गजनीखेड़ी के मटकों की मांग गाँवों के साथ शहरों में भी बड़ी
रुनीजा । गर्मी शुरू होते ही चारो ओर देसी फ्रिज के नाम से मशहूर मिट्टी के मटको की मांग बढ़ गई है।
सूर्य की तपिश शुरू होते ही शीतल जल , व छाया की आवश्यकता बढ़ गई है। दिन में बढ़ती गर्मी से बेचैनी शुरू हो गई है। गर्मी में मिट्टी के ठंडे पानी के मटके व घड़े की मांग बढ़ गई है सुविधा संपन्न व्यक्ति भी महंगे फ्रिज के घर में रहते हुए भी मटके के पानी को ज्यादा तवज्जो देते हैं। वजह यह है कि घड़े का पानी का गर्मी में ज्यादा फायदे मंद होता है । मिट्टी के मटके या घड़े का पानी न तो अधिक ठंडा होता है और ना ही गर्म। ऐसे में घड़े का पानी पीना लोग अधिक पसंद करते हैं।
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है रुनिजा सहित आस पास गावो व शहरों में गजनीखेड़ी मटकों की मांग बढ़ने लगी है। गजनी खेड़ी के बद्रीलाल , ईश्वर लाल , मदनलाल ,बाबूलाल , मोहनलाल , राहुल नगरिय प्रजापत परिवार के सभी सदस्य विगत चार माह से ठंड में मटके बंनाने जुटे हुए है। सभी परिवार मिलकर चार माह में 20 हजार से अधिक के मटके बनातें है। इस सन्दर्भ में मदन लाल नगरिया ने बताया प्रतिदिन 30 , 35 मटके बना लेता हूं। इसके अलावा अन्य मिट्टी के आयटम भी बनाना पड़ते है नही तो ओर ज्यादा मटके बन सकते। ईश्वर लाल ने बताया कि मटकों के अलावा कलश, छोटे कलश शादी ब्याह के मामटले के अलावा गंगाजल कलश आदि भी बनाये हैं। सभी परिवारों ने बताया उनके मटके रुनीजा सहित आसपास के ग्रामो के अलावा रतलाम , बड़नगर ,खाचरोद , नागदा , आदि शहरों हमारे मटकों की मांग ज्यादा रहती है। यह मटके ठंड के दिनों में ही बनाते हैं। इनका पानी ठंडा रहता हैं। जब उनसे पूछा गया कि एक मटका कितने बिकता है तो सभी बताया कि 130 , 150 200 रु तक एक मटका बिकता तथा 50 , 60 रु की बचत एक मटके पर होती है मटके बनाने के लिए राजस्थान से भी कारीगर बुलाते जो हमारे यहां विगत 50 साल से आ रहे ।60 रु प्रति मटका बंनाने की मजदूरी उनको देना पड़ती इसके अलावा पकाने की लकड़ी आदि सामग्री भी लगती। ईश्वर ने बताया आधुनिकता के इस दौर में हाथ के चाक की जगह इलेक्ट्रानिक चाक का उपयोग करते यह चाक खातेगाँव से लाते वही इलेक्टानिक चाक बनते है।