आसमान का राजा शिकारी “बाज” खूद गहरे संकट में -प्रजाति विलुप्ति की कगार पर,देखने में ही नहीं आता अब चील और बाज
उज्जैन । आसमान में सबसे अधिक 5 हजार फीट की उंचाई तक उडने वाला शिकारी बाज मालवा के उज्जैन संभाग में गहरे संकट में है।इसकी प्रजाति विलुप्ति की कगार पर आ गई है।अब सामान्य तौर पर चील और बाज देखने को ही नहीं मिलते हैं। वन विभाग इन शिकारी पक्षियों को बचाने के लिए कागजी कवायद करता है धरातल से उसका काम गायब है।
पर्यावरण संतुलन में बाज की अहम भूमिका है।पूरे देश में बाज की 31 प्रजातियां हैं । इनमें से कुछ एक मालवा के उज्जैन संभाग में भी पाई जाती थी।इसके साथ चील भी शिकारी पक्षी के रूप में है।शिकारी पक्षियों की कुल 800 प्रजातियों में ये दोनों प्रमुख माने जाते हैं।अब शिकारी पक्षी बाज खुद संकट में है। ऐसे में इस पक्षी को बचाने की आवश्यकता है। खेतों में अत्यधिक कीटनाशक के उपयोग और दर्द निवारक दवाओं ने शिकारी पक्षी बाज की पूरी प्रजाति को संकट में डाल दिया है। इसीलिए अब आसमान पर बाज दिखाई नहीं दे रहे। इससे पर्यावरण और जैव विविधता का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। इनके संरक्षण के लिए डाइक्लोफेनेक सोडियम पर प्रतिबंध जरूर लगाया गया लेकिन विकल्पों की उपस्थिति के रहते ये प्रयास नाकाफी साबित रहा है। 5 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई तक आसमान की सैर करने वाले इस शिकारी पक्षी बाज की उड़ने की रफ्तार 160 किमी प्रति घंटा है।
ये है शिकारी पक्षी के हाल-
पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं कि करीब एक वर्ष पूर्व स्टेट आफ इंडियन बर्ड के नाम से रिपोर्ट सामने आई थी।इसमें पक्षियों की 800 प्रजातियों का विश्लेषण किया गया था।जिसमें साफ तौर पर सामने आया है कि शिकारी पक्षी(बाज,चील,गिद्ध सहित अन्य) की संख्या में तेजी से गिरावट सामने आ रही है। नके संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी के बराबर हैं।अकेले उज्जैन जिला में एक तरह का बाज विलुप्ति की स्थिति में आ चुका है।इनकी घटती संख्या के पीछे किटनाशक और डाइक्लोफेनेक सोडियम के साथ ही नए कारण भी सामने आए हैं।इसमें ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास(डंपिंग यार्ड) मृत पशु एवं कचरा निपटान बहुत अच्छा होने से इनके खाने की कमी आ गई हैं।संभाग के 7 जिलों में से अधिकांश में यही स्थिति सामने आ रही है।संभाग के कुछ पानी और इन पक्षियों के रहवास के प्राकृतिक जैसे स्थानों पर स्थिति फिर भी ठीक है लेकिन उन्हें भी संरक्षण की जरूरत सामने आ रही है।संभाग में ब्लेक काईट के नाम से पहचाने जाने वाले चील की स्थिति फिर भी ठीक कही जा सकती है।इसकी अपेक्षा शिकार करने वाले पक्षी बहुत तेजी से कम हो रहे हैं। इनके संरक्षण को लेकर वन विभाग के संभाग के किसी जिला में कोई बेहतर योजना एक दशक से भी ज्यादा समय में सामने नहीं आई है।
सिर्फ गांधी सागर में गिद्धों को मिला संरक्षण-
उज्जैन संभाग के गांधीसागर में गिद्धों के संरक्षण का काम एक दशक से भी अधिक समय से वन विभाग कर रहा है।यहां गिद्धों के लिए बेहतर आवास एवं संरक्षण का प्राकृतिक वातावरण है।गिद्धों की तेजी से खत्म हो रही प्रजाति पर वन विभाग एवं पक्षी विशेषज्ञों के प्रयासों से रोक लग सकी है।नाम न छापने की शर्त पर एक पक्षी विशेषज्ञ ने बताया कि पिछले एक दशक के बावजूद भी इसमें मामूली सुधार आया है।उसकी खास वजह है कि पक्षी के लिए कोई सीमा नहीं होती वह आवासीय क्षेत्र में जाता है तो उसके भोजन में किट पतंगे और मृत पशु आते हैं जिससे वह किटनाशक और डाइक्लोफेनेक सोडियम के प्रभाव में आता है।यही उसकी मौत और प्रजनन पर असर डालता है।
दर्द निवारक,किटनाशक शिकारी की जान का दुश्मन –
अब इसकी प्रजाति दुर्लभ हो गई है जानवरों और इंसानों को दी जाने वाली दर्द निवारक दवाएं और अनाज में रखे जाने वाले कीटनाशक पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो गए हैं। मनुष्य या पशु को दर्द निवारक दिया जाता है, उसमें डाइक्लोफेनेक ● सोडियम होता है। यह दर्द तो खत्म कर देता है, लेकिन इंसान या पशु के टिश्यू में ही रह जाता है। मौत होने की स्थिति में शव अगर खुला रहता है और गिद्ध व बाज इन्हें खाते हैं तो यह रसायन पक्षी के शरीर में पहुंच जाता है। डाइक्लोफेनेक सोडियम इन पक्षियों के लिए टॉक्सिन का काम करता है और उनके लीवर पर असर डालता है, जिससे इनकी मौत हो जाती है। इसी वजह से डाइक्लोफेनेक पर प्रतिबंध लगाया गया था।वर्तमान में यह विकल्पों के रूप में बहुतायत में मौजूद है।
सिर्फ एक संरक्षण केंद्र,संभाग में-
शिकारी पक्षियों के संभाग में विलुप्ति की और जाने के मामले में मुख्य वन संरक्षक एम आर बघेल से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि गांधीसागर में गिद्धों के लिए बेहतर आवास की स्थिति होने से उन्हें संरक्षण मिला है।संरक्षण क्षेत्र से एक गांव को भी बाहर कर दिया गया है जिससे गिद्ध किटनाशक और डाईक्लोफेनिक के संपर्क में नहीं आ पा रहे हैं उनकी संख्या भी बडी है। आने वाले समय में इसका बेहतर परिणाम सामने आएगा।संभाग के अन्य जिलों में इन पक्षियों के संरक्षण को लेकर क्या किया जा रहा है के सवाल पर उनका जवाब था कि हम आपको अवगत करवाएंगे।