बदनावर। आप लोग दूर-दूर से चलकर आते हो, चाहते हो गुरु जी के दर्शन मिल जाएं तो जीवन सफल हो जाएं। आप हमारी पुजा अर्चना करते हो, मुझे मेरी पुजा करवाना नहीं भाता पर हम आपके निमित्त से हम हमारे गुरु महाराज की पुजा अर्चना कर लेते हैं। द्रव्य,क्षेत्र, काल, भाव के निमित्त से कार्य से सब कार्य हुआ करते हैं।
उक्त बातें जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनि राज ने चन्द्रगिरि जैन तीर्थ डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में चल रहे चातुर्मास के दौरान रविवार को अपने उद्बोधन में कहीं। उन्होंने प्रवचन सुन रहे विशाल जनसमूह कि ओर मुखातिब होते हुए प्रश्न पूछा कि आप लोग कोई कार्य किस लिए करते हों? यहां आते हैं तो देव दर्शन करते हो, गुरु दर्शन करते हो तो वह मन भरने या मन लगाने के लिए करते हो? यदि आप मन लगाने के लिए कार्य कर रहे हैं और आपका मन लग गया तो समझों आपका बेड़ा पार हो गया। इन सबमें भी क्षेत्र, काल और भाव के निमित्त का कार्य कारी व्यवस्था कार्य करती है।
उन्होंने आगे कहा कि अवसर पा कर हिंसक जीव भी अहिंसक हो जाते हैं और वैसे ही अहिंसक जीव भी हिंसक हो जाते हैं। दो हजार वर्ष पूर्व के धवला महा धवाला जैसे प्राचीन ग्रंथ में व्याघ्र सिंह जैसे से हिंसक जीवों को भी घास खाने की बात कही गई है। ग्रंथों में सिंह के शाकाहारी होकर सल्लेखना अथवा समाधि ग्रहण करने की बात कही।
गई है तो यह सब भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के निमित्त उपादान आदि का ही उदाहरण है।
यह जानकारी वर्द्धमानपुर शोध संस्थान एवं वर्द्धमान2550 के सदस्य ओम पाटोदी जैन, स्वप्निल जैन, अभय पाटोदी जैन ने दी जो चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ गुरु दर्शन के लिए पहुंचे हैं। इस दौरान “सोने की चिड़िया और लुटेरे अंग्रेज” किताब का विवेचन भी आचार्य श्री के समक्ष हुआ। इस अवसर पर वर्धमानपुर शोध संस्थान के सदस्यों द्वारा संघस्थ निर्यापक मुनिश्री प्रसाद सागर जी महाराज से वर्धमान2550 के बारे में चर्चा की।