मध्यप्रदेश में सिंधिया समर्थकों पर भारी पड़ सकता है “कर्नाटक”

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिराने वाले 14 में से 8 विधायक हारे, मप्र में विरोधी प्रत्याशियों के अलावा भीतरघातियों से भी निपटना होगा

ब्रह्मास्त्र भोपाल। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम का असर मध्यप्रदेश में भाजपा-कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर पड़ना तय है। खासकर सत्ताधारी भाजपा पर। इसकी वजह यह है कि कर्नाटक सरकार के 25 में से 13 मंत्री चुनाव हार गए हैं। इतना ही नहीं, 2019 में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराने वाले 14 में से 8 विधायकों को भी जनता ने नकार दिया है।
सिंधिया समर्थक विधायक जो कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए थे, उनमें से कुछ तो उपचुनाव में ही हार गए। अब जो हैं उन्हें इस विधानसभा चुनाव में जिता ले जाना आसान नहीं होगा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि कुछ सिंधिया समर्थक विधायकों की छवि ठीक नहीं है। भाजपा द्वारा करवाए गए गुप्त सर्वे में इनकी जीत के चांस ज्यादा नहीं है। भाजपा पर एक और खतरा मंडरा रहा है। वह यह कि जिन सीटों पर सिंधिया समर्थक जीत कर आए थे, वहां से भाजपा के पुराने दावेदार भीतरघात कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो भाजपा को कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों के विरोध के साथ ही साथ अपने लोगों के भी विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पूर्व मंत्री पुत्र दीपक जोशी के असंतोष का सामना भाजपा कर चुकी है। दीपक जोशी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए जो पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है। पार्टी के लिए असल चुनौती तो वह हैं जो भले ही भाजपा छोड़कर न जाएं, लेकिन पार्टी के अंदर ही अंदर रहकर उन प्रत्याशियों के साथ असहयोग कर सकते हैं जो सिंधिया समर्थक हैं और कांग्रेस से भाजपा में आए हैं।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भले ही राजनीति में परिवारवाद का विरोध करता है, लेकिन कर्नाटक में 20 से अधिक मंत्रियों, विधायकों व सांसदों के बेटे-बेटियों सहित अन्य रिश्तेदारों को चुनाव मैदान में उतारा गया। परिणाम यह हुआ कि ऐसे 15 कैंडिडेट चुनाव हार गए।
जानकार मानते हैं कि कर्नाटक और मध्यप्रदेश के राजनीतिक हालात एक जैसे हैं। जिस तरह 2019 में कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिरी थी, ठीक एक साल बाद मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत की वजह से सत्ता से बाहर हो गई थी।