आज से 118 किमी की पंचक्रोशी यात्रा शुरू
भीषण गर्मी में विधिवत शुरू हुई पैदल यात्रा, बड़ी संख्या में श्रध्दालु शामिल
ब्रह्मास्त्र उज्जैन। आज से पंचक्रोशी यात्रा शुरू हो गई। वैसे तो कुछ लोगों ने शनिवार से ही शुरू कर दी थी। शनिवार दोपहर को मंदसौर से आया दल पहले पड़ाव पिंगलेश्वर पहुंच गया था। वहीं रविवार को सुबह से श्रद्धालुओं के जत्थे नागचंद्रेश्वर का बल लेकर रवाना हुए। हालांकि अधिकृत रूप से यात्रा का प्रारंभ आज सोमवार से हुआ है। बीते दो वर्षों से कोरोना के कारण यात्रा नहीं हो पाई, जिसके चलते इस बार यात्रा में अधिक श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं। प्रमुख ज्योतिर्लिगों में से एक महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन से पंचक्रोशी यात्रा को मानव-समुदाय के कल्याण के लिए निकाली जाती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु तपती गर्मी में पांच दिनों तक चलने वाली पंचक्रोशी यात्रा 118 किलोमीटर पैदल दूरी तय करते हुए 29 अप्रैल 2022 को समाप्त होगी।
वैशाख की तपती दोपहर में हजारों श्रद्धालु शिप्रा नदी में आस्था की डुबकी लगाकर यात्रा की शुरुआत हुई है। इसके बाद पटनी बाजार स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर पहुँच भगवान को श्रीफल अर्पित कर बल प्राप्त करते हैं। इसके बाद यात्रा शुरू होती है। पंचक्रोशी यात्रा में पिंगलेश्वर, करोहन, नलवा, बिलकेश्वर, कालियादेह महल, दुर्देश्वर व उंडासा इस तरह कुल पाँच प़ड़ाव और दो उपपड़ाव आते हैं। नगर प्रवेश के पश्चात रात्रि में यात्री नगर सीमा स्थित अष्टतीर्थ की यात्रा कर त़ड़के शिप्रा स्नान करते हैं। यात्रा का समापन भगवान नागचंद्रेश्वर को बल लौटाकर होता है। इसके लिए यात्री बल के प्रतीक मिट्टी के घो़ड़े भगवान को अर्पित करते हैं।
पांच पड़ाव पंचक्रोशी यात्रा के
यात्रा में कुल पांच पड़ाव व दो उप पड़ाव आते हैं। इन पड़ावों व उप पड़ावों के बीच कम से कम छह से लेकर 23 किलोमीटर तक की दूरी होती है। नागचंद्रेश्वर से पिंगलेश्वर पड़ाव के बीच 12 किलोमीटर, पिंगलेश्वर से कायावरोहणेश्वर पड़ाव के बीच 23 किलोमीटर, कायावरोहणेश्वर से नलवा उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर, नलवा उप पड़ाव से बिल्वकेश्वर पड़ाव अम्बोदिया तक छह किलोमीटर, अम्बोदिया पड़ाव से कालियादेह उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर, कालियादेह से दुर्देश्वर पड़ाव जैथल तक सात किलोमीटर, दुर्देश्वर से पिंगलेश्वर होते हुए उंडासा तक 16 किलोमीटर और उंडासा उप पड़ाव से क्षिप्रा घाट रेत मैदान उज्जैन तक 12 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है। पुरातन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार यह यात्रा शिप्रा नदी में स्नान व नागचंद्रेश्वर की पूजा के साथ वैशाख कृष्ण दशमी से शुरु होती है।