पर्यूषण महापर्व के चैथे दिन नमो मंगलम पर प्रवचन- घर-घर में इंसानियत पैदा हो, तो धरती स्वर्ग बन जाएगी-आचार्य विजयराजजी मसा

रतलाम ।  श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्त-क्रांति संघ के तत्वावधान में पर्यूषण महापर्व की आराधना जारी है। गुरूवार को परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर १००८ श्री विजयराजजी मसा ने कहा कि हर घर में इंसान पैदा होता है, लेकिन इंसानियत पैदा नहीं होती। इंसानियत जिस घर में पैदा होती है, वह घर, घर नहीं, मंदिर होता है। यदि घर-घर में इंसानियत पैदा हो जाए, तो यह धरती स्वर्ग बन जाएगी।
पर्यूषण महापर्व के चैथे दिन आचार्यश्री ने नमो मंगलम विषय पर प्रवचन देते हुए कहा कि यदि घर को तीर्थ बनाना है, तो इंसानियत पैदा करो। मद नहीं, अपितु मदद करो। जीवन में जब ये संस्कार होंगे, तभी इंसानियत पैदा होगी। विडंबना है कि आज सब तरफ संस्कारों का पतन हो रहा है। पर्यूषण का महापर्व हमे संस्कार देने आता है। इसमें अधिक से अधिक धर्म, ध्यान, तप, त्याग और मदद का भाव रखकर अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जैन धर्म की तीन विशेषताएं उसे अलग स्थान दिलाती है। पहली ये चमत्कार नहीं नमस्कार पर बल देता है। दूसरा किसी का तिरस्कार नहीं और सबका उपकार तथा तीसरा किसी की उपेक्षा नहीं अपितु सबकी अपेक्षा इस मूलमंत्र है। मनुष्य के भीतर इंसानियत होती है, तभी वह मदद कर पाता है। समाज में जब दया धर्म का मूल है, ऐसे संस्कार दिए जाते है, तभी व्यक्ति मदद कर पाता है। मद करना अज्ञानी का काम है और मदद ज्ञानी ही कर सकते है।
आचार्यश्री ने कहा कि नमस्कार का अति महत्व है। नवकार महामंत्र की शुरूवात नमो से होती है और से मंगलम पर खत्म होता है। यदि हमने नमो करना सीख लिया, तो कल्याण हो जाएगा। नमस्कार के साथ जब भी दान किया जाता है, तो वह धर्म बन जाता है। आचार्यश्री ने इस मौके पर भू्रण हत्या को पाप बताते हुए उससे बचने का आव्हान किया।
प्रवचन के आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन किया।
विद्वान संत श्री रत्नेशमुनिजी मसा ने आगम का वाचन किया। महासती श्री इन्दुबालाजी मसा ने भी संबोधित किया। उज्जैन से आए कवि हेमंत श्रीमाल ने इस मौके पर अपनी कविता पाठ किया। इस दौरान सैकडों श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।

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