न्यायालय में चल रहा 42 साल से केस का मिनिटों में हुआ फैसला
उच्च न्यायालय ने पूर्व कुलसचिव के पक्ष में दिया फैसला….
उज्जैन।
लोक अदालत में एक ऐसे केस का सुखद अंत हुआ जो की बीते 42 वर्षो से चल रहा था। शनिवार को लोक अदालत में पूर्व कुलसचिव और विक्रम विश्वविद्यालय के बीच भविष्य निधि के मामले में जिला और उच्च न्यायालय ने पूर्व कुलसचिव के पक्ष में फैसला दिया था। शनिवार को उनके पुत्र और विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व डीन ने अपने पिता की लगभग 56 हज़ार रूपये की बकाया राशि यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों के विकास हेतु उपयोग में लेने की बात कहते हुए केस में समझौता कर लिया।
लोक अदालत में केस का सुखद अंत, विश्वविद्यालय के विकास में दे दिए पिता के PF के 56 हज़ार रूपये….
वर्ष 1975 में कांताप्रसाद मित्तल कुलसचिव लेखा के पद से रिटायर्ड हुए थे। विश्वविद्यालय ने उनके अवकाश के एवज में मिलने वाला पैसा रोक लिया था जिसके विरुद्ध उन्होंने 1980 में एक सिविल सूट न्यायालय में पेश किया था। वर्ष 1993 में न्यायालय ने कांताप्रसाद मित्तल के हक़ में फैसला सुनाया था। विक्रम विश्वविद्यालय ने इसके विरुद्ध अपील की और 1996 न्यायालय ने कांताप्रसाद का दावा निरस्त कर दिया। इस बीच कांताप्रसाद का निधन हो गया। उनके बेटे विक्रम विश्वविद्याल के पूर्व डीन RP मित्तल ने विश्विद्यालय को हाई कोर्ट में चेलेंज कर दिया।प्रकरण काफी पुराना होने के कारण विक्रम विश्वविद्यालय कोर्ट में सम्बंधित कागज़ात उपलब्ध नहीं कर पा रहा था। तब से तारीख पर तारीख मिलती रही और वर्ष 2009 में उच्च न्यायालय ने कांताप्रसाद मित्तल के हक़ में फैसला सुनाते हुए विश्विद्यालय को राशि का भुगतान करने के आदेश दिए। वर्ष 2010 तक भुगतान न होने की स्थिति में कोर्ट ने तत्कालीन कुलसचिव की कार भी कुर्क करने का आदेश न्यायालय ने जारी किया था। शनिवार को लोक अदालत में वर्तमान कुलसचिव प्रशांत पौराणिक ने विक्रम विश्वविद्यालय की ओर से मित्तल परिवार को हुई परेशानी के लिए माफ़ी माँगी। पूर्व कुलसचिव लेखा कांताप्रसाद मित्तल के पुत्र राजेंद्र प्रसाद मित्तल ने अपने पिता की 56,623 रूपये की राशि को विक्रम विश्वविद्यालय के विकास में उपयोग लाने की बात कहते हुए यूनिवर्सिटी से समझौता कर लिया। R P मित्तल के अधिवक्ता विकास सिंह ने 42 साल पुराने इस प्रकरण को समझौते तक लाने में मुख्य भूमिका निभाई।