श्रीमद भागवत कथा के पंचम दिवस की कथा में भगवान के बाल लीलाओं का वर्णन
अकोदिया मंडी । आज कल की युवा पीढ़ी अपने धर्म अपने भगवान को नही मानते है, लेकिन तुम अपने धर्म को जानना चाहते हो तो पहले अपने धर्म को जानने के लिए गीता, भागवत, रामायण पढ़ो तो, तुम नहीं तुम्हारी आने वाली पीढ़ी भी संस्कारी हो जायेगी। ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा छोड़कर गिरिराज जी की पूजा शुरू कर दी तो इंद्र ने कुपित होकर ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश की, तब कृष्ण भगवान ने गिर्राज को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की और इंद्र का मान मर्दन किया। तब इंद्र को भगवान की सत्ता का अहसास हुआ और इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी व कहा हे प्रभु मैं भूल गया था की मेरे पास जो कुछ भी है वो सब कुछ आप का ही दिया है। उक्त उदगार नगर की सार्वजनिक धर्मशाला में लाहौटी परिवार के तत्वाधान में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस कि कथा में भगवान के बाल लीलाओ का वर्णन करते हुए भागवताचार्य दिलीप आनंद कृष्ण जी महाराज ने व्यक्त किए।
महाराज श्री ने कहा धनवान व्यक्ति वही है जो अपने तन, मन, धन से सेवा भक्ति करे वही आज के समय में धनवान व्यक्ति है। परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम के द्वारा ही संभव हो सकती है। पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए महाराज ने बताया कि पूतना राक्षसी ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर उसका कल्याण किया। माता यशोदा जब भगवान श्री कृष्ण को पूतना के वक्षस्थल से उठाकर लाती है उसके बाद पंचगव्य गाय के गोब, गोमूत्र से भगवान को स्नान कराती है। सभी को गौ माता की सेवा, गायत्री का जाप और गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। गाय की सेवा से 33 करोड़ देवी देवताओं की सेवा हो जाती है। भगवान व्रजरज का सेवन करके यह दिखला रहे हैं कि जिन भक्तों ने मुझे अपनी सारी भावनाएं व कर्म समर्पित कर रखें हैं वे मेरे कितने प्रिय हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरणरज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं।
कथावाचक महाराज जी ने गोवर्धन लीला का वर्णन करते हुए बताया की 7 कोस लंबे चौड़े गोवर्धननाथ को भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी अंगुली पर धारण कर इंद्र देव का अभिमान तोड़ा। इस लिए जीव को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए और कर्म करना चाहिए। फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। मानव जैसे कर्म करेगा तो फल पाएगा इसलिए भगवान ने भी कर्म को प्रधान बताते हुए कहा कर्म करना जीव का धर्म है फल देना मेरा काम है।