परमात्मा की भक्ति से ही पुण्य की प्राप्ति होती है

 

नीमच। परमात्मा के प्रति समर्पण भाव, त्याग-तपस्या, भक्ति से ही परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है। संसार का व्यक्ति अक्सर सोचता है कि यह मैंने किया है, यह मेरा है। जबकि पुण्य कर्म परमात्मा के होते हैं और कर्मों के अनुसार व्यक्ति का कार्य होता है। परमात्मा के लिए जिसके अच्छे कर्म होते हैं उसका कार्य अच्छा होता है लेकिन कार्य परमात्मा की कृपा से ही पूरा होता है। भाव अच्छे होंगे तो कार्य भी अच्छा होगा। एक घंटे तक मंदिर में कलश पूजा कर एकाग्र चित्त भाव से परमात्मा की भक्ति में लीन रहे तो परमात्मा हमारा भला कर सकता है। यह बात आचार्य श्री प्रसन्न चंद्र सागरजी ने कही।आराधना भवन में आचार्य श्री प्रसन्न चंद्र सागरजी मसा के सानिध्य में चातुर्मासिक धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं। मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में आचार्य श्री ने कहा कि गुरु से अच्छे और सच्चे संस्कार सीखना चाहिए। गुरु के उपकार को कभी भूलना नहीं चाहिए। शब्दों में बहुत ताकत होती है। इसलिए शब्द सोच समझकर बोलना चाहिए। जीवन में जो भी कार्य होता है.। परमात्मा की कृपा से ही अच्छा होता है। यह सब संस्कार महापुरुषों ने सिखाए हैं। यदि हमारे विचार अच्छे होंगे तो हमारी प्रवृत्ति भी अच्छी होगी।

Author: Dainik Awantika