जानबूझकर किया गया पाप अनजाने में किए गए पाप कर्म से हजार गुना अधिक दोष वाला
आनंद मंगल परिसर में चल रही शिव पुराण कथा में मनाया सती-शिव विवाह का उत्सव
दैनिक अवन्तिका इंदौर
पाप हर व्यक्ति से होते हैं, लेकिन जानते हुए किया गया पाप अनजाने में किए हुए पाप कर्म से हजार गुना अधिक दोष वाला होता है। पाप का शमन पश्चाताप से ही संभव है। पाप के बाद आने वाले ताप का नाम ही पश्चाताप है। पतित से पावन बनने के लिए भगवान शिव का आश्रम सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी होता है। शिवपुराण मनुष्य को जन्म जन्मांतर के चक्रव्यूह से मुक्ति दिलाने वाली कथा है। शिव श्रद्धा है और पार्वती विश्वास। श्रद्धा और विश्वास के दो स्तंभों पर ही हमारे रिश्ते और समाज की परंपराएं टिकी हुई हैं।
यह बात वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज ने कही। वे अग्रवाल संगठन नवलखा क्षेत्र द्वारा आनंद नगर स्थित आनंद मंगल परिसर में आयोजित शिव पुराण कथा में मौजूद श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। कथा में सती और शिव विवाह का जीवंत उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। विवाह के लिए कथा मंडप को विशेष रूप से सजाया गया था। साध्वी कृष्णानंद द्वारा अपने मनोहारी भजनों से पहले दिन से ही भक्तों को खूब थिरकाया जा रहा है। श्रद्धालुओं ने मनोहारी भजनों पर नाचते-गाते हुए दूल्हे बने भोले बाबा का खूब स्वागत किया।
चरित्र पर लगे दाग सत्संग से धुलते
स्वामी भास्करानंद ने कहा कि कपड़ों पर लगे दाग किसी साबुन से दूर हो सकते हैं, लेकिन चरित्र पर लगे दाग धोने के लिए तो सत्संग, गुरू की कृपा और शास्त्रों तथा धर्मग्रंथों का आश्रय ही एकमात्र उपाय है। शिव पुराण की कथा जाने-अनजाने में किए गए पाप कर्मों से मुक्ति का सहज माध्यम है, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि हम निरंतर पाप भी करें और शिव पुराण सुनकर यह भी मान लें कि हमें पाप से मुक्ति मिल गई है। भगवान शिव हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, इच्छाओं की नहीं। इच्छाओं और आवश्यकताओं में अंतर को समझना होगा। इच्छाएं मनुष्य को विचलित बना देती हैं। भगवान शिव की नियमित आराधना जल्दी फल देने वाली मानी गई है।