गैर आदिवासी गांव में हुआ भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा का लोकार्पण
रुनीजा । “इतिहास में जिन्होंने राष्ट्र ,धर्म और संस्कृति के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर त्याग,तप और बलिदान किया वे भगवान हो गए। राम,कृष्ण, महावीर,बुद्ध में से किसी ने स्वयं को भगवान नहीं कहा, बल्कि उनके अनुयायियों ने उन्हें भगवान माना और इसी परंपरा को भगवान बिरसा मुंडा ने आगे बढ़ाया।” यह बात गजनीखेड़ी में छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर आयोजित राष्ट्र शक्ति स्थल, भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में शहीद समरसता मिशन के संस्थापक व राष्ट्रीय संयोजक मोहन नारायण ने कही।
सामाजिक समरसता की मिसाल साबित हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता शहीद धर्मेंद्र बारिया के पूज्य माता-पिता कैलाश बारिया एवं कांताबाई बारिया ने की। हिंदू युवा जनजाति संगठन के राष्ट्रीय संयोजक कमल डामोर एवम निल कण्ठ धाम घटवास आश्रम के संस्कार ऋषि प,. दिनेशजी व्यास बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में मोहन नारायण ने अपने वक्तव्य में कहा कि – “ब्रिटिश काल में सर्वप्रथम अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ उल गुलान की घोषणा करने वाले क्रांतिकारी बिरसा मुंडा को उनके त्याग और बलिदान ने भगवान बना दिया। बिरसा कोई व्यक्ति नहीं एक विचार थे। गजनीखेड़ी ने समरसता का जो मंत्र उनकी प्रतिमा को राष्ट्र शक्ति स्थल के रूप में स्थापित करके देश को दिया है इसके लिए इस गाँव व ग्रामीणों का नाम समरस भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा। तथाकथित इतिहासकारों ने राष्ट्र के जनजातीय नायकों के साथ अन्याय किया. विदेशी आक्रांताओं व ब्रिटिश आततायियों के चाटुकार बनकर उन्होंने जनजाति क्रांतिवीरों के त्याग व बलिदान को गुमनामी की खाई में डाल दिया। भगवान बिरसा, वेगडाजी भील, छत्रपति शिवाजी के माउलो, राणा पूंजा भील आदि ने यदि अपना सर्वस्व इस राष्ट्र को समर्पित नहीं किया होता तो शायद आज भारत, भारत न होता! और शहीद समरसता मिशन ने संकल्प है कि – जिनके बलिदानों पर खड़ा है हिंदुस्तान , कदम-कदम पर खड़े करेंगे उनके निशां।