एमपीईबी में उगाही का बड़ा खेल- उज्जैन विद्युत मंडल के हर डिवीजन से 40000 रुपये की अवैध वसूली!
बड़े टारगेट की आड़ में एक बड़े अफसर के भ्रष्टाचारी जाल में उलझे हुए हैं खुद अपने विभाग के ही लोग
उज्जैन। विद्युत विभाग उज्जैन में वसूली घोटाले की जमकर चर्चा हो रही है। एमपीईबी का निजीकरण होने के बाद मंडल के एक बहुत बड़े अधिकारी ने भ्रष्टाचार का ऐसा जाल फैला रखा है, जिसमें कई अधिकारी और कर्मचारी उलझे हुए हैं। मातहतों की स्थिति सांप- छछूंदर जैसी हो गई है। यानी वे न तो साहब द्वारा अपने ही विभाग के लोगों पर चलाए जाने वाले अवैध वसूली अभियान को निगल पा रहे हैं और न ही उगल पा रहे हैं। दबी जुबां से यह बात भी सामने आई है कि
हर डिवीजन से 40000 रुपये की वसूली की जाती है, जिसमें 5000 रुपये प्रत्येक मातहत अधिकारी से वसूल किए जाते हैं। उज्जैन क्षेत्र में लगभग 27 डिवीजन हैं। जो राशि इकट्ठा की जाती है, वह स्टेनो के माध्यम से या अन्य किसी स्रोत से वसूली जाती है। चर्चा तो यहां तक है कि यह भ्रष्टाचार की राशि ऊपर भी पहुंचाई जाती है ।
उगाही की भ्रष्टाचारी तिकड़म
अधीनस्थ कर्मचारियों और अधिकारियों को परेशान करने के लिए इतना अधिक टारगेट दिया जाता है, जो व्यवहारिक रूप से पूर्ण करना लगभग असंभव होता है। बस कार्य में निष्क्रियता और लापरवाही के बहाने यहीं से उगाही का खेल शुरू होता है।
बड़े साहब के भ्रष्टाचार की तिकड़मों के बारे में विद्युत मंडल के मातहत अधिकारी व कर्मचारी अच्छी तरह जानते हैं। इनमें से अधिकांश बड़े साहब की प्रताड़ना के शिकार हैं। साहब तो जैसे बैठे ही हैं कि कहीं कोई मातहत छोटी सी चूक करे और उसे वे बड़ा रूप देकर नोटिस थमा दें। इस तरह ऊपरी तौर पर तो यह दिखाया जाता है कि बड़े साहब बहुत सख्त हैं और छोटी सी भी गलती बर्दाश्त नहीं करते, लेकिन पर्दे के पीछे की असल कहानी कुछ और ही होती है। जिस मातहत को नोटिस मिलता है ,बड़े साहब का स्टेनो इशारे ही इशारे में उसे बॉस को खुश करने का रास्ता दिखा देता हैं। अब अगर नौकरी करना है या प्रताड़ना नहीं झेलनी है तो बड़े साहब को “गांधी छाप बूटी” से खुश रखो। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो किसी न किसी बहाने बड़े साहब के निशाने पर रहते हुए अलग-अलग तरह से प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। प्रताड़ना के शिकार मातहत अधिकारी और कर्मचारी सार्वजनिक रूप से मुंह भी नहीं खोल पाते। दबी जुबां से चर्चा करने के अलावा उनके पास और कोई रास्ता भी नहीं है। ऊपर शिकायत करने के बाद इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि साहब पर कोई कार्रवाई होगी। वे सिर्फ इंतजार कर रहे हैं कि कब साहब का यह भ्रष्टाचार उजागर होगा और उन्हें इस भ्रष्ट अफसर से निजात मिलेगी।
दरअसल, निजीकरण के चलते साहब को अपने अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई करने का अधिकार है। यह भी कह सकते हैं कि पद से हटाना या कार्य बदल देने जैसे अधिकार होने का यह भ्रष्ट अफसर जमकर दुरुपयोग कर रहा है।
भ्रष्ट अफसर के इशारों पर नाचने के लिए मजबूर मातहत
अधीनस्थ अधिकारी तथा कर्मचारी परेशान हैं कि इतना रुपया बड़े साहब को कहां से दें। चर्चा है कि कुछ लोग परेशान होकर जैसे- तैसे जुगाड़ लगाकर पैसे दे रहे हैं। इस तरह बड़े साहब के इशारों पर नाचने के लिए मातहत मजबूर हैं।
चर्चा है कि भ्रष्ट बड़े अधिकारी ने चुनिंदा अधिकारियों की एक सूची बना रखी है। एक के बाद एक टारगेट पर उन्हें नाम आते हैं और फिर कहीं न कहीं गलती निकाल कर नोटिस के जरिए वसूली अभियान शुरू हो जाता है।