सवा नौ करोड़ हुआ सरकारी धन का गबन, हेराफेरी से अधिकारी रहे बेखबर

इंदौर। कलेक्टर कार्यालय की लेखा शाखा में सरकारी धन की हेराफेरी में गबन की राशि 9 करोड़ 25 लाख रुपये हो चुकी है। मामले में प्रशासन की समिति की जांच जारी है। बड़ा सवाल यह है कि घोटाले में शामिल कर्मचारी हेराफेरी करते रहे और प्रशासन व कोषालय के अधिकारी इतने समय तक बेखबर क्यों बने रहे? अधिकारी यह जरूर कह रहे हैं कि गबन की राशि में से एक करोड़ 25 लाख रुपये की राशि वसूल हो चुकी है, लेकिन दो-तीन साल तक शासकीय राशि की हेराफेरी कैसे चलती रही, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
करीब चार महीने पहले यह मामला सामने आया था। घोटाले में कलेक्टोरेट की लेखा शाखा का बाबू मिलाप चौहान, सहायक रणजीत और चपरासी अमित निंबालकर मुख्य आरोपी बनाए गए थे। साथ ही इस घोटाले में अब तक आरोपियों की संख्या 50 हो चुकी है। इनमें उनके दोस्त, रिश्तेदार आदि शामिल हैं। फिलहाल मिलाप और रणजीत पुलिस की गिरफ्त में हैं, जबकि अमित फरार है। फिलहाल मामले की दोतरफा जांच चल रही है।
एक जांच प्रशासन की टीम कर रह रही है और एफआईआर दर्ज होने के बाद से पुलिस भी जांच में लगी है, लेकिन इसमें कोई प्रगति नहीं हो पाई है। जांच के साथ ही प्रशासन ने यह तय किया है कि घोटाले की राशि आरोपियों की संपत्ति कुर्क करके वसूल की जाएगी। इसके लिए आरोपियों की संपत्ति की जानकारी जुटाई जा रही है। जांच अधिकारी और अपर कलेक्टर राजेश राठौर ने बताया कि अधिकांश जांच हो चुकी है।
गबन की कुछ राशि वसूल हो चुकी है। अब बची हुई राशि की वसूली आरोपियों की संपत्ति नीलाम कर की जाएगी। इसके लिए हमने अपने राजस्व अधिकारियों को संपत्ति की तलाशी सौंपी है।

फेल ट्रांजेक्शन के बिल लगाकर कोषालय से निकाल लेते थे पैसा

प्राकृतिक आपदा से फसल की नुकसानी पर किसानों को शासन की ओर से राहत राशि दी जाती है। इसके अलावा शासकीय योजनाओं में हितग्राहियों को उनके बैंक खाते में भी राशि दी जाती है। बैंक खातों, नाम, आइएफएससी कोड आदि में त्रुटि के कारण कई बार आनलाइन ट्रांजेक्शन फेल हो जाते हैं। इन फेल हुए ट्रांजेक्शन का ही फायदा उठाकर लेखा शाखा का बाबू मिलाप और रणजीत खेल करते थे।
वे फेल हो चुके पुराने ट्रांजेक्शन के लिए कई दिन बाद दोबारा फर्जी नाम से क्लेम करते, शासकीय कोषालय में बिल लगाते और राशि अपने रिश्तेदारों, मित्रों या जान-पहचान वालों के खातों में ट्रांसफर करवा लेते। बाद में उनके खाते से यह राशि निकलवा लेते थे। बदले में उनको भी कुछ रुपये दे देते थे।