समरसता के साथ स्वच्छता का भी संदेश दे रही है स्नेह यात्रा
उज्जैन । प्रदेश के सभी जिलों में पूज्य संतों के सान्निध्य में स्नेह यात्रा समरसता के साथ-साथ अब स्वच्छता का भी संदेश दे रही है। यात्रा के आगमन से पहले ही गाँव-गाँव में मुनादी हो जाती है। उत्सुकता से लोग स्नेह यात्रा दल की प्रतीक्षा करते हैं। यात्रा के आने से पहले बस्ती को खूब साफ-सुथरा कर लिया जाता है। देवास में 62 वर्षीय यशोदा अपने ओटले को साफ करते हुए गा रही हैं मैंने आँगन नहीं बुहारा तो कैसे आएंगे भगवान। भक्तिमति माता शबरी के ये शब्द प्रभु राम और माता शबरी के मिलन की भी याद कराते हैं। एक अन्य महिला यशोदा भी भाव-विभोर होकर कहती हैं हमारी बस्ती में संतजन का आना शबरी के आँगन में प्रभु राम के आने जैसा है। वही खुशी, वही आनंद, वही आत्मीयता और वही उल्लास, हम महसूस कर रहे हैं जैसा माता शबरी के आश्रम में महसूस किया गया होगा।
आ गया है यात्रा का मध्य पड़ाव
मध्यप्रदेश जन-अभियान-परिषद, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग और संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में 16 अगस्त से शुरू हुई स्नेह यात्रा प्रत्येक जिले में 11 दिवस प्रवासरत रहेगी।
सहभागी संगठन भी हैं अभिभूत
यात्रा के लिए मप्र जन अभियान परिषद नोडल एजेंसी है। सहभागी के रूप में अखिल विश्व गायत्री परिवार, रामचंद्र मिशन, योग आयोग संस्थान, पतंजलि योग पीठ एवं आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास हैं। पतंजलि परिवार की प्रदेश प्रमुख पुष्पांजलि दीदी कहती हैं कि यह ऐतिहासिक है, ऐसा पहले नहीं हुआ। लोगों का उत्साह और उमंग संतजन को भी आश्चर्यचकित कर दे रहा है। यह हमारी गतिविधियों का स्थायी हिस्सा बनना चाहिए। गायत्री परिवार प्रदेश प्रमुख राजेश पटेल कहते हैं कि यह परिवार की मूल भावना से मेल खाता हुआ कार्यक्रम है। परम पूज्य गुरूदेव का संकल्प भी समतामूलक समाज का ही था। रामचंद्र मिशन के प्रदेश प्रभारी गजेंद्र गौतम का मानना है कि संस्थाओं के समन्वय से यात्रा में एक नया उत्साह आया है। सभी सहभागी संगठन को अपनी अवधारणा और कार्यक्रम के बहुत निकट पाते हैं और उसमें बढ़-चढ़ कर सहयोग कर रहे हैं।
सीएमसीएलडीपी के छात्र और मेंटर्स निभा रहे हैं महत्वपूर्ण भूमिका
प्रदेश के 313 विकासखंडों में मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व क्षमता विकास कार्यक्रम के समाज कार्य स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रम के छात्र यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। छात्र सेवा बस्तियों में घर-घर जाकर पीले चावल डालकर सभी को स्नेह यात्रा के लिए आमंत्रित करते हैं। पाठ्यक्रम में प्रशिक्षक की भूमिका निभा रहे मेंटर्स दस्तावेजीकरण का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। जन अभियान परिषद की प्रस्फुटन समितियों एवं नवांकुर संस्थाओं के प्रतिनिधि भी यात्रा के संयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
निरंतर बढ़ रही है सहभागिता
स्नेह यात्रा के दिन जैसे-जैसे बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे जन-समुदाय की सहभागिता भी बढ़ती जा रही है। पूरक जन-संवादों में जहाँ 100-200 की संख्या जुटती है वहीं दोपहर और शाम को होने वाले सत्संग और सहभोज में 700 से 1000 लोग जुट रहे हैं। शाम के सहभोज में पूरा गाँव इकट्ठा होकर जन-सहभागिता से संग्रहीत सामग्री से भंडारे में सहभागी बनता है। स्नेह यात्रा ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाकर समरसता की नई पहचान बन रही है।