बदनावर : डोमिनिक गणराज्य व अबू धाबी व यूए ने महात्मा गांधी पर किए डाक टिकट जारी

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सत्य, अहिंसा और सत्या-ग्रह के प्रयोग ने बापू को मोहनदास से महात्मा बनाया

बदनावर । इस बात को सुन कर हर भारतवासी का सीना चौड़ा होना स्वाभाविक है, साथ ही यह हमारे लिए गौरव की बात है कि विश्व के सर्वाधिक देशों ने जिस व्यक्तित्व को डाक टिकटों पर जगह दी वह नाम है महात्मा गांधी का। हां यह बात सही है कि दुनिया में सत्य और अहिंसा का डंका बजाने वाले महात्मा गांधी पर विश्व के सर्वाधिक देशों ने डाक टिकट जारी किये।
उक्त जानकारी देते हुए डाक टिकट संग्राहक ओम पाटोदी ने बताया कि भारत में पहली बार 15 अगस्त 1948 को बापू पर चार डाक टिकटों का सेट जारी किया था उसके बाद डाक टिकटों के जारी होने कि सिलसिला लगातार चलता रहा जो बापू की 150वीं जन्म जयंती वर्ष पर अपने चरम पर पहुंच गया। इस दरमियान सैकड़ों देशों ने गांधी जी के सम्मान में डाक टिकट जारी किए।
पाटोदी ने बताया कि हाल ही में डोमिनिक गणराज्य ने पिछले दिनों एक विशेष कार्यक्रम के दौरान गांधीजी पर एक डाक टिकट जारी किया। इस मौके पर डोमिनिक गणराज्य के विदेश मंत्री मिगुएल वर्गास और कई गणमान्य लोगों के साथ भारतीय राजदूत मधु सेठी भी मौजूद रहीं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने संयुक्त रूप से महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर उनका एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।
युद्ध की विभिषिका के खतरों के बीच आज विश्व को जियो और जीने दो, अहिंसा परमो धर्म जैसे सार्वभौमिक सिद्धांत विश्व शांति के लिए कारगर लगते हैं। यही वजह है कि सत्य अहिंसा के पुजारी गांधी की छवि ने विश्व के राजनयिकों और विद्वानों को सर्वाधिक प्रभावित किया है। अहिंसा परमो धर्म के पुरजोर उद््घोषक भगवान महावीर का यह 2550वां निर्वाण कल्याणक महोत्सव वर्ष हमारे लिए विश्व गुरु बनने की मुहिम को सही रूप से अंजाम देने हेतु एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस पर भारत सरकार को विश्व के सर्वाधिक प्राचीन संवत रूप में मान्यता प्राप्त वीर निर्वाण 2550 (जो आगामी 13 नवम्बर 2023 से प्रारंभ हो रहा है) को प्रचारित करते हुए भगवान महावीर के अहिंसा परमो धर्म, जियो और जीने दो, अनेकांतवाद जैन जनकल्याणकारी और सार्वभौमिक सिद्धांतों को संपूर्ण विश्व में प्रचारित प्रसारित करना चाहिए। वीर निर्वाण उत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाना चाहिए। जिससे कि भारत की आध्यात्मिक, संस्कृतिक और वसुधैव कुटुंबकम वाली छवि और मजबूत हो एवं हर दृष्टि से भारत विश्व गुरु की श्रेणी में विश्व में अपना प्रभुत्व दिखा सके। इस बात को हम सब जानते हैं कि प्राचीन काल में भी भारत अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक छवि की वजह से ही विश्व प्रसिद्ध था।