सत्य साधना के चार आधार स्तंभ-गुरु, श्रद्धा, धैर्य, निरंतरता -श्रीपूज्यजी
महिदपुर । प्रभु महावीर के दिव्य वचन ही देशना है। यह शरीर जिसे हमने धारण कर रखा है यह नौका है आत्मा नाविक है।सजग रहे तो सारे संसार सागर को पार कर सकते हैं। आत्मा शरीर के साथ घुलमिल गई है दूध-पानी सी।अपन ऐसा जीवन बनाएं जिससे दोनों को अलग कर सकें।हंस की चोंच में वह सामर्थ्य होता है।यति दीक्षा में शरीर को शरीर और आत्मा को आत्मा कर देता है।यति दीक्षा का महत्व भवों का अभाव व भावों के जंजाल से छुटकारा पाने के रास्ते बढ़ें। 10 विरति धर्म का पालन, सार को आत्मसात कर इसका पालन शुरू कर देते हैं। यति धर्म अपनाते,जीवन में धारण करअनमोल तत्व के साक्षी बनें।देवों के देव देवाधिदेव,गुरु परंपरा में देव गुरुदेव।उज्जैन एक माह रहने का कारण दादा इकतीसा प्रेरक श्री पूज्य परंपरा के 39वें में पट्टधर श्रीपूज्यजी श्री जिनविजयेद्र सूरिजी मसा ने अपना अंतिम चातुर्मास उज्जैन में व्यतीत किया था।हर वर्ष वे उज्जैन आए। उज्जैन विशिष्ट ऊर्जा प्राप्त करने का स्थान रहा।गोपाल जी की जग प्रसिद्ध रचना सब दूर गाई जाती है।दीक्षा लेने वाले के सम्मुख यह प्रतिज्ञा,संकल्पबद्ध होना है,उसके संयम राह में रोड़ा,अवरोध ना बनाना चाहिए। प्राणी के मुंह पर घास ना खाने देने के लिए छीका बांधने के कर्म का यह प्रभाव रहा कि13 माह निरंतर साधना,जल त्याग,आहार त्याग में रहे।हम भी दुखों का पिटारा इकट्ठा न करें।किसी में दीक्षा के भाव आ जाने पर बाधक न बनें।वे स्वयं ही अंतराय बाधक,दूसरे के लिए भी डाल रहे हैं। इस बात के विस्तृतीकरण में सभा में उपस्थित अनेकानेक लोगों ने दीक्षा में बाधक नहीं बनने का प्रण-संकल्प लिया।सत्य साधना के चार आधार स्तंभ हैं-गुरु,श्रद्धा,धैर्य,निरंतरता।आप सभी जन जानते हैं कि अच्छा कार्य सीखने के लिए गुरु बनाना पड़ता है और उसके बताए मार्ग में श्रद्धा रखना पड़ती है।साथ ही धैर्य रखना पड़ता है,कभी भी बीज बोने पर ही एकदम पूरा वृक्ष नहीं बन जाता और अंतिम बात है उसमें निरंतरता भी बनी रहना चाहिए।धर्म के साम्राज्य की कमी होने पर बड़ी विकटता बढ़ती है। इस बात पर गुरुदेव ने प्रवचन हाल में एक प्रयोग भी किया-पूछा,अभी तक किसने सत्य साधना नहीं की तो कुछ हाथ उठे।किसने सत्य साधना की तो बहुत सारे हाथ उठे।जिसने सत्य साधना की उनमें कौन-कौन निरंतर कर रहे हैं तो कुछ हाथ उठे।ऐसे में गुरुदेव ने बताया कि ऐसा नहीं होना चाहिए-यह विचार जंगम युग प्रधान,वृहद भट्टारक, खरतरगच्छाधिपति जैना चार्य 1008 श्रीपूज्यजी श्रीजिनचंद्र सूरिजी मसा ने असाड़ी गली स्थित खरतरगच्छ आराधना भवन में विशाल जनमेदिनी के समक्ष प्रस्तुत किए।
भावी श्रीपूज्य यति अमृतसुंदर जी ने कहा- दीक्षा आधार 10 यति धर्म साधना के अलग-अलग चरण हैं,मुक्ति के मार्ग हैं।क्षमा से मैत्री भाव जागृत होता है और साधना की ओर प्रवृत्त होते हैं।सामने वाले की गलतियों से यह मुक्त कर देता है।
मार्गव-अहंकार रहित विनम्रता का भाव रखना।आर्गव सरलता-गलती,निंदा कर छुपाने के बजाय प्रकट कर देना।चार कषाय होते हैं- क्रोध,मान,माया,लोभ।क्रोध को क्षमा से,मान को मार्गव शांत से, माया को सरलता से और लोभ को निर्लोभता से शांत करना है।अकिंचन साधना सार्थक होने के लिए निर्लोभता पर आना पड़ता है।मुक्ति के लिए सत्य,संयम,तप,त्याग सहित पांच चीजें हैं।यति धर्म इसी रास्ते ले जाता है।मुक्ति प्राप्त होने के बाद ब्रह्मचर्य प्राप्त होता है।यति जिन शासन की सेवा करते हैं।क्षमा पंच परमेष्ठी का सार है।पांचों को क्षमाश्रमण कहा जाता है।14 पूर्वों का सार विनम्रता है।सम्यक दर्शन को प्राप्त करने के लिए क्षमाशील बनाना होता है। केवल ज्ञान प्राप्त करने के लिए नवकार,नमस्कार महामंत्र। सम्यक चारित्र तप से प्राप्त होता है।सारे कर्मों को क्षय करने के लिए साधना में रुचि रखते हैं।आर्या समकित प्रभाजी ने कहा कि संयम की मजबूती,दृढ़ता, सफलता सब में आए।दीक्षा का मतलब है दिव्य दृष्टि का दान। प्राप्तकर्ता महाभागी सौभाग्यशाली होता है।हमें जिस चीज का इंतजार रहता है उसके लिए दुखी होते रहते हैं और उस इच्छा के पूर्णता पर हमें खुशी होती है।वर्षों बाद प्राप्त चीजों की खुशी आपको होती है किंतु मैं 10 वर्षों से नहीं,भवों-भवों से कर रही वो वैराग्य अमृत मिला वह अमूल्य है।गुरु के प्रति श्रद्धा के रूप में एक गीत प्रस्तुत किया।संयम में मान सम्मान का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।जिन शासन की अवहेलना मत करिएगा।रेड लाइट(लाल सिग्नल) के रूप में,जैसे माता-पिता का एक बच्चा हो वह दीक्षा ले,सेना में जाए,डॉक्टर बने,विदेश जाए, कोई फर्क नहीं होना चाहिए। यतिसुमतिसुंदरजी ने कहा-जीते जी दूसरा जन्म मिल जाए तो कैसा लगेगा? मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है।पिछली गलतियों को दोहराएं नहीं,उन्हें छोड़ें। मुझे खुशी है महावीर परंपरा में सम्मिलित होने का मुझे मौका मिला।जिस परंपरा ने सभी क्षेत्रों में मंत्र-तंत्र,आयुर्वेद रूप में दिया ही दिया।सत्य साधना का मार्ग भी दिया है।यह परंपरा भीतर की शांति को पाने की है इसीलिए स्थायी है।एक हजार वर्षों से अनुशासन अब तक कायम है।संयम जीवन बिताने की जिन शासन की देशना मिली है।जीवन कैसे जीना, साधना सीखने के बाद उपकारों को स्मरण रखते हुए कृतज्ञता व्यक्त करना चाहिए।कई प्रसंगों,उदाहरणों के माध्यम से अपनी बात को सभी ने प्रतिपादित किया।ऐन सुबह से ही दादावाड़ी परिसर में नवकारसी लाभार्थी शैलेष चौपड़ा मित्र मंडल द्वारा रखी गई आहार सामग्री का लाभ लेकर नगरजन का श्रीपूज्यजी मसा एवं नूतन दीक्षित यति-यतिनियों के प्रथम नगर प्रवेश का नगर में उल्लास का वातावरण देखते ही बनता था।दादाबाड़ी परिसर में 6जैन संतों की रंगोली की सभी ने भूरि- भूरि प्रशंसा की।नगर के प्रमुख मार्गो से गाजे-बाजे से निकले जुलूस में धमार्लुजनों का अभिवादन स्वीकार करते हुए बनाई गई गहुली में बहुमान स्वरूप अक्षत,श्रीफल,मुद्रा आपके समक्ष पाट पर सजाई गई।नगर के मार्गों पर जय-जय कारों से आकाश गुंजायमान हो गया।धर्म सभा में सर्वप्रथम महिला मंडल ने मंगलाचरण स्वागत गीत-धन्य है भाग्य हमारे,जो आप यहां पधारे- का गायन किया।महिदपुर की धर्म धरा पर मुमुक्षु परिवार का सम्मान,अनुमोदना संघ अध्यक्ष सरदारमल चौपड़ा शांताबाई ने किया।शर्मिला राजेश राख्यान का बहुमान इंदिराजी की बिटिया और शुभा गौतम बोथरा का।संचालन कर्ता बीकानेर के डॉ.श्रेयांश जैन ने साधना,सादगी,सरलता की प्रतिमूर्तिआचार्य उद्योतनसूरिजी और श्रीपूज्य जिनेश्वर सूरिजी का नामोल्लेख कर नमन किया।स्वामी वात्सल्य के लाभार्थी भी शैलेष चौपड़ा मित्र मंडल एक जैसे परिधान में ही थे।आज की प्रभावना का लाभ शरदचंद्र सुनील कुमार डोसी परिवार ने लिया। तत्पश्चात दोपहर 2बजे श्री शत्रुंजय आदिनाथ तीर्थधाम में सबका मंगल प्रवेश हुआ।दीक्षा महोत्सव में श्रीपूज्यजी ने पत्रकार जवाहर डोसी पीयूष और शिरीष सकलेचा को दोनों हाथों से शुभाशीर्वाद दिया।