जिस फिल्म 12वीं फेल के टीजर को देख रहा पूरा देश, उसकी जड़ें इंदौर में
इंदौर के लेखक अनुराग पाठक की किताब पर बनी है फिल्म 12वीं फेल, यशोवर्धन शर्मा ने की है एडिटिंग
नगर प्रतिनिधि इंदौर
हाल ही में फिल्म गदर-2 और ओह माय गाड के साथ एक और फिल्म का टीजर जारी हुआ है, जिसे पूरा देश यूट्यूब पर खूब पसंद कर रहा है। विधु विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन की इस फिल्म का नाम है 12वीं फेल।
दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म की कहानी मध्य प्रदेश के एक ग्रामीण लड़के के यूपीएससी क्लीयर करने और आइपीएस बनने की कहानी है। इससे भी दिलचस्प यह है कि यह फिल्म इंदौर के लेखक अनुराग पाठक की किताब पर बनी है और इस फिल्म के एडिटर भी इंदौर निवासी यशोवर्धन शर्मा हैं। इस दृष्टि से इस फिल्म की कहानी, पटकथा, एडिटिंग सब इंदौर के नाम है।
हारा वही जो लड़ा नहीं
12वीं फेल फिल्म की कहानी लेखक और स्टेट जीएसटी डिप्टी कमिश्नर डा. अनुराग पाठक की किताब पर आधारित है। इस किताब में डा. पाठक ने अपने दोस्त आइपीएस मनोज कुमार शर्मा के संघर्षों को बयां किया है। किताब में दशार्या गया है कि मनोज का जीवन रोमांच से भरा हुआ है। आज के युवाओं को इस कहानी को जरूर पढ़ना चाहिए कि कैसे असफलता के बाद भी सफल होने के लिए निरंतर मेहनत जारी रखनी चाहिए। किताब में बताया गया है कि मनोज 12वीं में फेल हो गए थे और उन्होंने टेम्पो कंडक्टर से लेकर कुत्ता घुमाने तक की नौकरी की है। इसके बाद जब उन्हें एक अधिकारी से प्रेरणा मिली, तो वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुट गए। वहां भी कई बार असफलता हाथ लगी लेकिन हर बार वह दोबारा कोशिश करते। इस किताब की टैगलाइन है कि “हारा वही जो लड़ा नहीं” और इस फिल्म की कहानी इस वाक्य को बखूबी चरितार्थ करती है। इस फिल्म का टीजर रीलीज हो चुका है, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया है।
वीडियो एडिटिंग में युवाओं के लिए संभावनाएं
वीडियो एडिटर यशोवर्धन शर्मा इंदौर से हैं और वे विधु विनोद चोपड़ा के प्रोडक्शन में कार्यरत हैं। 12वीं फेल फिल्म का टीजर निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने बनाया है। यशोवर्धन बताते हैं कि वीडियो एडिटिंग के क्षेत्र में युवाओं के लिए बहुत संभावनाएं हैं। अगर आपके अंदर प्रतिभा है तो आप इस क्षेत्र में अच्छा करियर बना सकते हैं। दरअसल वीडियो एडिटिंग बहुत धैर्य और बारीकियों से भरा काम है। कई तरह की फिल्में बनती हैं और हर फिल्म के अलग चैलेंजेस होते हैं। 12वीं फेल फिल्म की एडिटिंग में करीब आठ महीने लगे, क्योंकि डायरेक्टर के मन में जो विचार आता है, उसे शूट करके वीडियो लाता है। लेकिन एडिटिंग डेस्क को हर सीन को बेहतर बनाना होता है। किस सीन को जूम करना है और किस सीन का फ्रेम काटना है, यह सब तय करना होता है। यह एक क्रिएटिव कार्य है और युवा इसमें अपनी क्रिएटिविटी का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं।