बहुचर्चित जीतू ठाकुर हत्याकांड : जेल में घुसकर टपका डालने वाले मामले का अहम फैसला: उस्ताद सहित तीन बरी , दो को आजीवन कारावास

ब्रह्मास्त्र इंदौर। यह वह दौर था जब अपराध के कई उस्ताद इंदौर के आपराधिक जगत पर अपना साम्राज्य चला रहे थे। जीतू ठाकुर हत्याकांड की इबारत 20 साल पहले 12 फरवरी 2002 में उस वक्त लिखी गई थी जब जीतू ठाकुर ने अपने साथियों के साथ मिलकर अपने ही उस्ताद विष्णु काशिद उर्फ विष्णु उस्ताद की हत्या कर दी थी। इसके बाद 5 साल बाद जून 2007 को महू उपजेल में मुलाकात के बहाने जीतू ठाकुर को टपका दिया। इसमें विष्णु उस्ताद के बेटे युवराज उस्ताद पर हत्या कराने का आरोप था। जिसे कोर्ट ने बरी कर दिया। इस मामले में कोर्ट ने दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, वहीं युवराज उस्ताद सहित तीन को बरी कर दिया।
मिल मजदूर से इंटक अध्यक्ष तक का सफर करने वाले विष्णु काशिद के आपराधिक साम्राज्य की शुरुआत एक हत्या से हुई थी। उसका असल काम जमीनों पर कब्जा व मकान खाली कराने का रहा। उसे मौत मिली भी तो उसके ही चेले जीतू ठाकुर के हाथों, जिसे वह बेटे के समान मानता था।
लोगों के मुताबिक रेलवे माल गोदाम के ठेके की कमाई को लेकर उनमें विवाद हुआ, जिसके बाद जीतू ने देवास की जेल में बंद रहते हुए अपने शागिर्दों से हत्या करवा दी। पुलिस ने इसमें जीतू ठाकुर, पप्पू डकैत, सतीश भाऊ, विष्णु उर्फ बमबम, मनोज खापर्डे, शब्बीर अली, तरुण साजनानी, नरेंद्र कुशवाह, मनीष शूटर, महेंद्र उपाध्याय और महेंद्र उर्फ टिम्मा को आरोपी बनाया।
इनमें 7 मार्च 2007 को कोर्ट ने सतीश और पप्पू डकैत को आजीवन कारावास, जीतू को छह साल व तरुण को तीन साल की कैद की सजा सुनाई थी, बाकी सभी बरी हो गए। इसके बाद विष्णु उस्ताद के बेटे युवराज पर आरोप लगा था कि जीतू ठाकुर की हत्या 23 जून 2007 को महू उपजेल में ही करवा दी।

पगड़ी ,दाढ़ी और मुंह व सिर पर
कपड़ा बांधकर आए थे हत्यारे

घटना वाले दिन आरोपी पगड़ी, दाढ़ी, मुंह और सिर पर कपड़ा बांधकर आए थे…जब शिनाख्तगी परेड हुई तो जेल प्रहरी जो घटना के वक्त जेल परिसर में थे, किसी को पहचान नहीं पाए। इसका भी फायदा युवराज उस्ताद को मिला। कोर्ट ने युवराज के अलावा विजय व यशवंत को भी बरी किया।