एसपी इंटेलिजेंट ब्रांच उज्जैन सुनील मेहता से विशेष बातचीत
बुद्धि, अनुशासन और मेहतन से मिलती है सफलता
दैनिक अवन्तिका सीमा-मनीष शर्मा इंदौर
पुलिस सेवा को बहुत ही चुनौती पूर्ण माना जाता है और इस चुनौती का जो कर्तव्यनिष्ठा और अपनी तेजतर्रार शैली से कार्य करता है। उससे पुलिस विभाग का मनोबल तो बढ़ता ही है। साथ ही जनता के बीच छवि भी निखरती है। इसी तरह अपनी कर्तव्यनिष्ठा के साथ पुलिस विभाग में सेवारत आईपीएस सुनील मेहता उज्जैन में एसपी इंटेलिजेंट स्पेशल ब्रांच में पदस्थ हैं और अपनी विशिष्ट सेवाओं के चलते वे अनेक सम्मान से भी पुरस्कृत हो चुके हैं। दैनिक अवंतिका से विशेष चर्चा में श्री मेहता ने अपने पूरे सेवाकाल के बारे में खुलकर चर्चा की और उपलब्धियों को भी बताया। उनका कहना है कि पुलिस और जनता एक-दूसरे के अभिन्न मित्र हैं और जनता पुलिस का सहयोग करे तो अपराध और असामाजिक गतिविधियों पर अंकुश लग सकता है। श्री मेहता से हुई बातचीत के मुख्य अंश :-
प्रश्न – पुलिस सेवा कार्य में कब से?
उत्तर – 1994 मप्र से मेरा सिलेक्शन हुआ, जो सिलेक्शन हुआ वह डीएसपी पद के लिए था और हम 17 लोग थे डीएसपी पद के लिए। उसमें मेरा भी चयन हुआ। उस समय मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ एक ही था। मेरी 2 साल की ट्रेनिंग हुई। पहली पोस्टिंग सागर में 10वीं बटालियन में हुई। उसके बाद पहली फील्ड पोस्टिंग सीएसपी भिलाई में हुई। 1999 छत्तीसगढ़-भिलाई उसके बाद तो सिलसिला चलता रहा। सीएसपी, धार, बालाघाट, मुरैना जिले के अंबा में स्नेहा उसके बाद मेरी पोस्टिंग मन्दसौर, पीथमपुर हुई। इतनी पदस्थापना के बाद फिर प्रमोशन एडिशनल एसपी सीहोर के पद पर रहा। 2 साल तक सीहोर में रहने के बाद फिर मंदसौर एएसपी पद पर पोस्टिंग हुई, उसके बाद उज्जैन में सिंहस्थ के दौरान उज्जैन बुलाया गया, यहां पर मुझे स्पेशल ब्रांच एसपी इंटेलिजेंट के पद पर हुई तब से मैं उज्जैन हूं।
प्रश्न – पुलिस विभाग ही क्यों चुना?
उत्तर – दो कारण हैं इसके पीछे। पीएसी के दौरान ही मेरा चयन हुआ था। चाइल्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट आॅफिसर वहां 1 साल तक मैंने वहां सर्विस की। उसके बाद दोबारा फिर डीएसपी पद पर पोस्टिंग ले ली। क्योंकि यह पोस्ट बड़ी होती है और प्रशासनिक सेवाओं का अलग ही जुनून होता है। यहां पर करने के लिए आपके पास बहुत सारी अपॉर्चुनिटी होती है। कारण मैंने दूसरी सर्विस को छोड़ दिया और इसको चुन लिया। जो सरकारी सेवाएं होती हैं उसमें यह पांचवें नंबर पर आती है। भगवान की कृपा और घर के बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से मैं आज इस पद पर हूं।
प्रश्न – आपका व्यक्तित्व सबसे अलग?
उत्तर – सभी अधिकारी अपने आप में संपूर्ण है और सबके अपने फैमिली बैकग्राउंड होते हैं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैं नागर ब्राह्मण समाज से हूं। नागर समाज एक संस्कारी समाज है और इस नागर समाज का मैं पहला आईपीएस अफसर हूं। मेरे लिए भी गौरव की बात है, लेकिन मुझे ज्यादा खुशी तब होगी जब हमारे समाज के युवा प्रशासनिक सेवाओं में आगे आएंगे। क्योंकि बौद्धिकता में तेज हैं नागर समाज वाले तो फिर प्रशासनिक सेवाओं में इतने कम क्यों हैं?
प्रश्न – सफलता का राज क्या है?
उत्तर – सफलता तीन चीजों से मिलती है- बुद्धि, अनुशासन और मेहनत। बिना अनुशासन के मेहनत करते हैं तो सफलता नहीं मिलती और अनुशासन के साथ मेहनत करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी। उसके साथ ही सबसे बड़ा ऊपर वाले पर भरोसा, आप अपनी मेहनत भरपूर करें, पर ऊपर वाले पर भी भरोसा बनाए रखें। वह अवश्य आपको सफलता प्रदान करेगा। मेरी सफलता का भी यही राज है कि ऊपर वाले पर भरोसा और खुद की मेहनत।प्रश्न – कार्यकाल के कुछ अनुभव?
उत्तर – 26 साल का मेरा कार्यकाल रहा है। अभी तक इसमें बहुत यादगार पल हैं, जिनको मैं कभी भुला नहीं सकता। जैसे – सिमी के आतंकवादियों को पकड़ना, 4 साल के बच्चे को डकैतों से छुड़ाना और पीथमपुर में प्रतिभा सिंटेक्स कंपनी 3000 वर्कर थे, वहां के सिक्योरिटी गार्ड ने इन लोगों में से एक की हत्या कर दी थी। तब 20 लोगों के साथ कितने लोगों को संभालना और फैक्टरी खाली करवाना बहुत बड़ी चुनौती थी। धार में वसंत पंचमी और भोजशाला आंदोलन एक साथ वह भी बहुत टफ रहा यह चैलेंज भी था। लेकिन यह मेरे से अनुभव है जिन्हें में कभी भुला नहीं सकता। भोजशाला और वसंत पंचमी के समय कानून व्यवस्था संभालना बहुत टफ रहा। सिंहस्थ को इंटेलीजेंट के परपस से देखना जो प्रशासनिक व्यवस्थाएं थी वह तो बांट दी। इसके अलावा इंटेलिजेंट के जरिए जिला प्रशासन को और पुलिस को रिपोर्ट देना। कहीं कोई कमी नहीं या फिर कहीं कोई घटना घटित ना हो पब्लिक सिंहस्थ का आयोजन बहुत बड़ा और उसके इंटेलीजेंट करना यह मैं अपने कार्यकाल में हमेशा याद रखूंगा।
आईपीएस अवार्ड मिलना जीवन की सबसे सुंदर अनुभूति, हर सफल व्यक्ति के पीछे नारी शक्ति का योगदान
हर डीएसपी का सपना होता है कि आईपीएस अवार्ड मिले। हमारे जीवन का एक पड़ाव होता है, इतने साल के सेवाकाल के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय से आईपीएस अवार्ड से नवाजा गया। यह बहुत सुंदर अनुभूति थी, मेरे सेवाकाल में सभी साथियों ने जिन्होंने मेरा सहयोग किया है यह अवार्ड को समर्पित है। आज कल की जो युवा पीढ़ी है वह मार्ग भटक गई है। हमारी पहले जो प्राचीन विवाह पद्धति थी, उसमें लड़का-लड़की और उसके पूरे परिवार की जानकारी ली जाती थी कि उनका परिवार कैसा है, उनका वजूद क्या है। तभी परिवार से परिवार जुड़ता और आजकल लड़के-लड़की आपस में मिलते हैं। प्यार करना गलत नहीं है, लेकिन वहां तक अगर पहुंचना है तो दो परिवारों को जोड़ना पड़ेगा और उसके लिए सबसे जरूरी है कि परिवार के बारे में जानकारी लेकर ही विवाह के लिए कदम आगे बढ़ाएं। सबसे बड़ी बात यह है कि सफल पुरुष के पीछे महिला शक्ति होती है तो सर्वप्रथम मेरे विवाह के पहले मेरी जितनी भी सफलताएं मिली, उसका श्रेय मेरी माताश्री को जाता है, पिताजी तो हमारे लिए सबकुछ करते ही हैं। लेकिन मां का विशेष योगदान होता है और विवाह के बाद श्रीमती भारती मेहता उन्होंने मेरा हर कदम पर सहयोग किया है। मेरे कार्य को सुगम बनाया है, यहां तक की मैं ड्यूटी से रात में कितना भी देर से आया, मुझे हमेशा गर्म भोजन तैयार मिलता है। इससे हमारी कार्य क्षमता और बढ़ जाती है।
20% अगर मेरी मेहनत है मेरी सफलता में तो 80% श्रीमती भारती मेहता की। श्री मेहता को अपने कार्यकाल के दौरान अनेक सम्मान भी मिले हैं। जब वे सीएसपी भिलाई, धार, अंबा और बालाघाट में एसडीओपी और नक्सल ग्रस्त क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य के लिए उन्हें दुर्गम सेवा पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है। सिंहस्थ 2016 में उन्हें विशेष तौर से जिम्मेदारी संभालने के लिए बुलाया गया था। उसमें भी श्री मेहता को सेवा पदक मिला और 26 साल की सर्विस में सराहनीय योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपति पदक से भी नवाजा जा चुका है।