संत कवि कबीर दास जी जीवन भर आडंबरो पर कुठाराघात करते रहे।

शिक्षा विभाग द्वारा कबीर जयंती पर आयोजित व्याख्यानमाला में विश्वदीप मिश्रा ने कहा।

मनावर। संत कवि कबीर दास जी हिंदी साहित्य के इकलौते ऐसे कवि थे जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरो पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ झलकती है लोक कल्याण के लिए मानो उनका समस्त जीवन था। उनका साहित्य जनजीवन को उन्नत बनाने वाला मानवतावाद का पोषक और विश्व बंधुत्व की भावना जागृत करने वाला है। इसी कारण हिंदी संत काव्य धारा में उनका स्थान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उक्त संबोधन साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता विश्वदीप मिश्रा ने आयुक्त अनुसूचित जाति विकास के निर्देश पर अंग्रेजी कन्या शाला छात्रावास में संत कबीर दास जयंती के उपलक्ष्य में शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में मुख्य अतिथि के रूप में दिए।

इसके पूर्व कार्यक्रम संयोजक बीईओ भरत जांचपुरे ,बीएसी तुकाराम पाटीदार, भागीरथ राठौड़ और अतिथियों ने संत कबीर दास और सरस्वती मां का पूजन किया। अतिथियों का स्वागत सुनीता सोलंकी, लीला मौर्य ,मुन्नी नार्वे, उर्मिला गवली, और जामसिंह मंडलोई ने किया।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि खाटू श्याम मंदिर से पधारे आचार्य कपिल शास्त्री ने बताया कि जब संत कबीर दास जी ने अपनी देह का त्याग किया तो हिंदू मुस्लिम दोनों ने अपना हक जताया। उनके जन्म और मृत्यु को लेकर विद्वानों में परस्पर मतभेद रहे हैं। वे निराकार ब्रह्मा के उपासक थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बीआरसीसी किशोर बागेश्वर ने इस अवसर पर कहा कि संत कबीर दास जातिवाद पर विश्वास नहीं करते थे। उनका कहना था कि व्यक्तित्व निर्माण के लिए किताबी ज्ञान के अलावा व्यवहारिक ज्ञान होना भी आवश्यक है वह सच्चे अर्थों में निर्भीक और समाज सुधारक पुरुष थे। कार्यक्रम में जन शिक्षक सुरेश पाटीदार ने कबीर दास जी के दोहों का गायन किया। कार्यक्रम का संचालन राजा पाठक और आभार जन शिक्षक प्रकाश वर्मा ने माना।

रिपोर्ट कोशिक पंडित