संस्कृत और संस्कृति को अलग नहीं कर सकते – कुलपति विजय कुमार 

 
– दैनिक ब्रह्मास्त्र के विश्व संस्कृत दिवस सप्ताहारंभ में संस्कृतिविदों का सम्मान 
– 100 बटुकों ने एक स्वर में स्वस्ति वाचन कर संपूर्ण वातावरण धर्ममय कर दिया  
दैनिक अवंतिका उज्जैन। 
दैनिक अवंतिका समूह के संस्कृत में उज्जैन से प्रकाशित देश के एक मात्र समाचार पत्र दैनिक ब्रह्मास्त्र के बैनर तले विश्व संस्कृत दिवस के अवसर पर वेदाचार्य पं. भुवनेश पांडे की स्मृति में रविवार को हरसिद्धि पाल स्थित श्री हाटकेश्वर धाम में आयोजित संस्कृत सप्ताह शुभारंभ समारोह की अध्यक्षता करते हुए महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजय कुमार सीजी ने कहा कि संस्कृत और संस्कृति को अलग नहीं किया जा सकता है। यदि ये अलग हो जाए तो हम भी नहीं होंगे। प्रो. सीजी ने कहा कि संस्कृत एक प्रकार कर बंधन है जो हमारे भारत की सनातन धर्म संस्कृति को बचाए रखती है। हम बड़े भाग्यशाली है जो भारत में जन्में और यहां हमें संस्कृत मिली। वर्षों से संस्कृत सप्ताह मनाया जा रहा है। श्रावण पूर्णिमा के आसपास यह शुरू होता है। अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी इसमें काफी योगदान रहा है। उन्होंने संस्कृत में बटुकों के साथ राेचक गीत भी गाए।   
मुख्य अतिथि व्याकरण विभाग के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश कुमार द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत हमें संस्कार देती है। उज्जैन सप्तपुरियों में एक ज्ञान की नगरी है। कवि कलिदास भी यहां आकर ज्ञान प्राप्त कर विख्यात हुए। संस्कृत का सॉफ्टवेयर हमारे वेद-शास्त्र है। विशेष अतिथि डॉ. शुभम शर्मा ने कहा कि संस्कृत सबकी है। आपने भगवान शिव के डमरू, हाटकेश, अगस्त मुनि से जुड़े प्रसंग सुनाकर संस्कृत की महिमा बताई। अतिथि डॉ. संकल्प मिश्र ने कहा कि संस्कृत दिवस पर पहले श्रावणी उपाकर्म का उल्लेख आता था। बाद में इसका काफी विस्तार हुआ। अतिथि श्री व्यास ने कहा संस्कृत एक विद्या है इसे आपसे कोई चुरा नहीं सकता। राजा भी आप पर केवल कर यानी टेक्स लगा सकता है। विद्या धन सबसे महान है। प्रो. शैलेंद्र पाराशर ने कहा कि संस्कृत देव वाणी है। दुनिया के सारे शास्त्र इसमें समाहित है। भगवान श्री कृष्ण ने भी यहीं पर आकर विद्या प्राप्त की और जगत गुरु कहलाए। समारोह को के प्रारंभ में समस्त अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर समारोह का विधिवत शुभारंभ किया तो समारोह में मौजूद 100 बटुकों ने एक स्वर में स्वस्ति वाचन कर संपूर्ण वातावरण को धर्ममय कर दिया। स्वागत भाषण वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र जोशी ने देते हुए कहा कि दैनिक ब्रह्मास्त्र संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। संस्कृत हमारी धरोहर है। मप्र के राजगढ़ के पास तो आज भी एक ऐसा गांव है जहां लोग संस्कृत में बात करते हैं।  कार्यक्रम का संचालन डॉ. दिनेश चौबे ने किया। अतिथियों का स्वागत दैनिक अवंतिका के प्रधान संपादक श्री सुरेंद्र मेहता सुमान, संपादक श्री संदीप मेहता, सप्त मेहता, दैनिक अवंतिका ब्रह्मास्त्र समाचार पत्र परिवार के संतोष जोशी, पं. नीलेश शर्मा, बंटी नागर आदि ने किया। समारोह में झलक चावड़ा ने वंदे मातरम, गौरी व्यास ने सरस्वती वंदना, गार्गी व पार्श्वी ने शिव पंचाक्षर, वैदेही पंड्या ने श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन एवं तन्वी गोलेचा ने आकर्षक नृत्य प्रस्तुत कर उपस्थितजनों को मंत्रमुग्ध कर दिया तो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सभी कलाकारों का उत्साहवर्धन किया गया। वेदांत उपाध्याय ने मेरे शंकरा भजन सुनाकर समारोह में और रस घोल दिया। समारोह में स्वामीनारायण पांडे, पतंजलि पांडे, राकेश तोमर सहित बड़ी संख्या में गणमान्यजन मौजूद थे। समारोह के समापन पर अतिथियों बटुकों के साथ फोटो भी खिचवाएं। इसके पश्चात सभी ने स्वादिष्ट भोजन प्रसादी भी ग्रहण की।
 
अभनेत्री सारिका दीक्षित ने कहा संस्कृत 
मुझे भी पंसद इसलिए समारोह में आई       
बॉलीवुड और छोटे पर्दे की स्टार अभिनेत्री सारिका दीक्षित तथा  कलाकार माया गुर्जर की इस समारोह में विशेष रूप से पूरे समय मौजूद रही। अभिनेत्री सारिका ने समारोह को संबोधित कर कहा कि संस्कृत मुझे भी बहुत पसंद है। इसलिए मैं इस समारोह में आई हूं। मुझे आज के दिन भोपाल में कार्यक्रम में जाना था पर मालूम पड़ा कि यहां संस्कृत दिवस का समारोह हो रहा है तो मैं रुक गई। संस्कृत पांच हजार साल पुरानी प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत के प्रति हमारी जिम्मेदारी है कि इसे ग्राउंड लेवल तक पहुंचाए। वर्तमान में यह भाषा कुछ विलुप्त भी हो रही है। इसे बचाने के लिए मैं हिंदूस्तान के सारे पेरेन्ट्स से अनुरोध करती हूं कि वे बच्चों को संस्कृत की शिक्षा अवश्य दें। हम सेवा प्रकल्प भी चलाते हैं। संस्कृत के लिए मैं हर तरह की मदद के लिए तैयार हूं।
 
अतिथियों ने मंच से किया संस्कृत  
आचार्यों व नृत्य गुरुओं का सम्मान
संस्कृत दिवस पर आयोजित इस समारोह में उपस्थित अतिथियों ने मंच से संस्कृत विद्वानों, आचार्यों, शिक्षकों, वेदपाठियों व नृत्य गुरुओं का सम्मान किया। जिसमें नृत्य गुरु पलक पटवर्धन, पद्मजा रघुवंशी, प्रतिभा रघुवंशी आदि प्रमुख रूप से शामिल थे। सभी को प्रमाण पत्र, शॉल-श्रीफल प्रदान किया गया।  
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