देश भर में आज रावण दहन, आज ही के दिन भगवान राम ने अहंकार और बुराई के प्रतीक रावण पर की थी विजय प्राप्त
ब्रह्मास्त्र इंदौर। पूरे देश में आज दशहरा मनाया जा रहा है। आज ही के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। अहंकार और बुराई के प्रतीक रावण का पुतला दहन करने की परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है , लेकिन एक तरफ जहां रावण का पुतला दहन किया जाता है। कोरोना और महंगाई की मार इस बार रावण के पुतलों पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। इंदौर में रावण सैनिटाइजर उड़ाता नजर आएगा तो वही आज शाम कई स्थानों पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन होगा। इंदौर, उज्जैन सहित प्रदेश में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए रावण दहन के आयोजन रखे गए हैं।
इंदौर में रावण का मंदिर लोग मानते हैं मन्नत
इंदौर। यहाँ रावण का मंदिर भी है जहां बाकायदा पूजा-अर्चना होती है, परदेशीपुरा में दशानन का मंदिर भी है। इसे लोग लंकेश्वर महादेव मंदिर भी कहते हैं। यहां कई लोग आकर पैरों में धागा बांधकर मन्नत भी मांगते है। वहीं छात्र-छात्राएं परीक्षा से पहले रावण से आशीर्वाद लेकर जाते हैं। इंदौर के गौहर परिवार ने रावण का मंदिर ही नहीं बनवाया, बल्कि रावण और उसके परिवार के सदस्यों के नाम पर भी अपने बच्चों के नाम रखे हैं। मंदिर को बनवाने वालो महेश गौहर का कहना है कि 10 अक्टूबर 2010 को मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर की आधारशिला 10 बजकर 10 मिनट और 10 सेकेंड पर रखी गई।
महेश गौहर का कहना है कि रावण की शादी जो कि वर्तमान में मंदसौर कहा जाता है, दशपुर में रहने वाली मंदोदरी से हुई थी। रावण के पिता बड़े विद्वान थे। उन्होंने कुंडली देखकर रावण को कहा था कि तेरी पहली संतान ही तेरी मौत का कारण बनेगी। जिस पर रावण ने अहंकार दिखाते हुए कहा था कि नौ ग्रह मेरे बस में हैं। काल मेरे पैरों में रहता है। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मान्यता है कि मंदोदरी द्वारा उसके पहली बच्ची को जमीन में दफना दिया गया था, जिसके बाद वही आगे चल कर सीता जी के रूप में प्रकट हुई।
मंदसौर में आस्था के दहकते अंगारों पर चले लोग
मंदसौर जिले के सीतामऊ के भगोर गांव में नवरात्र के अंतिम दिन नवमी को माता विदाई के साथ चूल के आयोजन किया गया। आस्था और भक्ति के कई रूपों में यह भी एक रूप है, जहां भक्त अंगारों पर चलकर भक्ति की अग्नि परीक्षा देते हैं।। जिसे ग्रामीण वाड़ी विसर्जन कहते हैं। इसमें ऐसे लोग अंगारों पर से चलते हैं, जिनकी मांगी हुई मन्नत पूरी हो जाती है। नवमी के दिन करीब ढाई फीट चौड़ी और आठ फीट लंबा गड्ढा खोदा जाता है। इसमें सूखी लकड़ियां डालकर दहकते अंगारों में परिवर्तित किया जाता है। इसके बाद ग्रामीण इसमें देसी घी डालकर अंगारों को दहकाया जाता है। इसके बाद माता के भक्तों इन दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं। आस्था के अंगारों पर आज तक कभी कोई भक्त न तो चोटिल हुआ है और न ही कोई दुर्घटना हुई है।