जीए यह सोचकर की आज हमारी जिंदगी का आखरी दिन : आचार्य विजय कुलबोधिजी
रतलाम । हमारे जीवन में तीन कॉल आते है, डेथ कॉल, डिसीस कॉल और डेड लाइन कॉल। हमारी डेथ निश्चित है, लेकिन डेट नहीं पता। परेशानी यह नहीं है कि कल आएगा या नहीं लेकिन हम रहेंगे या नहीं ये परेशानी है। टुडे मे बी द लास्ट डे आॅफ माय लाइफ सांस का कोई भरोसा नहीं है, हमें यह सोचकर जीना चाहिए कि आज हमारी जिंदगी का आखरी दिन है।
यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने मंगलवार को सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में प्रवचन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि हमारे शरीर में रोग न आए तो आश्चर्य की बात है। शरीर में 3.5 करोड़ रोम है, इतने ही रोग का वास है। उन्होने कहा कि मौत जब आएगी तब आएगी, लेकिन हर व्यक्ति की उम्र में अंतिम पड़ाव आता है, जो डेड लाइन कॉल होता है। जब अंतिम समय निकट आता है तो पांच खिड़कियां बंद होती है। ये तीन कॉल सुनकर आत्म कल्याण कर लो। अंतिम पढ़ाव आना है, बीमारी होना है और मृत्यु भी निश्चित है।
आचार्य श्री ने कहा कि जगत परिवर्तनशील है। यहां कुछ भी शाश्वत नहीं है। जिसे हम अपने पास समझते है, वह कायम नहीं रहेगा। अगर यह आत्म ज्ञान हो जाए तो कभी तकलीफ नहीं होगी। तू नित्य है लेकिन तेरे पास जो कुछ भी है वह अनित्य है। यदि संसार से अवृत्यि होना है, तो उसका एक मंत्र है कि चाहे दुनिया की कोई भी चीज हो वह अनित्य है, स्थाई नहीं है।
आचार्य श्री ने कहा कि काया का कोई भरोसा नहीं है। हमारे देह की कोई गारंटी नहीं दे सकता है, इसकी एक्सपायरी है। यदि हम यह जान ले तो निश्चित तौर पर हमे लगेगा कि इस तन का कोई भी मोह नहीं करना चाहिए। दुनिया की हर चीज का रिन्यूवेशन हो सकता है। जैसे घर, कार, बंगले का लेकिन हमारे शरीर का पॉसिबल नहीं है। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।