महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सदस्य श्री अजय पाठक ने कहा – मानव जीवन को सार्थकता प्रदान करती है शिक्षा

मुंबई । शिक्षा मनुष्य निर्माण की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो मनुष्य के जीवन को सार्थकता प्रदान करती है। शिक्षा के बिना व्यक्तित्व का विकास सम्भव नहीं होता। ये विचार महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, मुंबई के सदस्य और वरिष्ठ साहित्यकार श्री अजय पाठक ने राष्ट्र संत तुकड़ोजी महाराज विश्वविद्यालय, नागपुर के हिन्दी विभाग द्वारा मंगलवार, 5 सितम्बर , 2023 को आयोजित शिक्षक दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि शिक्षक राष्ट्र निर्माता होते हैं और राष्ट्र के चरित्र निर्माण में उनकी अहम भूमिका होती है। एक उन्नत राष्ट्र का निर्माण उसके शिक्षकों और शिक्षा संस्थानों द्वारा ही निर्धारित होता है। श्री पाठक ने ज़ोर देकर कहा कि प्राचीन काल में उच्चस्तरीय शिक्षा के कारण ही भारत की गणना विश्वगुरू के रूप में हुई।

इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि मनुष्य जीवन में प्रत्येक दिन कुछ न कुछ सीखता है और सीखने- सिखाने का भाव ही हमें ज़िम्मेदार एवं दायित्वपूर्ण बनाता है। सहयोगी प्राध्यापक डॉ. संतोष गिरहे ने कहा कि शिक्षक के आचरण से विद्यार्थी सीखते हैं, इसलिए आज हमें ध्येयनिष्ठ और उच्च मानवीय मूल्यों की आवश्यकता है। कार्यक्रम की प्रस्तावना विभाग की विद्यार्थी कु.पूजा चतुर्वेदी ने रखी। कु.गुंजन चंदेल ने गीत तथा आशीष उपाध्याय ने स्वरचित कविता प्रस्तुत की। यश वाघ ने शिक्षा सम्बंधी डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विचार, मिनी पाण्डेय ने स्वामी विवेकानन्द के विचार, अंकिता शुक्ला ने गांधीजी के विचार तथा ज्ञानेश्वर भेलकर ने डॉ. आम्बेडकर के विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर नेट-सेट परीक्षा में सफलता अर्जित करने वाले विभाग के पूर्व विद्यार्थियों दिशांत पाटिल, विनय उपाध्याय तथा स्नेहा वानखेड़े का अतिथियों के हाथों सत्कार किया गया। इस अवसर पर विभाग के शिक्षकों डॉ. सुमित सिंह, डॉ. कुंजन लिल्हारे, डॉ. एकादशी जैतवार, प्रा. जागृति सिंह, प्रा. दिशान्त पाटिल, प्रा. रूपाली हिवसे, प्रा. दामोदर द्विवेदी तथा एम.ए. के नव-प्रवेशित विद्यार्थियों का सत्कार किया गया। कार्यक्रम का संचालन विद्यार्थी अतिशय जैन तथा माधुरी कावड़े ने किया एवं आभार डॉ.लखेश्वर चन्द्रवंशी ने व्यक्त किया।