डॉक्टर्स डे तभी सार्थक जब कलयुगी भगवान बंद करे लूट खसोट

मोटे कमीशन के चक्कर में मरीजों को लिख देते हैं अनावश्यक टेस्ट, बुलवाते हैं महंगी व बाहरी दवाएं

इंदौर/ उज्जैन। आज शनिवार को डॉक्टर्स डे है। डॉक्टर को कलयुग में भगवान माना जाता है लेकिन डॉक्टर्स डे का सही मायने और सफलता तो तभी है जब वह इसे कुछ हद तक तो सेवा भाव में लें मोटी कमाई के चक्कर में यही कलयुग में भगवान आजकल मरीजों के साथ छल करते भी नजर आते हैं आए दिन ऐसे उदाहरण सामने मिलते हैं जहां एक तरफ सरकार लोगों को दी जाने वाली सुविधाओं के दावे ठोकते नहीं थकती। वहीं मंत्री हर मंच पर दावे करते हैं कि सरकार जन कल्याण के लिए दिन रात एक कर रही हैं लेकिन जमीनी हकीकत पर यह दावे खोखले हैं। अगर बात स्वास्थ्य सुविधाओं की हो तो सुविधा के नाम पर लोगों से भद्दा मजाक हो रहा है। लोगों की जाच करने के लिए डॉक्टर तो हैं, लेकिन उन्हें देने के लिए दवा नहीं है। डॉक्टर अधिकतर बाहर से दवा लिखकर लोगों के हाथ पर्ची थमा देते हैं। कहीं कोई आवाज न उठा दे और इसलिए एक आध गोली अंदर डिस्पेंसरी से लेने के लिए लिख दी जाती है। ऐसे कई सरकारी अस्पताल भी है जहां डॉक्टर इस तरह के टेस्ट लिखते हैं जिसकी सुविधा उस अस्पताल में ना हो ताकि लोग बाहर से वह टेस्ट करवाने पर मजबूर हो जाएं और उसका भरपूर मोटा कमीशन उन्हें मिलता रहे।

डॉक्टरों को लैब से मोटी कमाई

चाहे सरकारी डॉक्टर हो या प्राइवेट डॉक्टर मरीज उनके पास पहुंचा नहीं कि चार-पांच टेस्ट इस तरह के दे देते हैं ताकि लेबर में उनका ज्यादा से ज्यादा कमीशन बने और उनको उनकी मोटी कमाई होती रहे कई डॉक्टर तो लैब के परिचय पर ही दवाइयां लिखते हैं कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं जो जिस लैब का उन्होंने कहा है उसे लैब का टेस्ट चाहिए वरना वह यह कहकर उस टेस्ट को रिजेक्ट कर देते हैं कि जिस लैब से टेस्ट करवाया गया है उस पर उनका विश्वास नहीं है क्योंकि मेडिकल लाइन को आमला आदमी नहीं समझता इसलिए उसकी मजबूरी हो जाती है कि वह डॉक्टर के इशारों पर चले।

दवाओं में भी कमीशन

सिर्फ लैब और टेस्ट से ही नहीं बल्कि हफ्ते में एक या दो बार आने वाले एमआर डॉक्टरों को नया रास्ता दिखा देते हैं। उनको उनका कमीशन भी बता दिया जाता है। यही वजह होती है कि अक्सर डॉक्टर जो दवा लिखता है वह मरीजों को उसी क्षेत्र में या इक्का-दुक्का मेडिकल पर ही मिलती है। इससे डॉक्टर और कंपनी दोनों की मोनोपोली बनी रहती है। डॉक्टर उन्हीं कंपनियों की दवाइयां लेते हैं जिस पर उन्हें मोटा कमीशन मिलता है।

बाहर की दवा लिख कर देते हैं डॉक्टर

डॉक्टर सरकारी सुविधाओं के साथ दवाई की कंपनियों से मोटा कमीशन खा रहे हैं। जानकारी के अनुसार वैसे सरकार द्वारा अस्पताल में भीतर ही लगभग सभी जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं पर कमीशन खोरी के चक्कर में डॉक्टर लोगों को बाहर की दवा लिखकर दे रहे हैं। सारा खेल अस्पताल प्रशासन की नाक के तले चल रहा है। यही नहीं सारी चौकड़ी एक है और अस्पताल के बाहर दुकान भी वही दवाई रखते हैं जो अंदर से लिखी जानी हैं। डॉक्टर द्वारा लिखी जाने वाली दवाई कहीं और से मिलती भी नहीं। यह तो रहा एक पक्ष जो डॉक्टरों की तरफ से है, वहीं आइने के दूसरी तरफ भी मामला पूरा काला है। सरकार ने लोगों को सुविधा मुहैया करवाने के लिए जन औषधी केंद्रों की स्थापना की थी, ताकि लोगों को अस्पताल के अंदर की डिस्पेंसरी के अलावा एक दवाई संबंधी स्टोर और उपलब्ध हो जाए ताकि बाहर महंगी दवाई खरीदने की बजाय जन औषधी केंद्र से दवाई सस्ते दामों पर मिल सके। इन औषधी केंद्र में हालात यह हैं कि दवाई की कोई सप्लाई ही नहीं होती। जो होती है वह न के बराबर।

मृतक भी वेंटिलेटर पर

कई प्राइवेट डॉक्टरों ने अपने निजी अस्पताल खोल लिए हैं। ऐसे डॉक्टर भी हैं जो ज्यादा से ज्यादा दौलत कमाने के चक्कर में मरीज के पहुंचते ही इस तरह प्रदर्शित करते हैं, मानों वह बहुत गंभीर बीमारी से पीड़ित हो। तुरंत, आईसीयू में भर्ती किया जाता है और फिर विभिन्न टेस्ट तथा दवाओं और अन्य मेडिकल साधनों के नाम पर जमकर लूट खसोट की जाती है। ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिसमें मरीज के निधन के बावजूद उसे कई घंटों तक वेंटिलेटर पर सिर्फ इसलिए रखा जाता है , ताकि बिल बढ़ जाए।
वास्तव में डॉक्टर्स डे तभी सार्थक होगा जब यह लूट खसौट बंद हो। इसके लिए सख्त कानून बने।