जीवन में सुखी रहना है तो अपर्याप्त को पर्याप्त मानो
मन्दसौर । मानव की इच्छाओं का कोई अंत नहीं है जो व्यक्ति अपने पास जो है उसी में संतुष्ट रहता है तो उससे ज्यादा सुखी कोई नहीं है। जो व्यक्ति संतोष का जीवन जीता है वही व्यक्ति सुख का अनुभव करता है। असंतोषी प्रवृत्ति का व्यक्ति सुखी रह ही नहीं सकता। इसलिये जीवन में जो अपने पास है उसी में सुखी रहने का प्रयास करो।
उक्त बात उद्गार नरसिंहपुरा स्थित चारभुजा कुमावत धर्मशाला में श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कराते हुए पं. श्री भीमाशंकरजी शर्मा ने कही। आपने कहा कि हमारे पास आवश्यकता के अनुसार धन संपत्ति है फिर भी हम सुखी नहीं है। क्योंकि आपके लोभ का कोई अंत नहीं है, यदि हमारे पास 99 रू. है और हम १ रू. नहीं होने का दुख अनुभव कर रहे है तो हमारी मूर्खता ही होगी। इसलिये जीवन में जितना है उसमें सुखी रहे।
श्री शर्मा ने कहा कि वर्तमान में जिये, भविष्य की चिंता नहीं करे, यदि भविष्य के प्रति चिंतित रहोगे तो आपका वर्तमान खराब हो जायेगा। वर्तमान जिस व्यक्ति का सही है, भविष्य भी उस व्यक्ति का उत्तम ही होगा। आपने कहा कि चिन्ता के कारण व मन मुताबिक काम नहीं होने पर आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बड़ी है। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है, यदि कोई समस्या है तो परिवार के साथ शेयर करो।भागवत कथा के द्वितीय दिवस गेंदमल अडानिया, सत्यनारायण अडानिया, अर्जुन अडानिया, कोमल अडानिया, जितेन्द्र अडानिया, विजय अडानिया आदि भागवत पौथी की आरती की।