महाकाल लोक में लौकिक कुछ भी नहीं , सब कुछ अलौकिक, असाधारण और अविस्मरणीय
उज्जैन में धर्म सभा की तरह विशाल जनसभा को संबोधित किया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
पृथ्वी के नाभि केंद्र और भारत की आत्मा में उज्जैन
महाकाल लोक की भव्यता आने वाली पीढ़ी को अलौकिक दिव्यता के दर्शन कराएगी
उज्जैन। श्री महाकाल लोकार्पण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी धर्म सभा की तरह कार्तिक मैदान पर विशाल जनसभा को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत जय श्री महाकाल, महाकाल महाराज की जय के नारे से की। मोदी ने महाकाल महा रूद्र नमोस्तुते कहते हुए कहा कि यह ऊर्जा, यह उत्साह अवंतिका की आभा अद्भुत है। यह आनंद ,महाकाल की यह महिमा, महाकाल का महात्म्य है। महाकाल लोक में लौकिक कुछ भी नहीं है। साधारण कुछ भी नहीं है । सब कुछ अलौकिक है, असाधारण है, अविस्मरणीय है, अविश्वसनीय है। आज महसूस कर रहा हूं कि हमारी तपस्या और आस्था से महाकाल प्रसन्न होते हैं। उनके आशीर्वाद से ऐसे ही भव्य स्वरूप का निर्माण होता है। महाकाल का आशीर्वाद जब मिलता है तो काल की रेखाएं मिट जाती हैं। समय की सीमाएं सिमट जाती हैं। आनंद के अवसर प्रतिष्ठित हो जाते हैं। अनंत यात्रा आरंभ हो जाती है। महाकाल लोक की भव्यता भी समय की आने वाली कई पीढ़ियों को अलौकिक दिव्यता के दर्शन कराएगी। भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिकता देगी। इस शुभ अवसर पर राजाधिराज महाकाल के चरणो में शत-शत नमन करता हूं। मैं आप सभी को देश और दुनिया में महाकाल के सभी भक्तों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। विशेष रुप से भाई शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार का मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं ,जो लगातार इतने समर्पण से इस सेवा यज्ञ में लगे हुए हैं। मैं मंदिर ट्रस्ट से जुड़े सभी लोगों, संतो और विद्वानों का भी आदर पूर्वक धन्यवाद करता हूं, जिन के सहयोग से इस प्रयास को सफल किया।
महाकाल की नगरी प्रलय के प्रहार से भी मुक्त
महाकाल की नगरी उज्जैन के बारे में कहा गया है महाकाल की नगरी प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है। हजारों वर्ष पूर्व जब भारत का भौगोलिक स्वरूप आज से अलग रहा होगा, तब से यह माना जाता रहा है कि उज्जैन भारत के केंद्र में है। ज्योतिष गणना में उज्जैन न केवल भारत का केंद्र रहा है बल्कि यह भारत की आत्मा का भी केंद्र रहा है। यह वह वह नगर है जो पवित्र सात पुरियों में से एक गिना जाता है। यह वह नगर है जहां भगवान श्री कृष्ण ने भी आकर शिक्षा ग्रहण की। उज्जैन में महाराजा विक्रमादित्य का प्रताप देखा है, जिसने भारत के नए स्वर्णकाल की शुरुआत की थी। महाकाल की धरती से विक्रम संवत के रूप में भारतीय कालगणना का एक नया अध्याय शुरू हुआ था।
उज्जैन के कण-कण में ईश्वरी ऊर्जा
क्षण – क्षण में पल-पल में उज्जैन इतिहास से पटा हुआ है। कण-कण में और कोने कोने में ईश्वरी ऊर्जा संचालित हो रही है। जहां कालचक्र का चौरासी कल्पो का प्रतिनिधित्व करते 84 शिवलिंग हैं। चार महावीर हैं। एक विनायक है। 8 भैरव हैं। अष्ट मातृकाएं हैं। नवग्रह हैं। 10 विष्णु हैं। 11 रुद्र हैं। 12 आदित्य हैं ।24 देवियां हैं और 88 तीर्थ हैं। और इन सब के केंद्र में राजाधिराज कालाधिराज महाकाल विराजमान हैं। एक तरह से हमारे पूरे ब्रह्मांड की उर्जा को प्रत्येक स्वरूप में उज्जैन में स्थापित किया गया है। उज्जैन में हजारों वर्षों तक भारत की संपन्नता और समृद्धि का ज्ञान और गरिमा का सभ्यता और साहित्य का नेतृत्व किया है। इस नगरी का वास्तु कैसा था, इसका वैभव कैसा था, सौंदर्य कैसा था इसके दर्शन हमें महाकवि कालिदास और बाणभट्ट के जैसे कवियों की रचनाओं में होता है।
विश्व पटल पर लहरा रहा परचम
उन्होंने कहा कि किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव इतना विशाल तभी होता है जब उसकी सफलता का परचम विश्व पटल पर लहरा रहा हो। हर सफलता में शिखर तक पहुंचने के लिए यह जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कृष्ट को छुए। अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठा कर के खड़ा हो जाए। इसलिए आजादी के अमृत काल में भारत ने गुलामी की मानसिकता से मुक्ति औरष अपनी विरासत पर गर्व का आह्वान किया है, इसलिए आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण, काशी विश्वनाथ धाम आदि में भारत की सांस्कृतिक राजधानी का गौरव सभी दूर विकास के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। उन्होंने अपने भाषण में सिंहस्थ का भी जिक्र किया।