सहस्त्रधारा से निकली महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति दिन में तीन बार बदलती है भाव
नगर प्रतिनिधि इंदौर
भगवान शिव की भक्त अहिल्याबाई की इस नगरी में देवी दुर्गा की भी आराधना की जाती रही है। इस शहर में जितने प्राचीन शिव मंदिर हैं, उतने ही प्राचीन देवी मंदिर भी हैं और देवी दुर्गा को समर्पित ऐसा ही एक दिव्य मंदिर शहर के मध्यम बना हुआ है।
शहर की हृदयस्थली राजवाड़ा के समीप सुभाष चौक पर देवी दुर्गा का प्राचीन मंदिर आस्था का केंद्र है। इस मंदिर का इतिहास होलकर राजवंश से जुड़ा है। यहां देवी दुर्गा का विग्रह महिषासुर मर्दिनी के रूप में स्थापित है। देवी दुर्गा के साथ यहां महाकाली और महासरस्वती की मूर्ति भी स्थापित है। यहां भैरवजी की मूर्ति भी है। करीब एक करोड़ की लागत से 2017 में मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया गया।
इतिहास : जिस स्थान पर आज मंदिर है वह स्थान कभी होलकर सेना की चौकी हुआ करता था। कहा जाता है कि देवी दुर्गा ने तुकोजीराव होलकर प्रथम को स्वप्न में दर्शन देकर यह मूर्ति महेश्वर के पास सहस्त्रधारा से निकालकर इंदौर में स्थापित करने को कहा। तुकोजीराव ने मूर्ति को हाथी पर बिठाकर नगर भ्रमण कराया और संकल्प लिया कि जहां हाथी रुकेगा, वहीं मंदिर बनाकर स्थापना कर दी जाएगी। हाथी चौकी के सामने रुका और चौकी मंदिर में बदल गई। 1781 में फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को इस मंदिर में मां दुर्गा की यह मूर्ति स्थापित हुई। उस वक्त मां को चढ़ाई गई होलकर कालीन दो तलवार आज भी मंदिर में रखी हुई हैं।
तीन बार मां का बदलता रूप : सफेद संगमरमर से बनी इस मूर्ति पर तिल भी हैं जो किसी के द्वारा बनाए नहीं गए हैं। मान्यता है कि यह मूर्ति स्वयंभू है और दिन में तीन बार मां का स्वरूप बदलता है। सुबह बाल्यावस्था, दोपहर में युवा और शाम को वृद्धा अवस्था के भाव मां के चेहरे पर नजर आते हैं। मां की पूजा और श्रृंगार मराठी परंपरानुसार होता है। होलकर कालीन मंदिर होने के कारण मराठीभाषी परिवारों की यहां गहरी आस्था है। नवरात्र में यहां खासी संख्या में महिलाएं देवी की ओटी भरती हैं।
यहां होती है पूरण की आरती
पुजारी पं. उदय एरंडोलकर मां दुर्गा दुखों को दूर करने वाली हैं। महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां दुष्टों का नाश करती हैं। यहां वासंती और शारदीय नवरात्र के अलावा स्थापना दिवस पर विशेष अनुष्ठान होते हैं। दोनों नवरात्र की दशमी तिथि पर यहां पूरण की आरती होती है तथा पूरण पोली का ही भोग भी लगता है। नवरात्र में दिन में दो बार देवी का श्रृंगार किया जाता है।
मन को मिलती है शांति
भक्त चेतन पुष्पद का कहना है कि इस मंदिर को लेकर मन में खासी आस्था है। मैं कई बार इस मंदिर में दर्शन के लिए आता हूं। देवी के दिव्य रूप के दर्शन कर न केवल मन को शांति मिलती है, बल्कि मनोकामना भी पूरी होती है। नवरात्र में यहां दर्शन करने का और भी महत्व बढ़ जाता है।