दया, कृपा या क्षमा के नहीं, प्रेम और विश्वास के पात्र बनो
रतलाम । विश्वास एक वृक्ष है, जो दिल में उगता है। दिमाग में फैलता है और जुबान से फलता है। विश्वास प्रेम का नाम है, आत्मीयता और भरोसे का पर्याय है। विश्वास रहता है, तो यह बहुत बडी शक्ति है, समृद्धि है और हमारी उपलब्धि है। संसार में सारे संबंध विश्वास के इंजन से ही चलते है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा दुर्मति का सातवां दोष विश्वासघात है। इससे सबकों बचना चाहिए। एक-दूसरे पर परस्पर विश्वास वर्तमान समय की सबसे बडी पूंजी है। विश्वास होता है, तो जीवन बडा सरल हो जाता है। इसमें कभी कोई मुश्किल नहीं आ सकती। लेकिन आज दुनिया में विश्वास पर ही खतरा हो रहा है, जिससे हमेशा विश्वासघात का डर बना रहता है।
आचार्यश्री ने कहा कि विश्वास कभी दिया नहीं जाता, अपितु हमेशा लिया जाता है। विश्वास उन्हीं को प्राप्त होता है, जो उसके पात्र होते है, इसलिए सबको विश्वास का पात्र बनना चाहिए। संसार में कई लोग दया के पात्र होते है, कृपा के पात्र होते है, क्षमा के पात्र होते है और कई लोग प्रेम तथा विश्वास के पात्र होते है। हमे दया, कृपा या क्षमा के नहीं, वरन प्रेम और विश्वास के पात्र बनने का प्रयास करना चाहिए। कडवी जुबान और खोटा पैसा ये दो चीजे इंसान की इंसान से दूरी पैदा करते है। जीवन में ये रहेंगे, तो कभी विश्वास पात्र नहीं बन पाएंगे। इनसे दूर रहकर हमेशा ये प्रयास करो कि जो हम पर भरोसा करते है, उनका विश्वास कभी टूटना नहीं चाहिए।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर, प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन कर पापों से बचने का आव्हान किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। प्रवचन के अंत में बैंगलुरू से आए श्रीरामपुरम श्री संघ के गौतमचंद ओस्तवाल ने भाव रखे। संघ अध्यक्ष प्रकाशचन्द्र बम ने संत-साध्वी मंडल से प्रवास की विनती की। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।