वाईल्ड लाईफ कंजरवेशन ट्रस्ट के सहयोग से एवम मुख्य वन्यजीव अभिरक्षक म.प्र. के निर्देश पर कैमरा ट्रेपिंग कार्य किया गया। कैमरा ट्रैपिंग प्रोटोकॉल के तहत अभयारण्य तथा इससे लगे क्षेत्रीय एवं वन विकास निगम के वन क्षेत्र में कैमरा ट्रैप स्थापित किये गये । प्रत्येक 2 वर्ग किमी  के ग्रिड में 3 कैमरा सेट को स्थापित किया। लगभग 100 ग्रिड को शामिल किया गया। कैमरा ट्रैपिंग प्रोटोकॉल पूर्ण होने के पश्चात वाईल्ड लाईफ कंजरवेशन ट्रस्ट द्वारा समस्त कैमरा ट्रेप डाटा का विश्लेषण किया गया। जिसमे अभयारण्य के अधिकांश क बीटो में बाघ तथा तेन्दुआ का विचरण पाया गया है । कुल 10 बाघों ने कैमरा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है जिनमें 5 व्यस्क मादा एवं 3 व्यस्क बाघ नर के साथ 2 अवयस्क शावक भी शामिल है । असल में यह क्षेत्र ओंकारेश्वर-रातापानी अभ्यारण्य से जुडा हुआ होने और मध्य में होने के कारण बाद्यों के लिए ब्रिडिंग पाइंट के रूप में सामने आ रहा है। यहां बाद्य जन्म लेकर आसपास के ओंकारेश्वर, रातापानी यहां तक की वन विहार,कालासोत भोपाल की और रूख कर रहे हैं।  श्री माहौर बताते हैं कि बाघो की पहचान प्रोफाइल शीघ्र तैयार की जाकर मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक म.प्र., राज्य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर, वन्यप्राणी संस्थान देहरादून तथा स्थानीय वन प्रबंधन कार्यालयों को उपलब्ध करायी जायेगी ताकि बाघ अनुश्रवण एवं निगरानी को शसक्त तथा प्रभावी बनाया सके । अभी यहां लीड कर रहा बाद्य युवराज है उसका पिता कृष्णा है। युवराज के साथ राधा और मीरा बाद्यिन ने वंश को आगे बढाया है। इसके तहत खिवनी मुख्य क्षेत्र में युवराज ने बाद्यिन राधा एवं मीरा के साथ वंश को आगे बढाया है। इस डाटा की उपलब्धता खिवनी अभयारण्य की वन्यप्राणी तथा प्राकृतिक महत्ता को बढावा दे रही है। साथ ही अभयारण्य प्रबंधन द्वारा समय-समय पर कि जाने वाले व्यवस्थाओं जैसे पेयजल, आवास तथा शिकार की उपलब्धता को ओर अधिक महत्व मिलेगा। खिवनी अभ्‌यारण्य, रातापानी टाईगर रिजर्व एवं ओमकारेश्वर वन क्षेत्रों के लिए बाघ सोर्स एरिया का काम करते आया है। खिवनी अभयारण्य बाघों का एक सुरक्षित आवास है जो कि बाघों के प्रजनन केन्द्र के रूप में अपना कार्य करता आया है जिसे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा भी प्रमुख सोर्स एरिया के रूप में चिन्हांकित किया है । राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एवम ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा यहाँ मौजूद संसाधनों का सर्वेक्षण विश्लेषण कर इनका विकास किया जावेगा।  श्री माहौर बताते हैं कि अभ्यारण्य के विस्तार की योजना है उसमें सामान्य वन क्षेत्र के 60 वर्ग किलो मीटर को शामिल किया जा सकता है। अभ्यारण्य का क्षेत्र सीधे तौर पर देवास एवं सिहोर जिला से जुडा हुआ है। अभ्यारण्य में भालू की उपस्थिति भी बराबर बनी हुई है। यहां भालू की पसंद का आवास एवं फल की उपलब्धता भी है। पर्याप्त शहर के छत्ते, गुफा,चिटियां,दीमक सभी प्रकार का वातावरण प्राकृतिक रूप से ही है।कुछ वर्ष पूर्व किए गए कार्य का फल मिला-बताया जा रहा है कि कुछ वर्ष पूर्व देवास डीएफओ के रूप में तत्कालीन अधिकारी पीएन मिश्रा ने जिम्मेदारी संभाली थी । उस दौरान उन्होंने खिवनी के आंतरिक क्षेत्र में बाद्य की उपस्थिति को लेकर उनके लिए काफी कार्य करवाए थे। पर्याप्त पानी की व्यवस्था के साथ ही वातावरण को बाद्य फ्रेंडली बनाने के सभी कार्यों को अंजाम दिया गया था। कुछ पाइंट पर स्थाई ट्रेपिंग कैमरा लगाए गए थे। वन चौकियों को सुदृढ किया गया था।वन्यजीवों के अनुकुल क्षेत्र-बाघों की बढ़ती आबादी से  मुख्य विंध्यांचल क्षेत्र की वन तथा वन्यप्राणी सम्पदा सुरक्षित है। 1980 के दशकों में अत्यधि कटाई की मार झेल चुके अभयारण्य इन बाघों की उपस्थिति के माध्यम  से आने वाले समय मे पुनः अपने वास्त‌विक स्वरूप में आ जायेगा। भविष्य में गौर, चीतल, सांभर जैसे शाकाहारी जीवों को बसाये जाने की योजना भी बनायी जा सकती है।

 

Author: Dainik Awantika