ब्रह्मास्त्र उज्जैन
संस्कृत के महान कवि कालीदास की विद्वता के पीछे जनश्रुति है कि कालीदेवी की विशेष कृपा उन पर थी और देवी के आशीर्वाद से ही वे प्रज्ञावान बने। गढ़कालिका देवी के आराधक कवि कालीदास रहे तो इस हिसाब से गढ़कालिका मंदिर भी अतिप्राचीन है। यहां देवी मां कालिका के रूप मे विराजित हैं। ये एक तांत्रिक सिद्ध स्थान है।
हनुमानजी से भयभीत हो भागी देवी- लिंगपुराण के अनुसार भगवान राम जब लंकाविजय के बाद अयोध्या लौट रहे थे तो वे रूद्रसागर के निकट ठहरे थे। उसी रात्रि काली भक्ष्य की खोज मे निकलीं। उन्होंने हनुमानजी को पकड़ने का प्रयत्न किया किन्तु वीर हनुमान के भीषण रूप लेते ही कालिका भयभीत होकर भागने लगीं। भागते समय काली देवी का अंग गलित होकर जिस स्थान पर गिरा वहीं गढ़कालिका मंदिर है। देवी का श्रृंगार बड़ा ही मनोहारी होता है। नवरात्री मे मंदिर के दीप स्तंभ के दीपक आलोकित होकर नयनाभिराम दृश्य उपस्थित करते हैं।
मनौती पूरी होनेपर विशेष पूजा
मंदिर की मुख्य पुजारी टीना नाथजी ने बताया कि भक्त यदि पूरी आस्था से यहां आकर मनौती मांगता है तो गढ़कालिका मां उसकी मनोकामना पूरी करती हैं। ये एक पुरातन सिद्ध स्थल है। नवरात्रि मे मंदिर के परिसर मे हवन और विशेष अनुष्ठान होते हैं। लोग दूर-दूर से देवी के दर्शन हेतु आते हैं। गढ़कालिका का विग्रह बड़ा ही भव्य है। श्रद्धालु मनोकामना पूरी होनेपर मां कालिका का विशेष श्रृंगार करवाते हैं।