आयु 55 या 60 हो जाये तो गृहस्थ जीवन के प्रति मोह छोड़ दो
मन्दसौर। नरसिंहपुरा स्थित चारभुजा कुमावत धर्मशाला में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव में कथा प्रवक्ता पं. श्री भीमाशंकरजी शर्मा ने कहा कि मानव जीवन अनमोल है इसे विषय वासना व घर परिवार में उलझाकर बर्बाद नहीं करना है। वैदिक धर्म व संस्कृति में चार आश्रम बताये है जब हमारे गृहस्थ जीवन का समय पूर्ण हो जाये अर्थात हमारी आयु 55 या 60 हो जाये तो गृहस्थ जीवन के प्रति मोह छोड़ दो। वैदिक धर्म में इसे ही वानप्रस्थ कहा गया है। अर्थात जब परिवार के सदस्य अपनी जिम्मेदारी उठाना सीख जाये तो मानव को चाहिये कि वह गृहस्थ जीवन के प्रति अपना मोह कम कर दे और प्रभु का भजन शुरू करे। यदि मनुष्य गृहस्थ जीवन में ही उलझा रहेगा तो उसका जीवन बर्बाद हो जायेगा।
आपने बताया कि भागवतजी प्रेरणा देती है कि संतान का जब विवाह हो जाये अर्थात पुत्र पुत्री का घर बस जाये। नाती पोते हो जाये तो घर गृहस्थी से अपने को विमुख करना शुरू कर दो। घर परिवार की जिम्मेदारी संतान पर डाल दो इसी में आपका कल्याण है।पं. भीमाशंकरजी शर्मा ने कहा कि इस संसार को धर्मशाला मानो जिस प्रकार धर्मशाला में कोई स्थायी रूप से नहीं रहता उसी प्रकार हमें भी इस संसार में इस मानव शरीर को छोड़कर जाना है, जब शरीर की आयु पूरी हो जायेगी तो शरीर हमारा साथ छोड़ दो। इसलिये शरीर एवं संसार दोनों के प्रति मोह मत रखो। आपने कहा कि मनुष्य जीवन भर धन दौलत के पीछे भागता है, धन संपत्ति कमाने के लिये अपना पूरा जीवन लगा देता है। लेकिन जब मृत्यु आती है तो शरीर भी यही रह जाता है और कमायी गई धन दौलत भरी यही रह जाती है। इसलिये धन के पीछे नहीं धर्म के पीछे भागो।भागवत कथा के तृतीय दिवस प्रेस क्लब जिलाध्यक्ष ब्रजेश जोशी, व अडानिया परिवार के गेंदमल अडानिया, सत्यनारायण अडानिया, अर्जुन अडानिया, कोमल अडानिया सहित पूरे परिवाजनों ने भागवत पोथी की आरती की।