हर साल तिल के बराबर बढ़ जाते हैं तिलभांडेश्वर महादेव
सारंगपुर। प्राचीन और पुरातन नगरी सारंगपुर अपने प्राचीन शिवालयों और उनसे जुड़ी धार्मिक आस्था, किवदंती और अनेक मान्यताओं के कारण प्रसिद्घ है। यहाँ के तत्कालीन राजा सारंगदेव द्वारा बनवाया गया तिलभांडेश्वर मंदिर ऐसा ही एक स्थान है, हालांकि यह ज्ञात किसी को नहीं है कि यह मंदिर कब किस सन, संवत में बनाया गया। लेकिन मान्यता है कि इस शिवलिंग का आकार प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ़ जाता है। तिलभांडेश्वर मंदिर नगर के सबसे पूर्वी भाग में विराजमान है।
मंदिर की स्थापना और निर्माण के समय शाक्य एवं शैव परंपराओं के साथ ही तांत्रिक विधि का ध्यान रखा गया है। वैसे इसी परिसर में अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। मगर सबसे अहम हैं तिलभांडेश्वर जिनकी महिमा अपरंपार है। मंदिर के पुजारी पं. गोपाल वैद्य का कहना है कि इस शिवलिंग का आकार प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ़ जाता है। पुजारी वैद्य की माने तो उनकी कई पीढ़ियां पूजा करती आ रही है। उनके पूर्वज भी शिवलिंग के बढ़ने की बात कहते थे। मकर संक्रांति पर बढ़ता है शिवलिंग का आकार
बाबा के भक्त संतोष पुष्पद ने बताया कि बाबा तिलभांडेश्वर का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की मान्यता है कि बाबा तिल भांडेश्वर स्वयंभू हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के इस मंदिर में मौजूद यह शिव लिंग मकर संक्रांति के दिन एक तिल के आकार में बढ़ता है। लिंग के हर साल एक तिल बढ़ने का उल्लेख शिव पुराण धर्म ग्रन्थ में भी है।
श्रीपुष्पद ने कहा कि क्षेत्र में प्रचलित मान्यता अनुसार ब्रिटिश काल में शिवलिंग के बढ़ने की बात को परखने के लिए एक बार अंग्रेजों ने बाबा के शिवलिंग पर उनके नाप से एक धागा बांध दिया और मंदिर को बंद कर दिया। जब मंदिर खोला गया तो देखा गया कि धागा टूटा हुआ है। तब से अंग्रेजों की आस्था भी इस मंदिर में हो गई थी। मंदिर के पुजारी गोपाल वैद्य बताते हैं कि यहां शिवलिंग पर बेलपत्र के अलावा तिल भी चढ़ाया जाता है। इससे शनि दोष भी खत्म होता है और सुख की प्राप्ति होती है। इस सावन के चौथे सोमवार को यह भक्तों को तांता लगेगा और भक्त बड़ी संख्या में पूजा-अर्चना एवं अभिषेक करने के लिए पहुंचेंगे।