क्या “गंगा” के गुनहगारों को मिलेगी सजा..? उज्जैन विकास प्राधिकरण की कॉलोनी गंगा विहार योजना में हुए घोटाले और उसे दबाने की कोशिश ने खड़े किए कई सवाल
ब्रह्मास्त्र उज्जैन। उज्जैन विकास प्राधिकरण की योजना गंगा विहार कॉलोनी भ्रष्टाचार की ऐसी भेंट चढ़ी कि वह आकार ही न ले पाई। इस योजना में हुई गड़बड़ी के लिए जिस जांच कमेटी को बनाया गया था, वह भी किसी अदृश्य शक्ति के चलते चुपचाप बैठी रही। घोटाले पर कोई एक्शन भी नहीं हुई। इन सब हालातों को देखकर यह सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि क्या गंगा विहार योजना के गुनहगारों के गिरेबान तक जांच टीम पहुंचेगी और असल गुनहगारों को सजा मिल सकेगी? यूडीए की बरसों पुरानी इस योजना में भ्रष्टाचार का ऐसा कीड़ा लगा कि जिन लोगों ने घोटाले किए वह तो अपनी जगह हैं ही, इस घोटाले की जांच के लिए जो समिति बनाई गई थी वह समिति भी कटघरे में है। अब उस जांच समिति की लेटलतीफी की भी जांच करने की जरूरत है। मामला उज्जैन विकास प्राधिकरण की गंगा विहार योजना के लिए जमीन अधिग्रहण का है। इस पूरे मामले में जमीनी खिलाड़ियों ने एक ऐसा खेल खेला, जिसमें यूडीए के तत्कालीन बोर्ड ने हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ को भी गुमराह किया। यह तथ्य एक बार फिर से शुरू हुई जांच में सामने आए हैं। यह जमीन अब सिर्फ एक मैदान बनकर पड़ी हुई है और इस पर आकार लेने वाली योजना का अब कोई नाम लेवा भी नहीं रहा।
जमीन अधिग्रहण को लेकर लगी थी याचिका
दरअसल, हुआ यह था कि जमीन अधिग्रहण विवाद को लेकर अंबेश गृह निर्माण सहकारी संस्था ने इंदौर हाई कोर्ट में एक याचिका लगाई थी। दोनों पक्षों में एक समझौता हुआ और एक डीड भी तैयार हुई। उसमें शर्त यह थी कि यह समझौता डीड हाई कोर्ट में पेश की जाएगी और उसके प्रस्तावित करने तथा मंजूर होने के बाद ही प्रभावशील मानी जाएगी, परंतु जिम्मेदारों की निष्ठा और ईमानदारी लालची हाथों में बिक गई।
कुछ लोगों की जेब भर गई
और शहर का नुकसान हो गया
इससे भले ही कुछ लोगों की जेब भर गई हो और उन्हें इसका फायदा मिला, लेकिन शहर का तो नुकसान हो गया। पर्दे के पीछे एक अलग ही खेल रचा जाने लगा। उज्जैन विकास प्राधिकरण और अंबेश गृह निर्माण सहकारी संस्था के बीच भूखंड लेने और देने का जो सौदा तय हुआ था, उससे कहीं अधिक भूखंड अंबेश संस्था को बाले बाले दे दिए गए। इसके एवज में अंबेश संस्था ने कोर्ट से केस वापस ले लिया।
खुद यूडीए के जांच दल ने ही किया घोटाले का खुलासा
घोटाले का यह खेल कागजों में ही दबा रह जाता, लेकिन इसका खुलासा तब हो गया, जब यूडीए की ही जांच टीम ने जांच बिंदु के प्रतिवेदन क्रमांक 15 में कहा कि 20 अप्रैल 2004 को इस समझौते के अनुसार इसे माननीय हाईकोर्ट के समक्ष भेजने के बाद ही प्रभावशाली होना था। इस शर्त से बचने के लिए 1 माह बाद 20 मई 2004 को संशोधित समझौता हुआ और भ्रष्टाचार के खेल ने आकार ले लिया। संस्था ने याचिका क्रमांक 1211/ 99 वापस ले ली और प्रकरण नस्तीबध्द कर दिया गया। जितनी जमीन संस्था को मिलनी थी, उससे 3 गुना अधिक जमीन प्राधिकरण ने विशेष मेहरबानी के तहत दे दी।
जांच दल तो बना परंतु कार्यवाही नहीं हुई
बताया जाता है कि उज्जैन विकास प्राधिकरण ने 17 जनवरी 2020 को गंगा विहार योजना अंतर्गत श्री अंबेश गृह निर्माण सहकारी संस्था एवं अन्य से हुए अनुबंध के परिपेक्ष्य में संपूर्ण वस्तुस्थिति का प्रतिवेदन चाहा था। इसके लिए 9 सदस्यीय दल का गठन किया गया था। इस दल के प्रभारी घनश्याम शुक्ला कार्यपालन यंत्री बनाए गए थे। इस मामले में दल से 7 दिन के अंदर रिपोर्ट मांगी गई थी, परंतु समय बीतता गया लेकिन इस पूरे मामले में कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। जांच दल पर यह भी आरोप लगे कि क्या उन्होंने यह जांच घोटालेबाजों को बचाते हुए की।
समय पर जांच प्रतिवेदन नहीं देने वाली समिति के सदस्यों का वेतन रोकना पड़ा
जांच में कितनी लापरवाही और लेतलाली चल रही थी, इसका पता इसी बात से चल जाता है कि यूडीए ने दिनांक 17 जनवरी 2020 को जिस समिति का गठन किया था , उस टीम के सदस्यों का माह जून का वेतन रोक लिया गया। तत्कालीन सीईओ को इस बारे में आदेश देने पड़े कि गंगा विहार योजना के प्रकरण के निराकरण के बाद ही इनको वेतन दिया जाए।
किन-किन लोगों का घोटाले में हाथ
जमीन से जुड़े इस मामले में जो समझौता हुआ उसके संबंध में प्राधिकरण बोर्ड में प्रस्ताव रखा जाना चाहिए था, परंतु ऐसा किए बगैर ही उसे लागू कर दिया गया। बहरहाल यूडीए सीईओ एस एस रावत के नेतृत्व में अब इस मामले में गठित समिति अपने स्तर पर जांच कर रही है। देखना यह है कि उस वक्त क्या क्या गुल खिलाए थे। जांच रिपोर्ट में क्या-क्या सामने आता है। और कौन-कौन लोग थे जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी ना निभाते हुए घोटाले को अंजाम दिया।