इंदौर आए कैप्टन योगेंद्र सिंह ने बीएसएफ जवानों को सिखाए युद्ध कौशल के गुर, कारगिल में 18 गोलियां खाई, जेब में रखे सिक्कों से बची जान, सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र पाने वाले योद्धा
इंदौर। सबसे कम उम्र (19 वर्ष) में उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ पाने वाले ऑनररी कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव इंदौर आए हैं। उन्होंने बीएसएफ के सीएसडब्ल्यूटी में ट्रेनीज को युद्ध कौशल के गुर सिखा उन्होंने कारगिल युद्ध के वक्त जांबाजी के किस्से बताए और बताया कि कैसे उन्होंने दुश्मन को पस्त किया और सीने पर गोलियां खाकर भी जिंदा रहे।
दुश्मन को मौत के घाट उतारने से पहले अगर मुझे मौत आ गई तो मौत को ही मौत के घाट उतार दूंगा…’। यह सिर्फ कहने की बात नहीं कारगिल युद्ध में इन शब्दों को चरितार्थ किया है कैप्टन यादव ने। वे बताते हैं कि 4 जुलाई 1999 को 17 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर चढ़ाई करते हुए हमने कई दुश्मनों को मार गिराया, लेकिन एक समय ऐसा आया कि हम घिर गए। मैंने सोच रखा था कि जब तक सीने या सिर में गोली नहीं लगेगी मै मरूंगा नहीं।
हुआ भी वही, दुश्मनों ने सभी को गोली मारी, मेरे हाथ, पैर पर 17 गोली लगीं, मैंने उफ तक नहीं की। वे मुझे भी मृत समझकर चले गए। तभी आवाज आई कि इसके सीने पर भी गोली मार दो, कोई बच न पाए। एक सैनिक लौटा और मेरे सीने पर गोली दागी, लेकिन मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है और मेरी पॉकेट में रखे कुछ सिक्कों ने उस गोली को निष्क्रिय कर दिया।
एक हाथ, एक पैर टूट चुका था। लटके हाथ को बेल्ट से पीठ पर बांधा और ग्रेनेड फेंककर दुश्मन को उड़ा दिया। कहां पाकिस्तान है कहां भारत नहीं मालूम, बर्फ की पहाड़ियों से लुढ़कता हुआ अपनी यूनिट पहुंचा। दुश्मन की सारी लोकेशन बताई और बेहोश हो गया। तीन दिन बाद अस्पताल में होश आया तो पता चला उसी रात हमारी सेना ने टाइगर हिल फतह कर ली।
युद्ध आधुनिक हथियार से नहीं, साहस से जीता जाता है। कैप्टन यादव ने बताया कि मैंने 16.5 की उम्र में ही आर्मी ज्वाइन कर ली। 19 की उम्र में तो युद्ध में जाने का मौका मिल गया। फील्ड में तैनात हर सैनिक चाहता है कि मरने से पहले लक्ष्य पर तिरंगा लहराए और अंतिम शब्द वंदे मातरम् हों। कारगिल वार में मैं बतौर ग्रेनेडियर शामिल था, मेरे सामने कई साथी घायल हुए, जिन्हें नीचे भेजना चाहा लेकिन वह सिर्फ यही बोलकर लड़ते रहे कि विजय या वीरगति।