करीब चार साल चले जीर्णोद्धार के बाद राजवाड़ा अब आम लोगों के लिए खुला
वाहनों के लिए अब यहां पार्किंग सुविधा जरूरी
दैनिक अवन्तिका इंदौर
राजवाड़ा शहर का हृदय स्थल है और आसपास का सारा क्षेत्र स्मार्ट सिटी के रूप में लगातार निखर रहा है। करीब चार साल चले जीर्णोद्धार के बाद राजवाड़ा अब आम लोगों के लिए खुल चुका है। शहर की शान को पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। यह पर्यटकों की बड़ी संख्या को आकर्षित कर सकता है। राजवाड़ा दर्शन के अलावा अन्य सुविधाओं पर विचार किया जाना जरूरी है। सबसे बड़ी समस्या पार्किंग की है, क्योंकि व्यावसायिक क्षेत्र और शहर का हृदय स्थल होने के नाते यहां यातायात का दबाव रहता है। नजदीक में एक ही पार्किंग है, लेकिन उसकी क्षमता भी बहुत कम है। बाइक फुटपाथ पर खड़ी करनी पड़ती हैं। यह आसपास के लोगों के लिए ही पर्याप्त नहीं होती तो पर्यटकों की बात ही क्या। अत: नए जमाने के हिसाब से सुविधा जुटाना जरूरी है। लोग उमड़ने लगें, इसके पहले आवभगत के इंतजाम कर लेने चाहिए।
पुलिस को समय के साथ करनी होगी कदमताल
एक निर्दोष महिला प्राचार्य को सिरफिरे की वजह से जान से हाथ धोना पड़ा। पुलिस, तकनीकी शिक्षा विभाग के साथ समाज भी कठघरे में खड़ा है। दो टीआइ पर कार्रवाई हो भी गई। यह कार्रवाई उदाहरण बनेगी, इसमें शक है, क्योंकि जड़ का इलाज नहीं किया जा रहा। आबादी के मुकाबले पुलिस बल की संख्या नहीं बढ़ रही। काम का बोझ और नए जमाने की चुनौतियां जरूर बढ़ रही हैं। लापरवाही की सजा जरूरी है पर सिस्टम को दोषमुक्त बनाना अधिक आवश्यक है। नहीं तो घटनाएं होती रहेंगी और ऐसी कार्रवाई भी। खासकर पुलिस और प्रशासन के मामले में बैकअप की गुंजाइश बिलकुल नहीं है। क्या शिकायतें या क्षेत्र बढ़ने पर रुटीन काम के लिए अतिरिक्त बल लगाने जैसा कोई विचार कभी सामने आया?
प्रशासन को चलनी होगी नई चाल
अप्रैल, मई का महीना शहर के कुछ इलाकों में एक नई चुनौती लेकर आता है। यह है मुख्य रहवासी इलाके में शराब दुकान खुलना, वह भी स्कूल या धर्मस्थलों के पास। आबकारी विभाग व प्रशासन की अघोषित प्रतिद्वंद्विता में शराब ठेकेदार ही बाजी मारता है और ज्यादातर मामलों में जनता निराश होती है। इस बार जनता ने अभी से प्रशासन को जगाना शुरू कर दिया है। कुछ लोग जनसुनवाई में भी पहुंच गए कि नई दुकानों के आवंटन में राहत मिले। प्रशासन चाहे तो अपनी अग्रिम चाल चल सकता है। जनता की परेशानी को सोचकर जरूर कोई निरोधात्मक रास्ता निकाल सकता है। प्रशासन ठान ले तो क्या नहीं कर सकता। बस हिम्मत दिखाने की बात है। अन्यथा आबकारी नियमों की आड़ लेने का विकल्प तो उसके पास सदैव रहेगा ही।