इबादत में सिरो को झुकाकर मांगी अमन चैन की दुआ
– मुस्लिम समाजजन गले लगकर बोले ईद मुबारक
उज्जैन। ईद-उल-अजाह मुस्लिम समाज के पर्वों में दूसरा सबसे प्रमुख पर्व है। बुधवार को पर्व की खुशियां मनाने से पहले समाज जनों ने इबादत में सिरो को झुकाया और देश में अमन शांति की दुआ मांगी। ईदगाह पर मुख्य नमाज अदा की गई उसके बाद शहर की सभी मस्जिदों में नमाज का सिलसिला शुरू हुआ। ईदगाह पर समाज के हजारों लोग एकत्रित हुए थे।
मुस्लिम समाज के पवित्र रमजान माह की समाप्ति के 70 दिनों बाद ईद-उल-अजहा यानी त्याग-कुर्बानी का प्रमुख त्यौहार बकरीद के रूप में मनाया जाता है। गुरुवार को मुस्लिम समाज में अपने प्रमुख पर्व को लेकर काफी उत्साह दिखाई दिया। पर्व मनाने से पहले समाज के लोग ईदगाह पर बने धार्मिक स्थल पर एकत्रित हुए थे। जहां समाज के प्रमुख शहरकाजी खलीफुर्रहमान की उपस्थिति में सभी मुस्लिम समाजजनों ने अल्लाहताला की इबादत करते हुए सिरो को झुकाया और देश दुनिया में अमन शांति की दुआ मांगते हुए नमाज अता की। ईदगाह पर हुई मुख्य नमाज के बाद समाज जनों ने एक दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद दी। मुस्लिम समुदाय के प्रमुख पर्व पर शुभकामनाएं देने के लिए प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी भी ईदगाह पहुंचे थे। जिन्होंने शहरकाजी के साथ समाजजनों को ईद की बधाई देते हुए भाईचारे को बनाए रखने की बात कही। बकरीद पर्व को देखते हुए शहर की सभी मस्जिदों और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। ईद को लेकर बच्चों में काफी उत्साह बना हुआ था। समाज के बाहुल्य क्षेत्रों में झूले चकरी लगाए गए थे जहां बच्चों ने पर्व का जमकर लुफ्त उठाया। देर शाम तक शहर में ईद का उत्साह बना हुआ था। मुस्लिम समाज ने पर्व की खुशियों को देखते हुए अपने प्रतिष्ठानों को बंद रखा था।
शहर की सभी मस्जिदों में हुई नमाज
ईदगाह पर हुई प्रमुख नमाज के बाद शहर की करीब 16 मस्जिदों में भी अल्लाह की इबादत करते हुए नमाज अता की गई। सुबह 8 बजे से 9 बजे तक नमाज होती रही जिसमें क्षेत्र में रहने वाले समाजजन शामिल हुए। उसके बाद मुस्लिम समाज में बकरों की कुर्बानी देने का क्रम शुरू हुआ। जिन घरों में कुर्बानी नहीं हुई वहां समाज के लोगों ने अपने यहां हुई कुर्बानी का हिस्सा पहुंचाया गया।
इसलिए मनाया जाता है पर्व
इस्लामिक मान्यता के अनुसार ईद उल अजहा का पर्व त्याग और कुर्बानी का पर्व है। इस दिन हजरत इब्राहिम अपने पुत्र को खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे। तभी अल्लाह ने उनके त्याग को देखते हुए पुत्र को कुर्बान करने से रोक दिया था और पुत्र के स्थान पर वहां एक भेड़ को भेज उसकी कुर्बानी देने को कहा। इसी मान्यता के चलते मुस्लिम समाजजन बकरीद का पर्व मनाते आ रहे हैं। प्रतिवर्ष यह त्यौहार पवित्र रमजान माह के अंतिम दिन के 70 दिनों बाद मनाया जाता है।