अरुण यादव आखिर क्यों नहीं लड़ना चाहते लोकसभा उपचुनाव..?
6 माह से तैयारी करने वाले यादव के अचानक इंकार कर देने से सभी हतप्रभ
ब्रह्मास्त्र इंदौर। .खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के सशक्त उम्मीदवार माने जा रहे अरुण यादव ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। इस बारे में उन्होंने पार्टी आलाकमान को पत्र भी लिखा है। पत्र में उन्होंने अपने चुनाव न लड़ने के कारणों का स्पष्टीकरण भी दिया है। अरुण यादव के चुनाव में लड़ने के फैसले से कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। कहते हैं कि यह जरूरी नहीं है कि जो राजनीति में दिखाई देता है वही होता है।
दरअसल पिछले काफी लंबे समय से अरुण यादव क्षेत्र में सक्रिय थे और पार्टी में का टिकट लगभग पक्का माना जा रहा था। जो अरुण यादव पिछले 6 माह से लगातार खंडवा में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सक्रिय थे, वह अचानक चुनाव लड़ने से इंकार क्यों कर बैठे? इसे लेकर राजनीतिक गलियारे सहित तमाम क्षेत्रों में सवाल उठ रहे हैं। यहां प्रस्तुत हैं, वे सवाल जो लोगों के जेहन में आ रहे हैं ।
क्या अरुण यादव भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह ही वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के विरोध के चलते आहत हैं और वे भाजपा में जा रहे हैं।
अरुण यादव ने चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद भी हालांकि यह कहा है कि वह कांग्रेस में ही रहेंगे और कांग्रेस प्रदेश में उपचुनाव की चारों सीटें जीतेगी। इससे यह कयास लगाया जा रहा है कि अरुण यादव ने गुस्से में या फिर आहत होकर चुनाव लड़ने से भले ही इंकार कर दिया हो , लेकिन वह पार्टी नहीं छोड़ेंगे। यदि ऐसा है तो क्यों? गौरतलब है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नहीं चाहते हैं कि अरुण यादव चुनाव लड़ें। अरुण यादव भी इस स्थिति को अच्छी तरह समझ रहे हैं। यदि दो दिग्गज नेता यानी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह अरुण यादव के खिलाफ हैं, तो टिकट मिल कर भी क्या पा लेंगे? गुटबाजी के चलते उन्हें भाजपा की बजाय अपनी ही पार्टी के लोगों से लड़ना और जूझना होगा। यानी भाजपा उन्हें हराने की जो कोशिश करती वह तो ठीक ही था, लेकिन उनकी ही पार्टी के लोग उन्हें हराने में लग जाते। आमतौर पर यह कांग्रेस में होता भी आया है।
कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को समर्थन देने वाले तथा कांग्रेस से ही जुड़े रहे बुरहानपुर के विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा अपनी पत्नी को खंडवा लोकसभा उपचुनाव में लड़वाना चाहते हैं। वह टिकट के लिए खड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में शायद कांग्रेश शेरा को खोना नहीं चाहती है, क्योंकि यह तय है कि यदि शेरा की पत्नी को टिकट नहीं दिया तो शेरा पाला बदल सकते हैं। बुरहानपुर में शेरा की जबरदस्त पकड़ है। ऐसी स्थिति में एक पूरे विधानसभा क्षेत्र को खो देना यानि चुनाव हारने जैसा ही है। यह बात कांग्रेसी नेताओं ने भी और खुद अरुण यादव ने भी समझ ली है। शेरा खुलकर यह बात कह भी चुके हैं कि यदि उनकी पत्नी को लोकसभा उपचुनाव में टिकट नहीं मिला तो वे फिर कोई भी फैसला ले सकते हैं। अब इसे लोग ब्लैकमेलिंग समझे या उनके चुनाव लड़ने का दावा , इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की फितरत रही है कि वह जहां भी जाते हैं, कांग्रेस में ही 2- 4 प्रतिद्वंदी खड़े कर देते हैं। वह अपने समर्थकों को बिंदास कह देते हैं कि चुनाव लड़ने की तैयारी करो। एक बार किसी के मन में आकांक्षा जागृत हो जाए और उन्हें यह विश्वास हो जाए कि राजा साहब उनके साथ है और टिकट उन्हें ही दिलवाएंगे ,तो फिर किसी भी प्रतिद्वंदी का खड़ा हो जाना और मैदान संभाल लेना स्वाभाविक है। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है। क्या अरुण यादव इस स्थिति को समझते हुए चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे हैं?
यदि अरुण यादव भाजपा में नहीं जा रहे हैं तो क्या उनका अंदर ही अंदर कोई पैचअप हो गया है।
ध्यान रहे कि अरुण यादव पिछड़ा वर्ग के वोट बैंकमें जबरदस्त पकड़ रखते हैं। भाजपा इस वक्त इसी पिछड़ा वर्ग को साधने में लगी हुई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अरुण यादव भविष्य में कोई अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं।