ब्रह्मास्त्र विशेष – महाकाल लोक, मास्टर प्लान और महाभ्रष्टाचार, चुनावी वर्ष में ये भारी न पड़ जाए सरकार ..!

सावधान..! यह पब्लिक है जो सब जानती है…

ब्रह्मास्त्र उज्जैन। यह पब्लिक है जो सब जानती है। वह बेवकूफ नहीं होती। यह और बात है कि वह चुपचाप वक्त पड़ने पर अपना आदेश सुना देती है कि कौन सी सरकार रहेगी और कौन सी नहीं। बाबा महाकाल की पावन नगरी से छल- कपट करना सरकार को बेहद महंगा पड़ सकता है। यह चुनावी वर्ष है। ऐसे में लाख होशियारी कर ली जाए, लेकिन आम जनता और मीडिया से कुछ भी छुप नहीं सकता। उज्जैन से फिलहाल महाकाल लोक, मास्टर प्लान और महा भ्रष्टाचार यह तीन ऐसे मुद्दे हैं जो सरकार के लिए मुसीबत बन सकते हैं। महाकाल लोक में करोड़ों रुपए फूंक दिए गए। ऊपरी तौर पर तो सजावट ऐसी की गई कि लगा बहुत ही जानदार- शानदार काम हुआ है।सरकार धर्म का चोला ओढ़ कर पाप पर पाप करती रही और उसका घड़ा आंधी और तूफान के रूप में फूटा। सप्त ऋषियों की 7 मूर्तियों में से 6 मूर्तियां अपने हाथों से ही उखड़ गई। इन मूर्तियों में बेस ही नहीं था। महाकाल लोक का कलश भी 2 दिन बाद जमीन पर आ पड़ा। वह तो अच्छा हुआ कि उस वक्त वहां से कुछ लोग हटे ही थे , वरना जनहानि भी हो सकती थी। सरकार ने कंपनी पर चढ़ाई करने की बजाय उसे संरक्षित करने वाले अंदाज में भ्रष्टाचार को दबाना चाहा। यह मुद्दा पूरे प्रदेश नहीं बल्कि देश में छाने लगा है, जो आने वाले चुनाव में सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। जिस महाकाल लोक को चुनाव में भुनाया जाना था, वही दांव अब उल्टा बालता नजर आ रहा है।

नए मास्टर प्लान में सिंहस्थ उपयोग की भूमि आखिर हो ही गई आवासीय

दूसरा मामला भी ऐसा ही है, जिसमें सरकारी छल- कपट स्पष्ट नजर आया। उज्जैन का मास्टर प्लान पहली बैठक से ही विवाद के घेरे में आ गया था। 3 दिन पहले सरकार ने ट्वीट के माध्यम से वादा किया था कि सिंहस्थ के आयोजन में किसी भी तरह की असुविधा नहीं होने दी जाएगी। जरूरी हुआ तो मास्टर प्लान में परिवर्तन भी करेंगे, परंतु सोमवार को अचानक चोरी-चोरी चुपके-चुपके मास्टर प्लान के प्रकाशन की जाहिर सूचना अखबारों में प्रकाशित कर दी गई। बाबा महाकाल की नगरी में जहां मोक्षदायिनी शिप्रा प्रवाहमान होती है, वहां सिंहस्थ तक परंपरा को इस ढंग से भू माफियाओं के फायदे के लिए नुकसान पहुंचाया जाएगा, यह कल्पना से परे था। अब ऐसा हो गया है। सिंहस्थ में शिप्रा स्नान का विशेष महत्व है। शिप्रा का अस्तित्व त्रिवेणी से लेकर रामघाट तक ही नजर आता है। उसके इधर और उधर की हालत तो किसी से भी छुपी हुई नहीं है। इसलिए जरूरी था कि इस क्षेत्र की जमीन को संरक्षित रखा जाए। सिंहस्थ मेले के लिए पिछली बार ही जमीन बहुत कम पड़ गई थी। जाहिर है इस बार और लाखों लाख अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। ऐसे में और अधिक जगह चाहिए होगी, परंतु भोपाल तक बात पहुंचाए जाने के बावजूद इस पर किसी के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि नए मास्टर प्लान में लालपुल, गऊघाट ,सांवराखेड़ी, शांति पैलेस, दाऊदखेड़ी से लेकर त्रिवेणी तक की शिप्रा नदी से लगी सभी जमीन को आवासीय घोषित कर दिया गया है। दैनिक ब्रह्मास्त्र पहले भी इसके खिलाफ आवाज उठा चुका है और बता चुका है कि यह क्षेत्र आवासीय घोषित होने से शिप्रा नदी और अधिक प्रदूषित हो जाएगी। शिप्रा के किनारे एक तरफ कालोनियां और होटलें बनी हुई हैं। जब इतने बड़े क्षेत्र को आवासीय घोषित किया गया है तो जाहिर है कि यहां बड़ी-बड़ी कालोनियां आकार लेंगी और इसके साथ ही इन कालोनियों का मल मूत्र और गंदगी मां शिप्रा में जाकर मिलेगी। शिप्रा के निर्मल जल को प्रदूषित करेगी।

भू – माफियाओं की जादूगरी

भू माफियाओं की जादूगरी तो शुरू से ही चली आ रही है। जब नए मास्टर प्लान को बनाया जा रहा था, इस क्षेत्र की जमीन सिंहस्थ के उपयोग में काम आएगी इसका डर दिखाकर भू माफियाओं ने पहले ही आधी से भी कम कीमत में यानी कौड़ियों के दाम किसानों से जमीन खरीद ली थी। अब आवासीय घोषित होने के बाद यह सोना उगलती हुई जमीन है। सरकारी होशियारी यह भी चल रही है कि उन्हेल ,बड़नगर और आगर रोड की तरफ से क्षेत्र को बढ़ाया जा रहा है। यह शिप्रा से बहुत दूर पड़ता है। पैदल चलकर शिप्रा तक पहुंचना आसान नहीं होगा। पिछली बार भी इस क्षेत्र में साधु संतों ने अपने डेरे जमाने से इंकार कर दिया था। सिंहस्थ मेले की दरकार है कि शिप्रा किनारे से सटे सांवरा खेड़ी दाऊद खेड़ी, जीवन खेड़ी क्षेत्र का उपयोग सिंहस्थ के लिए किया जाता तो कई समस्याओं का हल आसानी से हो जाता। भू माफिया तो अपनी कारगुजारी कर गए, परंतु सरकार के इस कारगुजारी में गाहे-बगाहे शामिल होने से कहीं न कहीं इसका असर चुनाव में पड़ सकता है। उज्जैन की जनता सिंहस्थ के उपयोग आने वाली जमीन के आवासीय करने वाले नए मास्टर प्लान को स्वीकार नहीं कर पाएगी।

भ्रष्टाचार तो बहुत सारे हैं, लेकिन यह दो महाभ्रष्टाचार ऐसे हैं जो सरकार को आने वाले चुनाव में बड़ा झटका दे सकते हैं।