सिर्फ 14 घंटे में शिप्रा नदी में नहाते समय डूबने की चार बड़ी घटनाएं…
गुरुवार देर शाम नहाते वक्त पैर फिसला और बाहर आया अहमदाबाद निवासी का निर्जीव शरीर, शुक्रवार सुबह महाराष्ट्र, राजस्थान व इंदौर से आए 3 श्रद्धालुओं की जान बचाई
प्रशासनिक लापरवाही से लगातार हो रहे हादसे
जनवरी से अभी तक सिर्फ साढ़े चार माह में शिप्रा में नहाते वक्त 6 लोगों की डूबने से मौत
दैनिक अवन्तिका उज्जैन
अमावस्या पर्व पर मोक्षदायिनी क्षिप्रा के घाटों पर भारी संख्या में श्रद्धालु डुबकी लगाने आए। सिर्फ 14 घंटे के अंतराल में ही स्नान कर रहे एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई, जबकि तीन अन्य स्नान के दौरान डूबने लगे, तब उन्हें बचाव दल ने बचाया। गुरुवार की देर शाम से लेकर शुक्रवार की सुबह तक में ही 4 हादसे हो गए। एक युवक की मृत्यु हो गई जबकि तीन लोगों का जीवन दांव पर लग गया। अमावस्या पर शुक्रवार सुबह महाराष्ट्र से आया एक परिवार शिप्रा नदी के सिद्धाश्रम घाट पर स्नान कर रहा था। स्नान करते वक्त वे अचानक गहरे पानी में डूबने लगे। घाट पर मौजूद होमगार्ड जवान रशीद खान व घनश्याम ने तत्परता दिखाते हुए युवक को पानी से बाहर निकाला। प्राथमिक उपचार के बाद उसे अस्पताल भेजा। इसके ठीक एक घंटे बाद 7 बजे इसी घाट पर दूसरी घटना घटी। इंदौर से आए तीन युवक स्नान कर रहे थे। इसी दौरान एक युवक संजय कुमार 40 वर्ष अचानक गहरे पानी में डूबने लगा। घाट पर मौजूद रशीद खान और ईश्वर चौधरी ने बाहर निकालकर जीवन बचाया। इसके ठीक एक घंटे बाद यानी सुबह 8 बजे इसी घाट पर अजमेर, राजस्थान निवासी शिवराम 24 वर्ष को गहरे पानी में डूबने से बचाते हुए एसडीईआरएफ सैनिक सुभाष नारंग ने लाइफ बॉय की मदद से बाहर निकाला। रामघाट पर तैनात होमगार्ड जवानों एवं एसडीईआरएफ सैनिकों के उत्कृष्ट कार्यों के लिए जिला सेनानी संतोष कुमार जाट ने पुरस्कृत किया।
सिद्धाश्रम घाट पर अजमेर निवासी शिवराम अंदाजा न होने के कारण गहरे पानी में चला गया। जिसे माँ शिप्रा तैराक दल के दीपक कहार ने पानी मे कूद पर डूबने से बचाया। जानकारी तैराक दल सचिव संतोष सोलंकी ने दी।
गुरुवार देर शाम अहमदाबाद से आए श्रद्धालु की डूबने से मृत्यु
शुक्रवार सुबह तो 3 लोगों को बचा लिया गया, लेकिन इसके ठीक एक दिन पहले गुरुवार देर शाम शिप्रा नदी में स्नान करते वक्त एक श्रद्धालु की डूबने से मृत्यु हो गई। जयंतीभाई पिता पोपट भाई 50 वर्ष निवासी बापूनगर, सुनहरा बाग, अहमदाबाद परिवार के 7-8 लोगों के साथ उज्जैन आए थे। उन्हें कोई मान उतारना थी। मान की पूजा के बाद वे नहाने शिप्रा नदी में उतरे। अचानक उनका पैर फिसला और वे गहरे पानी में डूबने लगे। परिवार वालों ने शोर मचाया। उन्हें बाहर भी निकाला गया लेकिन तब तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी। जयंतीभाई 7 बच्चों के पिता थे। अहमदाबाद में उनका डेकोरेशन का काम था। शुक्रवार सुबह उनके शव का पोस्टमार्टम किया गया।
साढेÞ 4 माह में शिप्रा में नहाते वक्त डूबने से 6 लोगों की मृत्यु
सैनिकों की सतर्कता के कारण शुक्रवार सुबह ही तीन जान बच गई, लेकिन अहम सवाल यही है कि प्रशासनिक लापरवाही के शिकार आखिर कब तक श्रद्धालु होते रहेंगे? महाकाल थाने के प्रधान आरक्षक अशोक दुबे ने बताया कि शिप्रा नदी में स्नान करते वक्त जनवरी 2023 से 18 मई 2023 तक 6 लोगों की मृत्यु हुई है। इसमें दो इंदौर, एक अहमदाबाद, दो अज्ञात और एक उज्जैन के हैं। जो दो अज्ञात हैं,उसमें एक महिला एवं एक पुरुष है। इसमें फरवरी 2023 में एक पुरुष तथा मार्च में एक महिला नहाते वक्त डूब गए थे। आज तक उनकी शिनाख्त नहीं हो सकी है। इस तरह अमूमन हर माह एक से अधिक श्रद्धालु की शिप्रा में नहाते वक्त डूबने से मृत्यु हुई हैं। यह सभी हादसे नरसिंह घाट, रामघाट, दत्त अखाड़ा घाट, सुनहरी घाट पर हुए हैं। जो एक ही लाइन में बने हुए हैं। अनुमान है कि पिछले साल वर्ष 2022 में इसी तरह शिप्रा नदी में नहाते हुए 15 से 20 श्रद्धालुओं की डूबने से मौत हो गई थी।
5 माह से कम समय में 56 लोगों को बचाया डूबने से
रामघाट पुलिस चौकी के प्रभारी होमगार्ड सैनिक ईश्वर चौधरी ने बताया कि आज सुबह राम घाट पर 3 लोगों को डूबने से बचाया। इस तरह अभी तक 5 माह से भी कम समय में 55-56 लोगों को डूबने से बचाया जा चुका है।
जिम्मेदार डूबने वाले और लाशों के सिर्फ आंकड़े गिन रहे
श्रद्धालु लगातार डूब रहे … उज्जैन कलेक्टर- एसपी क्यों नहीं करते घाट का मुआयना.? लोगों की जान से क्यों हो रहा खिलवाड़..?
दैनिक अवंतिका पहले भी जनहित में प्रकाशित करता आया है कि घाट पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। सभी घाटों पर रेलिंग लगानी चाहिए, ताकि लोग उससे पानी की गहराई का अंदाजा लगा सकें। पैर फिसलने या अन्य कारण से तुरंत रेलिंग को पकड़ सकें। परंतु, न जाने क्यों जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन तथा अन्य जिम्मेदारों की नींद ही नहीं खुल रही है। दैनिक अवंतिका एक बार फिर आगाह करता है कि घाट पर रेलिंग तथा जीवन रक्षक जैकेट का इस्तेमाल होना चाहिए। उज्जैन कलेक्टर तथा उज्जैन एसपी को भी इन घाटों का निरीक्षण करना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि आखिर यह हादसे बार-बार क्यों हो रहे हैं? आश्चर्य तो इस बात का है कि लगातार डूबने से मौत और डूबते-डूबते बचाए जाने जैसी घटनाएं होने के बावजूद प्रशासन घोर लापरवाही बरत रहा है। जिम्मेदार सिर्फ लाशों और डूबने से बचाए जाने वालों का आंकड़ा ही गिन रहे हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई स्थाई प्रयास नहीं कर रहे हैं।
आखिर क्यों हो रही हैं डूबने की लगातार घटनाएं
दरअसल इसमें प्रशासन की लापरवाही स्पष्ट रूप से नजर आती है। दत्त अखाड़ा तरफ शिप्रा नदी में रेलिंग लगा रखी है, परंतु वहां श्रद्धालु कम जाते हैं। रामघाट तरफ अत्यधिक भीड़ रहती है। यहां रेलिंग नहीं है। घाटों पर सफाई व्यवस्था भी नहीं है, जिससे घाट पर जमी काई में लोगों के पैर फिसल जाते हैं। नियमानुसार हर दो-तीन दिन में घाट की सफाई होना चाहिए, परंतु ऐसा नहीं होता। शिप्रा नदी में खान नदी का गंदा पानी मिल रहा है। खान नदी का स्टॉपेज त्रिवेणी संगम पर बनाया गया है, परंतु यह मिट्टी का है, जो बार-बार पानी के फ्लो से टूट जाता है और गंदा केमिकल युक्त पानी शिप्रा के निर्मल जल में मिल जाता है। जिससे काई ज्यादा जमती है। लोग घाट पर सीढ़ियां समझकर नीचे उतरते जाते हैं। अचानक सीढ़ियां खत्म हो जाती हैं या फिर घाट पर जमी काई से पैर फिसल जाता है और वह गहरे पानी में डूबने लगते हैं। जरूरी नहीं है कि हर वक्त कोई बचाने वाला तैयार ही खड़ा हो। थोड़ी भी देर हुई और कोई बचाने वाला नहीं पहुंचा तो इसी बीच गहरे पानी में डूबता हुआ व्यक्ति अपनी जान गवां बैठता है।
काले चिकने पत्थर भी फिसलन भरे
राम घाट पर सुनहरी घाट जैसे कुछ घाटों पर चिकने काले पत्थर लगे हुए हैं। गीला होने तथा पत्थर पर काई जमा होने के कारण अक्सर लोग चिकने पत्थरों पर फिसल जाते हैं और हादसे के शिकार हो जाते हैं।
बाहर के श्रद्धालु हो रहे हादसे के शिकार
शिप्रा नदी में नहाते वक्त डूबने वालों में अधिकांश बाहर से आने वाले श्रद्धालु हैं ,जो हादसे के शिकार हो रहे हैं। क्योंकि उन्हें शिप्रा की गहराई का अंदाजा नहीं होता। नहाते वक्त वे सीढ़ी उतरते जाते हैं और जरा सा पैर फैसला कि जान पर बन आती है।
प्रशिक्षित टीम तो हंै
परंतु सदस्य बहुत कम
रामघाट पर होमगार्ड सैनिक और एसडीईआरएफ की प्रशिक्षित टीम मौजूद है, लेकिन इनमें कुल मिलाकर 16 लोग तैनात हैं। जो तीन शिफ्ट में काम करते हैं। यानी एक शिफ्ट में अत्यधिक चार-पांच लोग। कुछ तैराक दल के सदस्य भी हैं, जो नि:शुल्क सेवा करते हैं। इनकी संख्या करीबन 1 दर्जन है।
चेतावनी बोर्ड गायब
माइक भी खामोश
पहले घाट पर चेतावनी बोर्ड लगे हुए थे, जो अब गायब हो चुके हैं। कभी गहरे पानी में न जाने के लिए अनाउंसमेंट भी होता था। परंतु, अनाउंसमेंट के यह माइक भी अब खामोश हो गए हैं। यदा-कदा किसी पर्व पर इक्का-दुक्का आवाज सुनाई देती है।