प्रेम प्रसंग में गोविंद राठौड का केस हत्याकाण्ड है या आत्महत्या?
बड़ौद- बड़ौद नगर में पिछले दिनों कायस्थ मोहल्ला से अलग-अलग जाति से बालिग युवक युवती एक साथ घर से फरार हो गये थे। फरार युवक के पिता गोविंद राठोड को लगातार पुलिस पुछताछ के नाम पर परेशान करती रही थाने पर बिठाकर प्रताडित करते थे।पुलिस अधीक्षक महोदय के हस्तक्षेप से थाने से उसे छोडा गया था लेकिन छोडने के तीन दिन बाद पुन: थाने पर बुलाने का फोन आया,वह सहकारी संस्था में घटना के एक दिन पहले दिनांक 27.06.22 को राशन बांट रहा था तो उसके साथी को बोलकर गया कि थाने पर बुलाया है में जा रहा हुं हत्या के एक दिन पहले दिनांक 27.06.22 को शाम के समय गोविद राठौड के घर से खाना भिजवाया था,खाना देने के लिये जो व्यक्ति आया था उसकों गोविन्द थाने में नही दिखाई दिया तो पुलिस वालों से पुछा तो बोले कि खाना हम दे देगे। इस प्रकार पुरी रात उसके बारे में कोई जानकारी परिवार वालों को नही मिली और दिनांक 28.06.22 को सुबह बड़ौद के लाल माता मंदिर के आगे जंगल में मृत पाया गया। बड़ौद नगर के नागरिकों ने दो बार बड़ौद बंद का आहव्वान कर हत्यारों को पकडने की मांग की। घटनास्थल पर प्रत्यकदर्शी लोगो ने गोविंद राठोड की लाश को देखा था कहीं भी आत्महत्या के निशान नही मिले थे। उसके बदन पर खुन के छींटे थे जो चैटों को इंगित कर रहे थे,पुलिस बड़ौद ने मर्ग क्रं. 32/22 पर कायमी कर बड़ौद स्वास्थ केन्द्र पर गोविंद की लाश का पोस्टमार्टम किया गया था। पोस्टमार्टम रिर्पोट के बारे में भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है पुलिस पर बढतें दबाव के चलते जांच अधिकारी एस.डी.ओ.पी.आगर ने आत्महत्या के लिये प्रेरित करने वाली भारतीय दण्ड विधान की धारा 306/34 में प्रकरण की कायमी कर तथा तीन व्यक्तियों को नामजद आरोपी बनाया गया है। जिसमें एक आरोपी राजेशकुमार पिता रमेशचंद्र को गिरप्तार कर लिया है। शेष दो आरोपी अनिल परमार पिता रामचन्द परमार व जितेन्द्र मकवाना पिता कैलाशचंद्र मकवाना फरार बताये जा रहे है। इस घटना से नागरिकों में एक बार पुन: रोष छा गया है। आधी अधुरी जांच के आधार पर प्रकरण को अलग दिशा दी जा रही है। हत्या के केस को आत्महत्या का केस क्यो बताया जा रहा है? नागरिकों ने ज्ञापन में हत्या के केस की जांच की मांग की है। अब नागरिक मांग कर रहे है कि प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिये।पोस्टमार्टम रिर्पोट किसी बडे विशेषज्ञ डाक्टर को दिखाकर उसकी राय लेना चाहिये। जो रिर्पोट बताई जा रही है वह संदेहास्पद है। पुरे घटनाक्रम में आरोपीगण के रिश्तेदार अपनी राजनैतिक पहुंच के चलते प्रकरण को रफा दफा करना चाहते है जबकि वास्तविक जांच अगर होती है तो प्रकरण की सारी परते खुल सकती है।मंत्रीस्तर के दबाव के चलते प्रकरण में टालमटोल की जा रही है वास्तविक अपराधियों तक पुलिस क्यो नही पहुंच रही है। यह जनचर्चा का विषय है?