फिजियोथैरेपी डे आज- दृष्टिहीन थैरेपिस्ट, मन की आंखों से देख लेते हैं मरीज की हडि्डयों का मर्ज
इंदौर। शहर में करीब दो हजार फिजियोथैरेपिस्ट काम कर रहे हैं, इनमें तीन दिव्यांग अनोखे हैं। ये तीनों दृष्टिहीन हैं, देख नहीं सकते, पढ़ नहीं सकते, लेकिन स्पर्श और अनुभव के आधार पर मरीजों को शारीरिक तकलीफ से उबार रहे हैं। तीनों थैरेपिस्ट प्रतिदिन 50 से ज्यादा मरीज देख लेते हैं। वे मरीज की आवाज, उसकी चाल, ढाल से अंदाजा लगा लेते हैं कि तकलीफ कहां और कैसी है। आज फिजियोथैरेपी-डे है।
66 वर्ष की उम्र में भी कर रहे थेरेपी
66 वर्षीय नरेंद्र कुमार चेलानी बीते 43 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं। इतने वर्षों में लाखों मरीज देख लिए, लेकिन शायद ही किसी ने मेरी डिसेबिलिटी पर सवाल उठाया होगा। मुझे बॉडी पेरालिसिस, फेशियल पेरालिसिस और स्पाइनल इंजुरी के केस हैंडल करने में विशेषज्ञता है। 10 साल पहले एक युवती ने एक्सीडेंट के बाद उम्मीद छोड़ दी थी, मैंने लगातार उसको थैरेपी देकर उठने- बैठने की स्थित में ला दिया।
दृष्टि कभी इलाज में बाधा नहीं बनी
52 वर्षीय देवेंद्र पाठक बताते हैं 32 साल की प्रैक्टिस में ऐसा मौका कभी नहीं आया कि मेरी दृष्टिहीनता के कारण कोई मरीज वापस चला गया हो। मन की आंखों से उसका दर्द पढ़ा और छूकर उसकी समस्या हल की।
विजन जीरो पर रिपोर्ट एक्सरे सॉफ्टवेयर से पढ़ लेते हैं
35 वर्षीय योगेश अहीरे अब बिल्कुल भी नहीं देख पाते हैं। बताते हैं फिजियोथैरेपिस्ट विधा ही ऐसी है जिसमें मरीज की समस्या छूकर ही महसूस की जाती है।
इसलिए हमें दिख नहीं भी रहा है तो कोई फर्क नहीं पड़ता। मरीज की रिपोर्ट्स, एक्सरे सॉफ्टवेयर से पढ़ लेते हैं।