रावण महाराज से इंटरव्यू : पुतले में आग लगाने के पहले सच्ची शपथ लें तो मानूं….
दशहरा मैदान से योगेंद्र जोशी
छी…च्च छी….यह आवाज आते ही मैं एकदम चौंक पड़ा। मैंने चारों तरफ नजरें दौड़ाई। बहुत ही मध्दिम रोशनी में कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था। मैंने अपनी बाइक की हेड लाइट के लिए हैंडल को इधर-उधर किया और उस की तेज रोशनी में देखने की कोशिश की। फिर भी कहीं कोई दिखाई नहीं दिया। कहीं कोई छाया या हलचल भी दिखाई नहीं दी। मुझे गहरा आश्चर्य हुआ। आखिर कोई तो है जो रुकने के लिए इशारे रूपी आवाज कर रहा है..? दरअसल, मैं अपने ऑफिस से रात 2 बजे शॉर्टकट रास्ता अपनाकर दशहरा मैदान से होते हुए बाइक से गुजर रहा था। फर्राटे भरती मेरी बाइक में तब अचानक ब्रेक लग गया, जब मुझे लगा कि कोई आवाज दे रहा है। जब चारों तरफ कोई दिखाई नहीं दिया तो मेरे मन में भय ने प्रवेश कर लिया। सिहरन सी दौड़ गई। तभी वही आवाज फिर आई। इस बार मैंने और ध्यान से देखा…परंतु, दशहरा मैदान में रावण के विशालकाय पुतले के अलावा कुछ और दिखाई नहीं दिया। मैंने पुतले की ओर देखा तो शरीर के जैसे तिरपन कांप गए। दिमाग सातवें आसमान पर परवाज करने लगा। पूरे शरीर में कांटे खड़े हो गए और उन्हीं के बीच में रोएं भी। हल्की सी गुलाबी ठंड के बीच भी सिर से पसीना चूने लगा। रावण की आंखें लाल – लाल दिखाई दे रही थी। रावण आंखें मटका भी रहा था और उसके चेहरे पर क्रोध अलग ही नजर आ रहा था। अंधेरे में भी उसकी तलवार चमक रही थी। दस शीश जैसे एक साथ मुझ पर शाब्दिक हमला करने के लिए बेताब हो रहे थे। मेरे मुंह से बरबस ही निकल पड़ा अss आप!
– ए कलमकार ! सुन, इधर- उधर क्या देख रहा है। मैं ही बोल रहा हूं। महाधिपति रावण…
मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही, परंतु इस आश्चर्य में भय कुछ ज्यादा प्रतिशत ही घुला हुआ था। पुतले में से आवाज आ रही थी।
– कौन है तू?
– मैंने हकलाते हुए अपना परिचय दिया। पत्रकार हूं नाइट ड्यूटी कर घर जा रहा हूं।
एक तेज अट्टहास सुनाई दिया, जिसने ऊपर से लेकर नीचे तक पूरे शरीर में भय की झुरझुरी पैदा कर दी। मुझे लगा ,जैसे उसकी आंखें मुझ पर इस ढंग से गढ़ गई हो , मानों सच्चाई को जानने का प्रयास कर रही हों।
( पुतले में से फिर आवाज आई )
– पत्रकार है, तो यह बता कि मुझे तुम लोग हर साल जलाते क्यों हो…?
( मैंने स्वभाववश पूछा )
– आपका एक साक्षात्कार (इंटरव्यू) कर लूं क्या..?
वह बोला – पहले मेरे सवाल का जवाब दे, फिर पूछ क्या पूछना चाहता है।
– मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने आज के ही दिन आप का वध किया था। इसीलिए बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक स्वरूप हम आप का पुतला जलाते हैं।
– वह तो ईश्वर थे। मर्यादा पुरुषोत्तम थे, पर जो लोग पुतला जलाते हैं ,सफेद वस्त्र पहनकर इतराते हैं, उनसे पूछो कि उन्होंने कोई पाप नहीं किया क्या..? वे निष्पाप मन से मेरे पुतले को अग्नि के हवाले करते हैं या फिर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए इस तरह का ढोंग करते हैं..?
– यह तो मुझे नहीं मालूम। एक परंपरा सी बन गई है, जिसका निर्वाह किया जा रहा है।
– मैं रावण हूं, परंतु जो लोग पुतला जला रहे हैं क्या वे भगवान राम के उंगली मात्र भी हैं ? उसने एक जोरदार ठहाका लगाया और फिर पूछा क्या वे भगवान राम की ही शपथ लेकर यह कह सकते हैं कि उन्होंने जीवन में कभी कोई भ्रष्टाचार, चोरी, डकैती ,लूट, झूठ बोलना, षड्यंत्र रचना, पर स्त्री पर बुरी नजर या अत्याचार करने जैसे अपराधों में से कभी कोई अपराध नहीं किया है?
– आपको क्या तकलीफ है? वह तो आपका सिर्फ पुतला ही जलाते हैं?
– हां यह तो सच है, लेकिन पुतला भी मेरा प्रतीक ही है। यह भी सच है कि ऐसे लोग मुझे यानी स्वयं के मन से बुराई को जलाना नहीं चाहते। सिर्फ उसका पुतला जलाते हैं। इसीलिए बुराई कभी नहीं मिटेगी। अगर पुतला बुराई का प्रतीक है तो फिर कोई बुरा व्यक्ति कैसे पुतले में आग लगा सकता है ..?
– तो फिर आप चाहते क्या हैं ? क्या पुतला दहन बंद कर दें? ( मेरे शब्दों में झुंझलाहट थी )
– मैं चाहता हूं कि जो भी मेरे पुतले में आग लगाए, वह पहले सच्चे मन से शपथ ले कि उसने जीवन में कोई पाप नहीं किया है। फिर देखना पत्रकार! यह जितने भी कलफ चढ़ाए कुर्ता पहने सफेद वस्त्र धारी बड़े-बड़े भाषण देते हुए मेरे सामने आ खड़े होते हैं, ठहर नहीं पाएंगे।
– यह कलयुग है। लोग झूठी शपथ भी ले सकते हैं।( मैंने मेरे मन की आशंका को उजागर किया)
– हां! होगा तो यही, परंतु ऐसे लोगों को ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा, क्योंकि मैं ब्राह्मण वंश से हूं।
(अब तक मुझमें हिम्मत आ गई थी। मेरा भय दूर होता जा रहा था। )
– आजकल लोग जातिवाद को नहीं मानते।
– लोग तो धर्म को भी नहीं मानते। ( करारा व्यंग्य था रावण के शब्दों में ) मामला ज्यादा खिंचता देख मैंने विषय परिवर्तन किया।
– आपको बहुत विद्वान माना गया, फिर क्या आपको यह शोभा देता था कि धोखे से किसी स्त्री का हरण कर लो? यह तो ठीक नहीं है ?
– मानता हूं पत्रकार, तूने मेरे मर्म पर चोट की है। पर , जरा यह तो बता। मेरा संबंध तो राक्षस कुल से भी था। वर्तमान में मानव काल की ही बात करते हैं। बता अगर किसी मानव की रक्त रंजित आर्तनाद करती हुई भगिनी अपने भाई के पास पहुंचे और कहे कि किसी व्यक्ति ने उसके साथ छेड़छाड़ या कोई अनुचित करतूत की है, तो क्या उस भाई को क्रोध नहीं आएगा? वह उसे शत्रु भाव से नहीं देखेगा? और अगर कोई भाई बाहुबली हो, तब तो फिर वह क्या कुछ नहीं कर गुजरेगा। मैंने भी एक भाई होने का धर्म निभाया। यह और बात है कि मामला कुछ और निकला। मैं पृथ्वी का सम्राट था, सर्वशक्तिमान था। अपने भाई खर – दूषण के मारे जाने और बहन का अपमान पता चलने के बाद उस वक्त जो समझ में आया कर गुजरा। मुझे लगा दो तपस्वी ही तो हैं, क्या कर लेंगे?
– हरण के बाद जब पता चल गया था कि वे भगवान हैं और सीता मैया स्वयं लक्ष्मी स्वरूपा। तब भी आपने अपनी ही मंदोदरी मैडम की बात नहीं मानी और युद्ध किया?
– अरे पत्रकार! शायद तूने रामचरितमानस नहीं पढी। उसमें सब सही – सही दिया है। मैंने मन में सोचा यदि मानव है तो मार ही डालूंगा। उसमें कोई संशय नहीं और यदि वे ईश्वर हैं तो सारे राक्षस कुल को तार दूंगा । ईश्वर के हाथों वध होने से सभी को मोक्ष मिलेगा। ऐसे शुभ अवसर को मैं अपने हाथों से कैसे जाने देता। मैंने तो अपने कुल को तार दिया। परंतु , आजकल क्या हो रहा है? सगे भाई ही एक दूसरे के दुश्मन हो रहे हैं। जरा सी संपत्ति पर एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं।
– आपने भी तो अपने भाई विभीषण को लात मार दी थी?
– हां मारी थी। मैं चाहता था कि पूरे कुल को तार दूं और वह बार-बार उस में बाधा बन रहा था। खैर, उद्धार तो उसका भी हुआ परंतु आज कोई भी जैसे अपने बच्चे का नाम रावण नहीं रखता तो कोई विभीषण भी नहीं रखता। एक बात और समझ ले पत्रकार, जिसके साथ उसका भाई नहीं होता, परिवार नहीं होता उसे पराजय झेलनी ही पड़ती है। यह हर युग का सिद्धांत है।
– ( मैंने फिर विषय परिवर्तन किया ) पहले राजतंत्र था तो तानाशाही होती थी। अब लोकतंत्र है।
– सब कहने की बात है। मंत्रणा पहले भी होती थी, आज भी होती है। लोकतंत्र में आज के नेता सिर्फ यह देखते हैं कि उनके पक्ष में मत कैसे मिलेंगे। इसके लिए षड्यंत्र रचते हैं, छल- कपट करते हैं, झूठे वादे करते हैं। निर्धन प्रजा का कौन ध्यान रखता है ? वह तो आज भी महंगाई, भ्रष्टाचार और लूट खसोट का शिकार हो रही है। राजनीति, धर्म,,समाजसेवा का ढोंग करने वाले ऐसे कितने ही दुष्ट हैं जो दुष्कर्म पर दुष्कर्म किए जा रहे हैं। यदि मुझे अपराधी मानते हो तो वह मुझसे भी बड़े अपराधी हैं। इस बुराई पर कब विजय पाओगे पत्रकार ..?
मैं निरुत्तर था।
इंटरव्यू के अंत में मेरा अगला सवाल मुंह से निकलने ही वाला था कि समाज के लिए रावण महाराज आप क्या संदेश देना चाहते हैं?
तभी, दूर सन्नाटे को चीरती हुई किसी वाहन के आने की आवाज आई और रावण का पुतला उसी स्वरूप में लौट गया, जैसा उसे बनाया गया था।
मेरे मन में विचारों का तूफान उठने लगा – रावण का पुतला भले ही आज शाम फिर जला दिया जाएगा लेकिन बुराई पर विजय तो फिर भी हासिल नहीं हो पाएगी। जिस रावण को हम दुष्ट और बुराई का प्रतीक बताते हैं , वह तो समाज में दूध में पानी की तरह घुल चुकी है। यानी रावण जिंदा है और जिंदा ही रहेगा। रावण महाराज के ठहाके तब तक गूंजते रहेंगे। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को फिर से अवतार लेना होगा।